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2 साल पहले राजधानी में हुए जल संकट ने सरकार की उड़ाई थी नींद, आज भी याद है वो मंजर - himachal pradesh news

2018 के शिमला में जल संकट ने दुनियाभर की मीडिया और सोशल मीडिया में सुर्खियां बटोरी थीं. जल संकट के कारण सैलानियों से शिमला ना जाने की अपील की गई थी. सरकार सवालों के घेरे में थी और सियासत भी जमकर हुई.

Water crises in shimla
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Published : Jul 2, 2020, 6:11 PM IST

शिमला: साल 2018 में राजधानी शिमला में जल संकट की समस्या पैदा हो गई थी. उस समय स्थिति इतनी खराब हो चुकी थी कि शहर में बिना जल के नल, सड़क पर पानी के टैंकर और खाली बर्तनों के ढेर के साथ लोगों में पानी की होड़ मच गई थी.

लोगों को सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरना पड़ा. दूसरी ओर टूरिस्ट सीजन भी पीक पर था और होटल्स भी पानी की इस समस्या से अछूते नहीं थे. राजधानी में गहराए जल संकट का मुद्दा इतना ज्यादा गूंजा कि उस समय प्रदेश सरकार की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी फजीहत हुई. उस साल की यादें अब भी ताजा हैं, लेकिन सुकून इस बात का है कि वो वक्त बीत चुका है और अब पानी की कोई किल्लत नहीं है. राजधानी में इस कदर बिगड़ी स्थिति को सही करने के लिए सीएम जयराम ठाकुर ने खुद कमान संभाली.

वीडियो.

कैसे बुझती थी शिमला की प्यास

ब्रिटिश काल में भी गुम्मा पेयजल परियोजना से पानी लिफ्ट किया जाता था. चैड़ और चुरुट पेयजल योजना भी उसी समय की हैं. 1990 में अश्विनी खड्ड परियोजना आई, उस समय प्रदेश में शांता कुमार की सरकार थी. शिमला को दस एमएलडी पानी मिलने लगा. साल 2005 तक सब कुछ ठीक चल रहा था. इसी बीच, साल 2005 में सिंचाई और जनस्वास्थ्य विभाग ने अश्विनी खड्ड पेयजल योजना के ठीक ऊपर मल्याणा में एसटीपी यानी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बना दिया जिससे अश्विनी खड्ड में सीवरेज का पानी मिलने लगा.

इसका परिणाम ये हुआ कि सबसे पहले जनवरी 2007 में पीलिया फैला. उस समय शिमला में डेढ़ हजार से ज्यादा लोग पीलिया का शिकार हुए. दिसंबर 2015 में तो पीलिया ने इस कदर भीषण रूप धारण किया कि 32 लोगों की मौत हो गई. पीलिया शिमला से सोलन तक फैल गया.

साल 2016 में ही अश्विनी खड्ड पेयजल योजना को बंद करवा दिया था. इस तरह शिमला को उक्त योजना से मिलने वाला दस एमएलडी पानी भी बंद हो गया जिस कारण पानी के अचानक बंद होने से शहर में जलसंकट पैदा होना शुरू हुआ. लेकिन इसके कुछ समय बाद अश्विनी खड्ड पेयजल योजना में ट्रीटमेंट प्लांट को ठीक कर दोबारा इसे शुरू कर दिया गया.

जलसंकट पर सियासत

2018 के जल संकट ने दुनियाभर की मीडिया और सोशल मीडिया में सुर्खियां बटोरी थीं. जल संकट के कारण सैलानियों से शिमला ना जाने की अपील की गई थी. सरकार सवालों में थी और सियासत भी जमकर हुई. पानी की किल्लत और फिर वितरण का जायजा लेने के लिए आईपीएच मंत्री महेंद्र ठाकुर भी सड़कों पर उतरे. वहीं, शिमला से विधायक और कैबिनेट मंत्री सुरेश भारद्वाज उस जल संकट का कुछ ठीकरा पिछली सरकार पर भी फोड़ते हैं.

शहर में गहराए संकट को दूर करने के लिए लंबी बैठकों और मंथन के बाद सरकार ने इस मुश्किल से पार पाने का हल खोज लिया था, जिसके लिए अब सरकार के नुमाइंदे अपनी पीठ थपथपाते नहीं थकते हैं.

हाईकोर्ट की रही अहम भूमिका

हाईकोर्ट ने भी शिमला में भयावह जलसंकट पर अहम भूमिका निभाते हुए मिसाल पेश की थी और कहा कि जब तक स्थिति सामान्य नहीं हो जाती, तब तक चीफ जस्टिस और अन्य न्यायाधीश जिन इलाकों में रहते हैं, वहां पानी के टैंकर से सप्लाई नहीं होगी. पहले आम जनता को समुचित पानी दिया जाए.

