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देवभूमि हिमाचल में खुलने वाले हैं देवालय और शक्तिपीठ, अरबों की संपत्ति वाले मंदिरों से जुड़ी जनता की आस्था - मां बज्रेश्वरी मंदिर

गुरूवार से हिमाचल में सभी शक्तिपीठों और देवालयों के कपाट खुल रहे हैं. दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के लिए कुछ नियम भी तय किए हैं. कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए लोग मंदिरों में दर्शन कर सकेंगे. सूखा प्रसाद ही चढ़ाया जाएगा. कोरोना काल में पिछले साल से लेकर अब तक शक्तिपीठों की रौनक गायब रही है. बीच में कुछ समय के लिए कपाट खुले भी थे, लेकिन दूसरी लहर में फिर से बंदिशें लगाई गईं.

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Published : Jun 30, 2021, 6:32 PM IST

शिमला: संकट के समय श्रद्धालुओं को परमसत्ता की याद आती है. कोरोना के इस विकट समय में देवभूमि हिमाचल की जनता भी देवालयों और शक्तिपीठों के कपाट खुलने का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. श्रद्धालुओं का इंतजार अब खत्म हो रहा है. गुरूवार से हिमाचल में सभी शक्तिपीठों और देवालयों के कपाट खुल रहे हैं.

हालांकि प्रशासन ने मंदिरों में दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के लिए कुछ नियम भी तय किए हैं. कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए लोग मंदिरों में दर्शन कर सकेंगे. सूखा प्रसाद ही चढ़ाया जाएगा. साथ ही कीर्तन और भंडारे पर फिलहाल रोक रहेगी. मंदिरों के प्रवेश द्वार पर लटकाई गई घंटियों को भी ढंका जाएगा, ताकि संक्रमण का खतरा न रहे. बेशक सरकार ने एसओपी के साथ मंदिरों व शक्तिपीठों के कपाट खोले हैं, परंतु श्रद्धालु इसी बात से बहुत प्रसन्न हैं कि उन्हें शक्तिपीठों में मां के दर्शन होंगे और अन्य देवालयों में अपने आराध्य की प्रतिमाओं पर श्रद्धा सुमन चढ़ाने का अवसर मिलेगा.

अद्भुत है हिमाचल के शक्तिपीठों की गाथा

हिमाचल प्रदेश को देवभूमि कहा जाता है. यहां कई शक्तिपीठ हैं. इनमें मां चिंतपूर्णी, श्री नैना देवी, मां ज्वालामुखी, मां बज्रेश्वरी, मां चामुंडा विख्यात शक्तिपीठ हैं. नवरात्रि के दौरान यहां देश-विदेश के आस्थावान लोगों की भीड़ जुटती है. कोरोना काल में पिछले साल से लेकर अब तक शक्तिपीठों की रौनक गायब रही है. बीच में कुछ समय के लिए कपाट खुले भी थे, लेकिन दूसरी लहर में फिर से बंदिशें लगाई गईं.

इन शक्तिपीठों से जुड़ी कहानियां श्रद्धालुओं को यहां खींच लाती है. कई श्रद्धालु नंगे पैर पैदल आते हैं और कई जमीन पर लेट-लेट कर दर्शन को पहुंचते हैं. मां ज्वालामुखी में बिना बाती और तेल निरंतर ज्योति जलती है. मां चिंतपूर्णी के दर्शन मात्र से सभी चिंताएं दूर होती हैं. इसी तरह श्री नैना देवी और मां चामुंडा तथा मां ब्रजेश्वरी देवी के मंदिरों से अनेक कथाएं जुड़ी हैं.

35 मंदिरों का सरकार ने किया है अधिग्रहण

हिमाचल प्रदेश में शक्तिपीठ व कई प्रख्यात मंदिर सरकारी अधिग्रहण में हैं. प्रदेश के 35 मंदिरों का सरकार ने अधिग्रहण किया है और यहां चढ़ावे के तौर पर आने वाली रकम मंदिर ट्रस्ट जमा करवाता है. उस पैसे से मंदिर परिसर का सौंदर्यीकरण और अन्य सुविधाओं का विकास किया जाता है. साथ ही गरीब कन्याओं की शादी का खर्च भी दिया जाता है.

