शिमला: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अटल रोहतांग टनल का उद्घाटन करने के लिए 29 सितंबर को हिमाचल आएंगे. प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से प्रदेश सरकार को उनके प्रस्तावित दौरे के बारे में सूचित कर दिया गया है.
लाहौल स्पीति से विधायक और प्रदेश सरकार के मंत्री रामलाल मारकंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री के दौरे के बाद यह टनल जनता को समर्पित कर दी जाएगी, जिससे लाहौल स्पीति के लोगों की सदियों से चली आ रही दिक्कत दूर होगी. साथ ही सामरिक दृष्टि से भी यह टनल बहुत महत्वपूर्ण है.
रामलाल मारकंडा ने कहा कि रोहतांग टनल के बन जाने से भारतीय सेना बहुत आसानी से और बहुत ही कम समय में पाकिस्तान और चीन की सीमा तक पहुंच सकती है. इससे बॉर्डर पर पहले जो स्टॉक जमा किया जाता था अब उसे जमा करने की जरूरत नहीं रहेगी. इससे भारत सरकार की करोड़ों रुपए की बचत होगी. साथ ही आवश्यकता पड़ने पर सेना बहुत जल्द देश की सीमा तक पहुंच सकेगी.
28 अगस्त को टनल का निरीक्षण करेंगे सीएम
टनल के निरीक्षण के लिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी 28 अगस्त को मनाली जा रहे हैं. लगभग 9 किलोमीटर की रोहतांग टनल बनने से कोठी से नॉर्थ पोर्टल तक 47 किलोमीटर की दूरी कम हो जाएगी. इससे स्पीति, पांगी और लद्दाख के लोगों को बहुत लाभ होगा. इस चैनल के बन जाने से बर्फ से जुड़े साहसिक खेल भी अब लाहौल स्पीति में आयोजित किए जा सकेंगे, जिससे लाहौल स्पीति अंतरराष्ट्रीय पर्यटन के मानचित्र पर और दृढ़ता से उभर कर सामने आएगा.
सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण
लेह लद्दाख में तैनात भारतीय सेना के लिए अटल टनल बहुत बड़ा वरदान साबित होगी. पीर पंजाल की पहाड़ियों को काटकर बनाई गई इस चैनल के नीचे से एक और टनल बनाई गई है. इमरजेंसी में इसे प्रयोग किया जाएगा. टनल पूरा होने के बाद भारतीय सेना की मूवमेंट आसान हो जाएगी और उसे सामरिक रूप से भी बहुत लाभ होगा.
पड़ोसी देश चीन की सेना को नाकों चने चबाने के लिए भारतीय सेना की ताकत में और मजबूती आएगी. टनल का निर्माण 4000 करोड़ रुपए से अधिक की राशि से हुआ है. इसी साल इसका लोकार्पण कर दिया जाएगा. 3 जून 2002 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने इस टनल का सपना देखा था. ये सपना अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में पूरा होगा.
इंदिरा गांधी के समय में की गई थी टनल की परिकल्पना
हालांकि, रोहतांग टनल जिसे अब अटल टनल का नाम दिया गया है इसकी परिकल्पना इंदिरा गांधी के समय में भी की गई थी. जून 2010 को सोनिया गांधी ने विधिवत शिलान्यास कर रोहतांग टनल के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया था, लेकिन इस टनल के काम ने नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में गति पकड़ी.
अटल टनल के शुरू हो जाने के बाद भारत की सेना चीन बॉर्डर तक आसानी से पहुंच सकेगी. साथ ही लेह रीजन के लिए सेना की पहुंच और आसान हो जाएगी. इससे सेना सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय करने से बच जाएगी और किसी भी मौसम में आसानी से चीन बॉर्डर तक पहुंचा जा सकेगा.
पहले जहां लेह बॉर्डर पर भारी मात्रा में सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सामान जमा करना पड़ता था. सर्दियों के दिनों में लेह बॉर्डर पर सामान पहुंचाने और आर्मी को जाने के लिए श्रीनगर एयरपोर्ट से करगिल होते हुए लेह पहुंचना पड़ता था. इससे सरकार पर भी भारी खर्च पड़ता था, लेकिन अब इस टनल के निर्माण के बाद इसकी जरूरत भी खत्म हो जाएगी.
बॉर्डर पर चाइना की तरफ से इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट पर काफी ध्यान दिया गया है. बॉर्डर के साथ लगते क्षेत्रों में बेहतरीन सड़क निर्माण किया गया है, ताकि मशीनरी और सैनिकों के लिए यातायात आसान और सुचारू हो सके. इसके अलावा प्राकृतिक रूप से भी चाइना बॉर्डर पर तिब्बत का पठार पड़ता है, जोकि सीधा और सपाट है. ऐसे में वहां सड़क निर्माण और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के लिए अधिक मेहनत और खर्च नहीं करना पड़ता है.
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