उस समय हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने कहा कि शिमला शहर की परिधि के अंदर आने वाले वीवीआईपी इलाकों में पानी के टैंकर से सप्लाई पर रोक लगाई जाए. हाईकोर्ट ने सिर्फ मुख्यमंत्री आवास और राज्यपाल के आवास को छूट दी. खंडपीठ ने एक हफ्ते तक शहर में किसी भी तरह के निर्माण कार्य पर रोक लगाई. इसके बाद शहर को तीन जोन में बांटा गया है और हर ज़ोन में पानी 2 दिनों के अंतराल में दिया गया ताकि सभी को बराबर पानी मिल सके.

सरकार की प्लानिंग और कैसे हुआ समाधान

जलसंकट की समस्या को हल करने के लिए नीतियों से लेकर, संस्थागत और जल आपूर्ति के पूरे ढांचे में बदलाव किया गया. वहीं, शिमला जल प्रबंधन के एमडी धर्मेंद्र गिल के मुताबिक सरकार ने मामले को गंभीरता से लेते हुए ठोस कदम उठाए. दरअसल शिमला की जरूरत 37 MLD पानी की है लेकिन 2018 के जल संकट के दौरान महज 17 MLD पानी ही बचा था जिससे राजधानी की परेशानियां बढ़ती जा रही थीं.

वहीं, सरकार ने जलसंकट को दूर करने के लिए सतलुज का पानी टैंकरों के जरिए ढोया और इस पानी को परियोजनाओं में डाला गया जिससे 2008 में पानी की सप्लाई ठीक हुई. इसके साथ ही पानी की लिकेज और अवैध कनेक्शनों पर लगाम कसी गई. शहर को सेक्टरों में बांटा गया और पानी की सप्लाई की गई. सरकार ने जल परियोजनाओं को ठीक करवाया. इसके साथ ही तीम नई परियोजनाओं पर काम शुरू किया जो अभी जारी है.

इनमें सबसे पहले सतलुज नदी से पानी लिफ्ट किया जाएगा और सतलुज से गुम्मा पंपिंग स्टेशन तक पानी पहुंचेगा. इसके अलावा गिरि और गुम्मा में चेक डैम भी स्थापित होगा. दीर्घकालीन योजना के लिए अश्विनी खड्ड योजना पर भी फोकस किया जा रहा है.

इसके अलावा भी कई कारण रहे जिससे शहर में पानी की समस्या गहराती रही. गर्मियों के समय में प्राकृतिक स्त्रोत भी सूख जाते हैं जिससे शहर के पानी की समस्या पैदा हुई. फिलहाल शहर में पुरानी पाइपों को बदलकर नई पाईपें लगाई गई हैं जिससे लिकेज की समस्या से निजात मिल चुकी है.

कुल मिलाकर बेहतर नीति, नीयत और संस्थागत ढांचे में सुधार से पहाड़ों की रानी जल संकट से उबरी और साल 2018 के बाद से शिमला में पानी की कमी महसूस नहीं है.

ये भी पढ़ें- ईटीवी भारत से बोले रि. कर्नल इंद्र सिंह, चालबाज चीन के लिए काल साबित होगी अटल टनल

शिमला: साल 2018 में राजधानी शिमला में जल संकट की समस्या पैदा हो गई थी. उस समय स्थिति इतनी खराब हो चुकी थी कि शहर में बिना जल के नल, सड़क पर पानी के टैंकर और खाली बर्तनों के ढेर के साथ लोगों में पानी की होड़ मच गई थी.

लोगों को सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरना पड़ा. दूसरी ओर टूरिस्ट सीजन भी पीक पर था और होटल्स भी पानी की इस समस्या से अछूते नहीं थे. राजधानी में गहराए जल संकट का मुद्दा इतना ज्यादा गूंजा कि उस समय प्रदेश सरकार की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी फजीहत हुई. उस साल की यादें अब भी ताजा हैं, लेकिन सुकून इस बात का है कि वो वक्त बीत चुका है और अब पानी की कोई किल्लत नहीं है. राजधानी में इस कदर बिगड़ी स्थिति को सही करने के लिए सीएम जयराम ठाकुर ने खुद कमान संभाली.

वीडियो.

कैसे बुझती थी शिमला की प्यास

ब्रिटिश काल में भी गुम्मा पेयजल परियोजना से पानी लिफ्ट किया जाता था. चैड़ और चुरुट पेयजल योजना भी उसी समय की हैं. 1990 में अश्विनी खड्ड परियोजना आई, उस समय प्रदेश में शांता कुमार की सरकार थी. शिमला को दस एमएलडी पानी मिलने लगा. साल 2005 तक सब कुछ ठीक चल रहा था. इसी बीच, साल 2005 में सिंचाई और जनस्वास्थ्य विभाग ने अश्विनी खड्ड पेयजल योजना के ठीक ऊपर मल्याणा में एसटीपी यानी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बना दिया जिससे अश्विनी खड्ड में सीवरेज का पानी मिलने लगा.

इसका परिणाम ये हुआ कि सबसे पहले जनवरी 2007 में पीलिया फैला. उस समय शिमला में डेढ़ हजार से ज्यादा लोग पीलिया का शिकार हुए. दिसंबर 2015 में तो पीलिया ने इस कदर भीषण रूप धारण किया कि 32 लोगों की मौत हो गई. पीलिया शिमला से सोलन तक फैल गया.