सबसे अमीर है मां चिंतपूर्णी का मंदिर

सबसे अमीर मंदिर की बात की जाए तो ऊना जिला में मां चिंतपूर्णी का खजाना सबसे अधिक है. चिंतपूर्णी मां के खजाने में एक अरब रुपए से अधिक की एफडी के साथ मंदिर के पास एक क्विंटल 98 किलो सोना है. वहीं, मां नैना देवी मंदिर के ट्रस्ट में 58 करोड़ रुपए से अधिक की बैंक एफडी व एक क्विंटल से अधिक सोना है. मां श्री नैनादेवी के खजाने में 11 करोड़ रुपए से अधिक की नकदी भी है. इस मंदिर के खजाने में एक क्विंटल 80 किलो सोना और 72 क्विंटल से अधिक की चांदी है. सोना-चांदी के हिसाब से केवल दो मंदिर नैना देवी और चिंतपूर्णी ही भरपूर हैं.

मां ज्वालामुखी मंदिर के पास 23 किलो सोना, 8.90 कुंतल चांदी के अलावा 3.42 करोड़ रुपए की नकदी है. कांगड़ा के ही शक्तिपीठ मां चामुंडा के पास 18 किलो सोना है. सिरमौर के त्रिलोकपुर में मां बालासुंदरी मंदिर के पास 15 किलो सोना और 23 कुंतल से अधिक चांदी है. चंबा के लक्ष्मीनारायण मंदिर के पास भी 15 किलो सोना और करोड़ों रुपए की संपत्ति है. मां दुर्गा मंदिर हाटकोटी के पास 4 किलो सोना, 2.87 करोड़ की एफडी व 2.33 करोड़ रुपए नकद हैं.

देवालयों ने पहुंचाई राहत

कोरोना संकट के समय में जब आम जनता को राहत की जरूरत थी तो देवालयों ने भी अपनी भूमिका अदा की. कोरोना के लिए स्थापित कोष में मां चिंतपूर्णी मंदिर व बाबा बालकनाथ मंदिर ट्रस्ट ने पांच-पांच करोड़ रुपए का अंशदान दिया. इसी तरह बिलासपुर से मां नैना देवी ट्रस्ट ने 2.50 करोड़ रुपए व कांगड़ा जिला के विख्यात मां ज्वालामुखी मंदिर ने एक करोड़ रुपए का अंशदान किया था.

बज्रेश्वरी देवी मंदिर कांगड़ा ने पचास लाख रुपए और शिमला के मशहूर कालीबाड़ी मंदिर ने 25 लाख रुपए की आहूति डाली थी. प्रदेश भर के देवालयों ने अंशदान किया. सभी मंदिरों ने सरकार को 15 करोड़ रुपए की राशि कोविड से लड़ाई के लिए भेंट की. ये सिलसिला लगातार जारी है.

कोरोना के कारण चढ़ावे में गिरावट

कोरोना संकट के इस दौर में देवालय भी इसके प्रभाव से अछूते नहीं रहे. श्री नैना देवी मंदिर में इस साल 21 जनवरी से 23 अप्रैल के बीच 6.63 करोड़ रुपए का चढ़ावा आया. महामारी से पहले ये रकम 23 करोड़ सालाना तक होती थी. पिछले साल यानी वर्ष 2020 में कुल 11 करोड़ का चढ़ावा आया. उससे पहले यानी कोरोना से पूर्व 2019 में ये रकम 23 करोड़ रुपए के करीब थी. मां बज्रेश्वरी देवी मंदिर ट्रस्ट को वर्ष 2019 में चढ़ावे के तौर पर 6.55 करोड़ रुपए आए. वर्ष 2020 में ये घटकर 2.07 करोड़ रह गया. मां चामुंडा का चढ़ावा भी 2019 में 4.39 करोड़ रुपए था. वर्ष 2020 में ये घटकर पौने दो करोड़ रुपए रह गया था.

ऑनलाइन चढ़ा चढ़ावा

ऊना जिला के विख्यात मां चिंतपूर्णी मंदिर में इस साल मार्च महीने तक यानी 2021 के शुरुआती तीन महीने में चिंतपूर्णी मंदिर में श्रद्धालुओं ने 5.65 करोड़ रुपए का चढ़ावा अर्पित किया. वर्ष 2020 में मार्च महीने में हिमाचल में लॉकडाउन लगा था. उसके बाद मार्च से अगस्त 2020 तक चिंतपूर्णी मंदिर को कुल 11.75 लाख रुपए का चढ़ावा भेंट हुआ. ये ऑनलाइन अर्पित किया गया था.

