शिमला: प्रदेश के प्रत्येक जिले में वृद्धाश्रम न बनाने के मामले में हाईकोर्ट ने प्रधान सचिव (सामाजिक न्याय और अधिकारिता) को अब 17 दिसंबर के लिए तलब किया है.मामले में सुनवाई के दौरान स्वास्थ्य कारणों के चलते प्रधान सचिव उपस्थित नहीं हो पाए थे. हालांकि कोर्ट ने उन्हें उपस्थिति से छूट प्रदान करते हुए उपसचिव (सामाजिक न्याय और अधिकारिता) द्वारा पिछले आदेशों की अनुपालना में दायर शपथ पत्र को रिकॉर्ड पर लेने से इनकार कर दिया.
कोर्ट ने कहा कि उपसचिव (सामाजिक न्याय और अधिकारिता) शपथ पत्र दाखिल करने के लिए सक्षम नहीं हैं. पिछली सुनवाई के दौरान राज्य के अधिकारियों के दृष्टिकोण पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए मुख्य न्यायाधीश लिंगप्पा नारायण स्वामी व न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ कि खंडपीठ ने स्पष्ट किया था कि इस तरह के संवेदनशील मुद्दे में राज्य सरकार के अधिकारियो को लचर कार्यप्रणाली नहीं अपनानी चाहिए.
खंडपीठ ने प्रधान सचिव को आदेश दिए थे कि वे शपथपत्र के माध्यम से कोर्ट को बताए कि प्रदेश में तकरीबन कितने वृद्ध हैं, जिन्हें वृद्ध आश्रम की जरुरत है. कोर्ट ने राज्य सरकार को ये भी आदेश दिए हैं कि प्रदेश के सभी जिलों में वृद्ध आश्रम बनाए जाने के लिए राज्य सरकार क्या कदम उठा रही है.
याचिकाकर्ता वंदना मिश्रा ने अदालत को बताया गया कि संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (भारत) द्वारा जारी आंकड़ों और वर्ष 2011 में आयोजित जनगणना के तहत हिमाचल प्रदेश उच्चतम वरिष्ठ नागरिक कि श्रेणी में देश का चौथा राज्य है.
कोर्ट को बताया गया कि हिमाचल प्रदेश में 60 वर्ष की उम्र से अधिक सात लाख व्यक्ति हैं, जो प्रदेश की कुल जनसंख्या का 10.2% है, और राष्ट्रीय औसत 8.6% से अधिक है. याचिकाकर्ता ने अदालत से गुहार लगाई है कि राज्य सरकार को आदेश दिए जाएं कि प्रदेश में वृद्धाश्रम, डे केयर सेंटर, हेल्प लाइन स्थापित किए जाएं. मामले में आगामी सुनवाई 17 दिसंबर को होगी.