शिमला: किसान समुदाय को प्राकृतिक खेती तकनीक से जोड़ने के लिए हर जिले में एक आदर्श प्राकृतिक खेती गांव बनाया जाएगा जो जिला के किसानों को इस विधि से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करेगा. यह बात प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना की समीक्षा बैठक में सचिव कृषि, डॉ. अजय शर्मा ने कही.
उन्होंने बैठक की अध्यक्षता करते हुए कहा की राज्य में प्राकृतिक खेती तेजी से बढ़ रही है और हमें परिवर्तन की इस बयार को और तेज करना होगा. उन्होंने कहा कि प्राकृतिक विधि से तैयार उत्पाद की मार्केटिंग के लिए लंबे समय से मांग उठ रही है और इसके लिए रणनीति बनाकर जल्द ही काम शुरू किया जाएगा. डॉ. अजय शर्मा ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि प्राकृतिक खेती छोड़ने वाले किसानों के बारे में डेटा तैयार किया जाए ताकि उनके इस खेती को छोड़ने के कारणों के बारे में पता चल सके.
बैठक के दौरान प्राकृतिक खेती के राज्य परियोजना निदेशक राकेश कंवर ने कहा कि फील्ड में जुटे अधिकारी इस परियोजना की रीढ़ हैं और इसे मूर्त रूप दे रहे हैं. इसी का नतीजा है कि प्रदेशभर के 1 लाख 22 हजार से ज्यादा किसान 7,120 हैक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती से विविध फसलें उगा रहे हैं.
उन्होंने सभी जिला के अधिकारियों को तय समय सीमा के भीतर निर्धारित लक्ष्य प्राप्त करने के निर्देश दिए. परियोजना के कार्यकारी निदेशक प्रो राजेश्वर सिंह चंदेल ने बैठक में प्राकृतिक खेती पर एक प्रस्तुतीकरण के माध्यम से इस खेती के विभिन्न पहलुओं को सामने रखा. इस दौरान प्राकृतिक खेती के प्रमाणीकरण और भविष्य की रणनीति के बारे में भी विस्तारपूर्वक चर्चा की गई.
किसानों के स्व-प्रमाणीकरण के लिए जिलों से लिया जा रहा डेटा
राज्य परियोजना कार्यान्वयन इकाई प्राकृतिक खेती किसानों के प्रमाणीकरण की दिशा में काम कर रही है. योजना के तहत किसानों के स्व-प्रमाणीकरण के लिए पायलट आधार पर दो जिलों से डेटा एकत्रित किया जा रहा है. इस एकत्रित डेटा के आधार पर विश्लेषण के पश्चात प्राकृतिक खेती कर रहे किसानों को विशिष्ट, अंतराल एवं साधारण किसान की रेटिंग दी जाएगी. इस प्रमाणीकरण से किसान-बागवानों की मार्केटिंग की समस्या भी हल होगी और उन्हें खुले बाजार में अपने उत्पाद के बेहतर दाम मिलेंगे.
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