वहीं, 2019 में कोरोना से पहले मार्च से अगस्त के बीच चिंतपूर्णी मंदिर को कुल 14.07 करोड़ रुपए का चढ़ावा आया था. राज्य सरकार के मुख्य सचिव अनिल खाची के अनुसार पहली जुलाई से मंदिरों के कपाट दर्शनों के लिए खुलेंगे. कोरोना गाइडलाइंस का पालन करते हुए दर्शन किए जा सकते हैं. मंदिरों में कीर्तन व भंडारों की अनुमति नहीं होगी.

ये भी पढ़ें: अपने विधायक के मामले में फूंक-फूंक कर कदम रख रही पार्टी विद ए डिफरेंस, नेहरिया विवाद सुलझाने पर फोकस

शिमला: संकट के समय श्रद्धालुओं को परमसत्ता की याद आती है. कोरोना के इस विकट समय में देवभूमि हिमाचल की जनता भी देवालयों और शक्तिपीठों के कपाट खुलने का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. श्रद्धालुओं का इंतजार अब खत्म हो रहा है. गुरूवार से हिमाचल में सभी शक्तिपीठों और देवालयों के कपाट खुल रहे हैं.

हालांकि प्रशासन ने मंदिरों में दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के लिए कुछ नियम भी तय किए हैं. कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए लोग मंदिरों में दर्शन कर सकेंगे. सूखा प्रसाद ही चढ़ाया जाएगा. साथ ही कीर्तन और भंडारे पर फिलहाल रोक रहेगी. मंदिरों के प्रवेश द्वार पर लटकाई गई घंटियों को भी ढंका जाएगा, ताकि संक्रमण का खतरा न रहे. बेशक सरकार ने एसओपी के साथ मंदिरों व शक्तिपीठों के कपाट खोले हैं, परंतु श्रद्धालु इसी बात से बहुत प्रसन्न हैं कि उन्हें शक्तिपीठों में मां के दर्शन होंगे और अन्य देवालयों में अपने आराध्य की प्रतिमाओं पर श्रद्धा सुमन चढ़ाने का अवसर मिलेगा.

अद्भुत है हिमाचल के शक्तिपीठों की गाथा

हिमाचल प्रदेश को देवभूमि कहा जाता है. यहां कई शक्तिपीठ हैं. इनमें मां चिंतपूर्णी, श्री नैना देवी, मां ज्वालामुखी, मां बज्रेश्वरी, मां चामुंडा विख्यात शक्तिपीठ हैं. नवरात्रि के दौरान यहां देश-विदेश के आस्थावान लोगों की भीड़ जुटती है. कोरोना काल में पिछले साल से लेकर अब तक शक्तिपीठों की रौनक गायब रही है. बीच में कुछ समय के लिए कपाट खुले भी थे, लेकिन दूसरी लहर में फिर से बंदिशें लगाई गईं.

इन शक्तिपीठों से जुड़ी कहानियां श्रद्धालुओं को यहां खींच लाती है. कई श्रद्धालु नंगे पैर पैदल आते हैं और कई जमीन पर लेट-लेट कर दर्शन को पहुंचते हैं. मां ज्वालामुखी में बिना बाती और तेल निरंतर ज्योति जलती है. मां चिंतपूर्णी के दर्शन मात्र से सभी चिंताएं दूर होती हैं. इसी तरह श्री नैना देवी और मां चामुंडा तथा मां ब्रजेश्वरी देवी के मंदिरों से अनेक कथाएं जुड़ी हैं.

35 मंदिरों का सरकार ने किया है अधिग्रहण

हिमाचल प्रदेश में शक्तिपीठ व कई प्रख्यात मंदिर सरकारी अधिग्रहण में हैं. प्रदेश के 35 मंदिरों का सरकार ने अधिग्रहण किया है और यहां चढ़ावे के तौर पर आने वाली रकम मंदिर ट्रस्ट जमा करवाता है. उस पैसे से मंदिर परिसर का सौंदर्यीकरण और अन्य सुविधाओं का विकास किया जाता है. साथ ही गरीब कन्याओं की शादी का खर्च भी दिया जाता है.

सबसे अमीर है मां चिंतपूर्णी का मंदिर

सबसे अमीर मंदिर की बात की जाए तो ऊना जिला में मां चिंतपूर्णी का खजाना सबसे अधिक है. चिंतपूर्णी मां के खजाने में एक अरब रुपए से अधिक की एफडी के साथ मंदिर के पास एक क्विंटल 98 किलो सोना है. वहीं, मां नैना देवी मंदिर के ट्रस्ट में 58 करोड़ रुपए से अधिक की बैंक एफडी व एक क्विंटल से अधिक सोना है. मां श्री नैनादेवी के खजाने में 11 करोड़ रुपए से अधिक की नकदी भी है. इस मंदिर के खजाने में एक क्विंटल 80 किलो सोना और 72 क्विंटल से अधिक की चांदी है. सोना-चांदी के हिसाब से केवल दो मंदिर नैना देवी और चिंतपूर्णी ही भरपूर हैं.

