शिमला: प्रदेश हाईकोर्ट ने यौन उत्पीड़न के आरोप में कैद 70 वर्षीय ससुर को जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए हैं. 17 मई को पीड़िता बहू ने अपने ससुर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए महिला पुलिस थाना नाहन में प्राथमिकी दर्ज की थी.
19 मई को प्रार्थी को गिरफ्तार कर लिया गया था. पीड़िता के अनुसार, उसकी शादी वर्ष 2012 में हुई थी और साल 2014 में उसकी एक बेटी हुई. बेटी के जन्म से कुछ समय पहले से उसका ससुर उसके साथ अजीब सी हरकतें करता रहता था.
वर्ष 2017 में जब उसका पति इलाज के लिए चंडीगढ़ गया तो ससुर ने पहली बार अपनी बहू का यौन उत्पीड़न किया और ये बात किसी को भी न बताने की धमकी दी. इसके बाद अक्सर वह अकेलेपन का फायदा उठाकर अपनी बहू का यौन उत्पीड़न करने लगा.
पीड़िता के अनुसार, मार्च 2019 में ससुर ने उसका फिर यौन उत्पीड़न किया और 18 अप्रैल को परिवार के अन्य सदस्यों से मिलकर उसे घर से बाहर निकाल दिया. 17 मई को पीड़िता ने इसकी शिकायत महिला पुलिस थाना नाहन में की. भारतीय दंड संहिता की धारा 376 व 506 के तहत पुलिस ने आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया.
19 मई को प्रार्थी को गिरफ्तार किया गया. प्रार्थी की ओर से हाईकोर्ट में दायर जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि प्राथमिकी दर्ज होने में हुई देरी व जांच में सामने आए तथ्यों के आधार पर पीड़िता के बयानों पर कतई भरोसा नहीं किया जा सकता. पीड़िता ने ये कहानी केवल सम्पत्ति हड़पने के लिए बनाई है. प्रार्थी की ओर से बताया गया कि उसकी बहु के किसी अन्य व्यक्ति से अवैध संबंध थे. मामले में सुनवाई के दौरान प्रार्थी का बेटा यानि पीड़िता का पति भी कोर्ट में मौजूद था.
बेटे ने भी पिता पर लगाए आरोपों को झूठा व बेबुनियाद बताया. न्यायाधीश संदीप शर्मा ने जमानत याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि वैसे तो प्रार्थी व पीड़िता द्वारा लगाए गए आरोप-प्रत्यारोप निचली अदालत द्वारा ट्रायल के दौरान जांचे जाने हैं फिर भी इस जमानत याचिका के निपटारे के लिए इन्हें देखना जरूरी है.कोर्ट ने कहा कि मामले के रिकॉर्ड व पीड़िता के आचरण को ध्यान में रखते हुए हुए प्रार्थी को लंबे समय तक कैद नहीं रखा जा सकता. वह भी तब जब आरोपी पर लगाए गए आरोप सिद्ध नहीं हुए हैं. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि एक शादीशुदा महिला जो एक बच्चे की मां भी है, उससे यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह अपने खिलाफ हो रहे उत्पीड़न पर इतने लंबे समय तक चुप रहे.
पीड़िता ने प्राथमिकी दर्ज करने में देरी का कोई कारण स्पष्ट नहीं किया. रिकॉर्ड के अनुसार, उसका उत्पीड़न 2017 में हुआ तो पीड़िता 2 साल चुप क्यों रही. कोर्ट ने प्रार्थी की दलीलों से सहमति जताते हुए उसे सशर्त जमानत पर रिहा करने के आदेश जारी कर दिए.