शिमला: वैश्विक महामारी कोरोना ने जीवन की रफ्तार को एकदम से लगाम लगा दी थी. इस वर्ष मार्च महीने में जब लॉकडाउन घोषित किया गया था तो समाज के हर वर्ग में परेशानी और असमंजस की लहर दौड़ गई थी. जनता को समझ नहीं आ रहा था कि जिंदगी की गाड़ी कैसे चलेगी.
लॉकडाउन के कारण समाज का जो वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ वह श्रमिक वर्ग था. हिमाचल में बड़ी संख्या से बिहार और झारखंड व कश्मीर के मजदूर काम करते थे. लॉकडाउन में उन्हें कई तरह की परेशानियां झेलनी पड़ी.
जब लॉकडाउन लगा था तो एम्स बिलासपुर के निर्माण कार्य में लगे श्रमिक तो रात को ही घर जाने के लिए निकल पड़े थे, तब जिला प्रशासन ने किसी तरह उन्हें मनाया. इसी तरह कश्मीर के श्रमिक भी शिमला सहित जिलों के अनेक हिस्सों में काम कर रहे थे और वह भी घर जाने की जिद पर अड़ गए थे.
हमीरपुर में तो प्रवासी श्रमिक ने आत्महत्या का प्रयास भी किया था. ईटीवी भारत ने उस प्रवासी श्रमिक का दर्द जिला प्रशासन के सामने लाया और उसे मदद दिलवाई. यह सही है कि हिमाचल सरकार ने प्रवासी मजदूरों को निशुल्क राशन की व्यवस्था की थी. इस कारण उन्हें रोजी-रोटी की चिंता से तो मुक्ति मिल गई थी, लेकिन उनके घर जाने की व्यवस्था नहीं हो पा रही थी.
हिमाचल में 23 मार्च को लगा लॉकडाउन
हिमाचल प्रदेश में 23 मार्च को लॉकडाउन घोषित किया गया था उस समय विधानसभा का बजट सत्र चल रहा था. अचानक से सब कुछ बंद हो गया तो प्रवासी श्रमिकों के सामने मजदूरी और रोजी-रोटी का संकट आ गया, हालांकि हिमाचल सरकार ने श्रमिकों का पलायन रोकने के लिए उन्हें राशि व अन्य सुविधाएं देने का भरोसा दिया.
हिमाचल में स्थापित किए गए 24 खाद्य शिविर
मई महीने में सरकार ने 24 खाद्य शिविर स्थापित किए. यह सही है कि देश के बड़े राज्यों के मुकाबले श्रमिकों के पलायन को लेकर हिमाचल में स्थिति अधिक गंभीर नहीं थी, लेकिन कोरोना के प्रारंभिक समय में जरूर प्रवासी मजदूर परेशान हुए थे.
राज्य के बिलासपुर, हमीरपुर, कांगड़ा के अलावा इंडस्ट्रियल एरिया बीबीएन और परवाणू में एक लाख से अधिक प्रवासी श्रमिक कार्यरत थे. इनमें से बिहार, झारखंड और कश्मीर के श्रमिक शामिल थे. उन्हें पलायन के दर्द से रोकने के सरकार ने खाद्य शिविर लगाए और निशुल्क राशन आदि वितरित किया.
पढ़ेंः कोरोना काल में संकटमोचक बने देवभूमि के ये हीरो, हर मोर्चे पर डटे रहे कोरोना वॉरियर्स
कुल 24 खाद्य शिविरों में मई महीने में ही जिला बिलासपुर में 689 लोग, चंबा में 2,688, कांगड़ा में 238, किन्नौर में दो, कुल्लू में 678, मंडी में 245, शिमला में 1,379 और सिरमौर में 6,834 लोगों को इन शिविरों में भोजन प्रदान किया गया था.
19 राहत शिविर और आश्रय स्थल बनाए गए
साथ ही हिमाचल के 19 राहत शिविरों और आश्रय स्थलों में 500 से अधिक लोग ठहराए गए थे. स्कूल और मंदिर भी श्रमिकों के आश्रय स्थल बने थे. कांगड़ा जिला में संचालित किए गए तीन राहत शिविरों में 89, कुल्लू के क्षेत्र में 8, मंडी के शिविर में 18, शिमला के 2 शिविरों में 94, सिरमौर के 5 शिविरों में 69 और सोलन के सात शिविरों में 234 श्रमिकों को आवास की सुविधा दी गई थी.
यही नहीं श्रमिकों को रोजगार देने वाली फैक्ट्री मालिकों ने वर्किंग स्टेशन पर ही छह हजार से अधिक लोगों को आवास व भोजन उपलब्ध करवाया गया था. किन्नौर जिला में काम करने वाले नेपाली मूल के श्रमिक दिल बहादुर और यूपी के मुन्ना और अमरनाथ सहित झारखंड के मनोहर लाल को समय पर मदद से खुशी हुई थी.
हिमाचल से 32 हजार मजदूर अपने घर लौटे
वहीं, अगर देश की स्थिति की बात की जाए तो केंद्रीय श्रम मंत्रालय के मुताबिक सबसे ज्यादा यूपी से 3,249,638 पलायन हुआ था. दिल्ली, मुम्बई जैसे महानगरों में बिहार से अधिक श्रमिक यूपी से थे. बिहार के 1,300,612 लाख मजदूर वापिस आपने गांव गए थे.
इसके अलावा पश्चिमी बंगाल के 1,384,693 और राजस्थान के 1,300,831 लोगों का पलायन हुआ था. पांचवे नंबर पर मध्यप्रदेश था जहां के 753,581 श्रमिक वापस अपने गांव गए. हिमाचल में स्थिति ऐसी नहीं थी. यहां के एक लाख से अधिक श्रमिकों में से 32,000 ही अपने मूल स्थानों को लौटे.
ये भी पढ़ेंः साल 2020: भाजपा के मुखिया को देना पड़ा इस्तीफा, कांग्रेस को मिला नया प्रभारी