मां ज्वालामुखी मंदिर के पास 23 किलो सोना, 8.90 कुंतल चांदी के अलावा 3.42 करोड़ रुपए की नकदी है. कांगड़ा के ही शक्तिपीठ मां चामुंडा के पास 18 किलो सोना है. सिरमौर के त्रिलोकपुर में मां बालासुंदरी मंदिर के पास 15 किलो सोना और 23 कुंतल से अधिक चांदी है. चंबा के लक्ष्मीनारायण मंदिर के पास भी 15 किलो सोना और करोड़ों रुपए की संपत्ति है. मां दुर्गा मंदिर हाटकोटी के पास 4 किलो सोना, 2.87 करोड़ की एफडी व 2.33 करोड़ रुपए नकद हैं.

देवालयों ने पहुंचाई राहत

कोरोना संकट के समय में जब आम जनता को राहत की जरूरत थी तो देवालयों ने भी अपनी भूमिका अदा की. कोरोना के लिए स्थापित कोष में मां चिंतपूर्णी मंदिर व बाबा बालकनाथ मंदिर ट्रस्ट ने पांच-पांच करोड़ रुपए का अंशदान दिया. इसी तरह बिलासपुर से मां नैना देवी ट्रस्ट ने 2.50 करोड़ रुपए व कांगड़ा जिला के विख्यात मां ज्वालामुखी मंदिर ने एक करोड़ रुपए का अंशदान किया था.

बज्रेश्वरी देवी मंदिर कांगड़ा ने पचास लाख रुपए और शिमला के मशहूर कालीबाड़ी मंदिर ने 25 लाख रुपए की आहूति डाली थी. प्रदेश भर के देवालयों ने अंशदान किया. सभी मंदिरों ने सरकार को 15 करोड़ रुपए की राशि कोविड से लड़ाई के लिए भेंट की. ये सिलसिला लगातार जारी है.

कोरोना के कारण चढ़ावे में गिरावट

कोरोना संकट के इस दौर में देवालय भी इसके प्रभाव से अछूते नहीं रहे. श्री नैना देवी मंदिर में इस साल 21 जनवरी से 23 अप्रैल के बीच 6.63 करोड़ रुपए का चढ़ावा आया. महामारी से पहले ये रकम 23 करोड़ सालाना तक होती थी. पिछले साल यानी वर्ष 2020 में कुल 11 करोड़ का चढ़ावा आया. उससे पहले यानी कोरोना से पूर्व 2019 में ये रकम 23 करोड़ रुपए के करीब थी. मां बज्रेश्वरी देवी मंदिर ट्रस्ट को वर्ष 2019 में चढ़ावे के तौर पर 6.55 करोड़ रुपए आए. वर्ष 2020 में ये घटकर 2.07 करोड़ रह गया. मां चामुंडा का चढ़ावा भी 2019 में 4.39 करोड़ रुपए था. वर्ष 2020 में ये घटकर पौने दो करोड़ रुपए रह गया था.

ऑनलाइन चढ़ा चढ़ावा

ऊना जिला के विख्यात मां चिंतपूर्णी मंदिर में इस साल मार्च महीने तक यानी 2021 के शुरुआती तीन महीने में चिंतपूर्णी मंदिर में श्रद्धालुओं ने 5.65 करोड़ रुपए का चढ़ावा अर्पित किया. वर्ष 2020 में मार्च महीने में हिमाचल में लॉकडाउन लगा था. उसके बाद मार्च से अगस्त 2020 तक चिंतपूर्णी मंदिर को कुल 11.75 लाख रुपए का चढ़ावा भेंट हुआ. ये ऑनलाइन अर्पित किया गया था.

वहीं, 2019 में कोरोना से पहले मार्च से अगस्त के बीच चिंतपूर्णी मंदिर को कुल 14.07 करोड़ रुपए का चढ़ावा आया था. राज्य सरकार के मुख्य सचिव अनिल खाची के अनुसार पहली जुलाई से मंदिरों के कपाट दर्शनों के लिए खुलेंगे. कोरोना गाइडलाइंस का पालन करते हुए दर्शन किए जा सकते हैं. मंदिरों में कीर्तन व भंडारों की अनुमति नहीं होगी.

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