शिमला: मंगलवार को सीटू राज्य कमेटी ने कोरोना महामारी का दंश झेल रहे लाखों मजदूरों के लिए प्रदेश के ग्यारह जिलों में जगह-जगह मौन प्रदर्शन किया. इस दौरान सीटू राष्ट्रीय महासचिव ने संगठन की मांगों को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा. मौन प्रदर्शन सीटू की अखिल भारतीय केंद्र के आह्वान पर किया गया. सीटू ने मजदूरों की आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित न करने पर भविष्य में सड़कों पर उतरकर उग्र आंदोलन की चेतावनी दी.
प्रदेश सरकार से शिकायतें
सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने कहा कि केंद्र व प्रदेश सरकारें इस महामारी के दौर में मजदूरों की रक्षा करने में पूरी तरह विफल रही हैं. मजदूरों को पेट भरने व जिंदा रहने के लिए राशन चाहिए, लेकिन उन्हें राशन की जगह प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री के भाषण ही नसीब होते हैं. प्रदेश के ज्यादातर उद्योगों में 22 मार्च के जनता कर्फ्यू के बाद ठेका मजदूरों को कोई वेतन नहीं दिया गया है. शिमला नगर निगम के टूटू स्थित सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट में साढ़े दस हजार रुपये वेतन लेने वाले मजदूरों को मार्च में केवल दो हजार रुपये वेतन दिया गया है. बद्दी के स्टील वर्ल्ड उद्योग जिसमें लगभग एक हजार मजदूर कार्यरत हैं, वहां के मजदूरों को वेतन की अदायगी नहीं हुई है.
ऊना के सबसे बड़े उद्योगों में ठेका मजदूरों को वेतन भुगतान नहीं हुआ है. केंद्र सरकार की 20 व 29 मार्च की अधिसूचनाओं का खुला उल्लंघन हो रहा है. जिसके अनुसार मजदूरों को समय से वेतन मिलना चाहिए व उसमें कोई कटौती नहीं होनी चाहिए. हिमाचल प्रदेश में पूरे देश की तरह ही असंगठित क्षेत्र में कार्यरत मनरेगा व निर्माण मजदूर सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. प्रदेश में इनकी संख्या आठ लाख से ज्यादा है.
प्रदेश सरकार ने इनमें से चार हजार रुपये की घोषणा श्रमिक कल्याण बोर्ड से जुड़े जिन मजदूरों के लिए की है, उनकी संख्या केवल डेढ़ लाख के करीब है. इनके लिए जारी ग्यारह करोड़ की राशि सिर्फ 56000 मजदूरों को ही दो हजार रुपये नसीब हो पाएंगे. इस तरह श्रमिक कल्याण बोर्ड से जुड़े मजदूरों के लगभग एक-तिहाई हिस्से को ही यह आर्थिक फायदा मिल पाएगा और वह भी चार हजार रुपये की जगह सिर्फ दो हजार रुपये की राशि ही मजदूरों को नसीब होगी. इस तरह लगभग साढ़े सात लाख मजदूर इस लाभ से भी वंचित रह जाएंगे.
प्रदेश में माल ढुलाई, रद्दी, रेहड़ी-फड़ी, कुली, सेब आदि की खेती में कार्यरत मजदूर तो श्रमिक कल्याण बोर्ड में पंजीकृत भी नहीं हो सकते और इनकी संख्या भी हजारों में है. सीटू का आरोप है कि सरकार इन मजदूरों के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है. शिमला जैसे शहर में जहां से पूरी सरकार चलती है, इस शहर के अंदर पच्चीस हजार प्रवासी मजदूर कार्यरत हैं, लेकिन सरकार की ओर से इन्हें राशन की कोई व्यवस्था नहीं है और पूरे प्रदेश में यही स्थिति है.
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प्रदर्शकारियों का कहना है कि शिमला जिला प्रशासन ने खुद स्वीकर किया है कि शहर में सिर्फ एक हजार 200 मजदूरों को राशन दिया है, जोकि शहर की कुल श्रम शक्ति का सिर्फ पांच प्रतिशत है. इस तरह मजदूर भारी परेशानी में हैं. मजदूरों को राशन व आर्थिक मदद की दरकार है, लेकिन प्रदेश सरकार अपने प्रयासों में पूरी तरह फेल हो गई है.
सीटू की प्रमुख मांगें
सीटू महासचिव प्रेम गौतम ने केंद्र व प्रदेश सरकार से मांग की है कि मजदूरों,पत्रकारों, कर्मचारियों की छंटनी व वेतन में कटौती बंद की जाए. प्रवासी मजदूरों के प्रति सरकारी उदासीनता बंद की जाए. स्वास्थ्यकर्मियों व अन्य मजदूरों के लिए पीपीई किट का प्रबंध किया जाए. सभी मजदूरों के लिए 7500 रुपये प्रतिमाह की मदद तुरन्त दी जाए. जरूरतमंदों व प्रवासी मजदूरों के लिए भोजन व बुनियादी चीजों का प्रबंध हर हाल में किया जाए.
हिमाचल प्रदेश के श्रमिक कल्याण बोर्ड से जुड़े मजदूरों को चार हजार रुपये की राशि एकमुश्त तुरंत जारी की जाए. आउटसोर्स व ठेका मजदूरों के वेतन में कटौती बंद की जाए. केंद्र सरकार द्वारा कार्य दिवस को 8 से 12 घण्टे करने की नीति वापस ली जाए. प्रदेश में खैर कटाई वाले हजारों प्रवासी मजदूरों को रहने-खाने का उचित प्रबंध किया जाए. मनरेगा व निर्माण कार्य को सुचारू रूप से चलाने का प्रबंध किया जाए. बजट में की गई वेतन बढ़ोतरी अनुसार मजदूरों को वेतन का भुगतान सुनिश्चित किया जाए.