साल 2016 में ही अश्विनी खड्ड पेयजल योजना को बंद करवा दिया था. इस तरह शिमला को उक्त योजना से मिलने वाला दस एमएलडी पानी भी बंद हो गया जिस कारण पानी के अचानक बंद होने से शहर में जलसंकट पैदा होना शुरू हुआ. लेकिन इसके कुछ समय बाद अश्विनी खड्ड पेयजल योजना में ट्रीटमेंट प्लांट को ठीक कर दोबारा इसे शुरू कर दिया गया.

जलसंकट पर सियासत

2018 के जल संकट ने दुनियाभर की मीडिया और सोशल मीडिया में सुर्खियां बटोरी थीं. जल संकट के कारण सैलानियों से शिमला ना जाने की अपील की गई थी. सरकार सवालों में थी और सियासत भी जमकर हुई. पानी की किल्लत और फिर वितरण का जायजा लेने के लिए आईपीएच मंत्री महेंद्र ठाकुर भी सड़कों पर उतरे. वहीं, शिमला से विधायक और कैबिनेट मंत्री सुरेश भारद्वाज उस जल संकट का कुछ ठीकरा पिछली सरकार पर भी फोड़ते हैं.

शहर में गहराए संकट को दूर करने के लिए लंबी बैठकों और मंथन के बाद सरकार ने इस मुश्किल से पार पाने का हल खोज लिया था, जिसके लिए अब सरकार के नुमाइंदे अपनी पीठ थपथपाते नहीं थकते हैं.

हाईकोर्ट की रही अहम भूमिका

हाईकोर्ट ने भी शिमला में भयावह जलसंकट पर अहम भूमिका निभाते हुए मिसाल पेश की थी और कहा कि जब तक स्थिति सामान्य नहीं हो जाती, तब तक चीफ जस्टिस और अन्य न्यायाधीश जिन इलाकों में रहते हैं, वहां पानी के टैंकर से सप्लाई नहीं होगी. पहले आम जनता को समुचित पानी दिया जाए.

उस समय हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने कहा कि शिमला शहर की परिधि के अंदर आने वाले वीवीआईपी इलाकों में पानी के टैंकर से सप्लाई पर रोक लगाई जाए. हाईकोर्ट ने सिर्फ मुख्यमंत्री आवास और राज्यपाल के आवास को छूट दी. खंडपीठ ने एक हफ्ते तक शहर में किसी भी तरह के निर्माण कार्य पर रोक लगाई. इसके बाद शहर को तीन जोन में बांटा गया है और हर ज़ोन में पानी 2 दिनों के अंतराल में दिया गया ताकि सभी को बराबर पानी मिल सके.

सरकार की प्लानिंग और कैसे हुआ समाधान

जलसंकट की समस्या को हल करने के लिए नीतियों से लेकर, संस्थागत और जल आपूर्ति के पूरे ढांचे में बदलाव किया गया. वहीं, शिमला जल प्रबंधन के एमडी धर्मेंद्र गिल के मुताबिक सरकार ने मामले को गंभीरता से लेते हुए ठोस कदम उठाए. दरअसल शिमला की जरूरत 37 MLD पानी की है लेकिन 2018 के जल संकट के दौरान महज 17 MLD पानी ही बचा था जिससे राजधानी की परेशानियां बढ़ती जा रही थीं.

वहीं, सरकार ने जलसंकट को दूर करने के लिए सतलुज का पानी टैंकरों के जरिए ढोया और इस पानी को परियोजनाओं में डाला गया जिससे 2008 में पानी की सप्लाई ठीक हुई. इसके साथ ही पानी की लिकेज और अवैध कनेक्शनों पर लगाम कसी गई. शहर को सेक्टरों में बांटा गया और पानी की सप्लाई की गई. सरकार ने जल परियोजनाओं को ठीक करवाया. इसके साथ ही तीम नई परियोजनाओं पर काम शुरू किया जो अभी जारी है.

इनमें सबसे पहले सतलुज नदी से पानी लिफ्ट किया जाएगा और सतलुज से गुम्मा पंपिंग स्टेशन तक पानी पहुंचेगा. इसके अलावा गिरि और गुम्मा में चेक डैम भी स्थापित होगा. दीर्घकालीन योजना के लिए अश्विनी खड्ड योजना पर भी फोकस किया जा रहा है.

इसके अलावा भी कई कारण रहे जिससे शहर में पानी की समस्या गहराती रही. गर्मियों के समय में प्राकृतिक स्त्रोत भी सूख जाते हैं जिससे शहर के पानी की समस्या पैदा हुई. फिलहाल शहर में पुरानी पाइपों को बदलकर नई पाईपें लगाई गई हैं जिससे लिकेज की समस्या से निजात मिल चुकी है.

कुल मिलाकर बेहतर नीति, नीयत और संस्थागत ढांचे में सुधार से पहाड़ों की रानी जल संकट से उबरी और साल 2018 के बाद से शिमला में पानी की कमी महसूस नहीं है.

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