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इस डॉक्टर के खून में है सेवा का जुनून, दुर्लभ रक्त ग्रुप के चलते 78 बार कर चुके हैं रक्तदान - सेवा का जुनून

डॉक्टरी एक ऐसा पेशा है जिसकी गरिमा न केवल इसके सफेद लिबास, बल्कि इस लिबास को पहनने वाले के सेवा भाव से भी बढ़ती है. ऐसे ही एक सेवाभावी डॉक्टर हैं हिमाचल स्वास्थ्य विभाग (Himachal Health Department) में उप निदेशक डॉ. रमेश चंद. दुर्लभ रक्त ग्रुप ओ नेगेटिव वाले रमेश चंद (Rare Blood group) ने वर्ष 1984 से लेकर अब तक 78 दफा रक्तदान किया है. 1984 में उन्होंने कॉलेज के प्रथम वर्ष में एक मरीज की जान बचाने के लिए पहली बार रक्त दान किया था. पढ़ें पूरी खबर..

Dr. Ramesh Chand
डॉ. रमेश चंद.
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Published : Jun 14, 2022, 12:47 PM IST

शिमला: डॉक्टरी एक ऐसा पेशा है जिसकी गरिमा न केवल इसके सफेद लिबास, बल्कि इस लिबास को पहनने वाले के सेवा भाव से भी बढ़ती है. ऐसे ही एक सेवाभावी डॉक्टर हैं हिमाचल स्वास्थ्य विभाग (Himachal Health Department) में उप निदेशक डॉ. रमेश चंद. दुर्लभ रक्त ग्रुप ओ नेगेटिव वाले रमेश चंद (Rare Blood group) ने वर्ष 1984 से लेकर अब तक 78 दफा रक्तदान किया (Ramesh has donated blood) है. 1984 में उन्होंने कॉलेज के प्रथम वर्ष में एक मरीज की जान बचाने के लिए पहली बार रक्त दान किया था. इमरजेंसी में तो डॉ. रमेश हमेशा रक्तदान करते ही आए हैं, लेकिन अपने जन्मदिन पर ये कहीं भी हों रक्तदान करना नहीं भूलते.

वर्ष 2004 में जनवरी की सर्द सुबह में जब शिमला में चार फीट से अधिक बर्फ पड़ी हुई थी, तो डॉक्टर रमेश एक युवक नरेश कुमार को रक्त देने के लिए अपने घर से पैदल अस्पताल पहुंचे थे. अगर नरेश कुमार को समय पर रक्त न मिलता तो उनकी जान खतरे में आ सकती थी. डॉ रमेश चंद्र ने बताया कि एक आदमी अपना रक्त देकर 4 लोगों की जान बचा सकता है. उन्होंने कहा कि कि 18 साल से लेकर 65 वर्ष की आयु तक कोई भी युवा और व्यक्ति 4 महीने में एक बार रक्तदान कर सकते हैं.

उन्होंने कहा कि रक्तदान करने से किसी मरीज की जान बचाई जा सकती है. पहले लोगों में रक्तदान के बारे में जागरूकता नहीं थी और लोग भी रक्तदान करने से बचते थे. लेकिन अब लोग जागरूक हैं और बढ़-चढ़ कर रक्तदान शिविरों में हिस्सा लेते हैं. डॉक्टर रमेश चंद के पास पीड़ित मानवता के दु:ख हरने के सभी सूत्र हैं. उनके खून में सेवा का जुनून तो है ही, लेकिन व्यवहार में दया और कोमलता के गुण भी है.

डॉ. रमेश ने कहा कि डॉक्टरी (HP Health Department deputy director Ramesh Chand) पेशे के सफेद लिबास की गरिमा बनाए रखने के लिए एक डॉक्टर में सेवाभाव का होना जरूरी है. रक्तदान करने से शरीर स्वस्थ रहता है, मन में सुकून आता है और आत्मा भी सेवा करने से संतुष्ट रहती है. उन्होंने कहा कि मरीजों की तकलीफ को ध्यान से सुनने पर उनकी आधी बीमारी तो यूं ही दूर हो जाती है. वे अपने सेवाभाव की प्रवृति का श्रेय अपने परिवार को देते हैं, जो उनके इस मिशन में सहयोग करते हैं.

शिमला: डॉक्टरी एक ऐसा पेशा है जिसकी गरिमा न केवल इसके सफेद लिबास, बल्कि इस लिबास को पहनने वाले के सेवा भाव से भी बढ़ती है. ऐसे ही एक सेवाभावी डॉक्टर हैं हिमाचल स्वास्थ्य विभाग (Himachal Health Department) में उप निदेशक डॉ. रमेश चंद. दुर्लभ रक्त ग्रुप ओ नेगेटिव वाले रमेश चंद (Rare Blood group) ने वर्ष 1984 से लेकर अब तक 78 दफा रक्तदान किया (Ramesh has donated blood) है. 1984 में उन्होंने कॉलेज के प्रथम वर्ष में एक मरीज की जान बचाने के लिए पहली बार रक्त दान किया था. इमरजेंसी में तो डॉ. रमेश हमेशा रक्तदान करते ही आए हैं, लेकिन अपने जन्मदिन पर ये कहीं भी हों रक्तदान करना नहीं भूलते.

वर्ष 2004 में जनवरी की सर्द सुबह में जब शिमला में चार फीट से अधिक बर्फ पड़ी हुई थी, तो डॉक्टर रमेश एक युवक नरेश कुमार को रक्त देने के लिए अपने घर से पैदल अस्पताल पहुंचे थे. अगर नरेश कुमार को समय पर रक्त न मिलता तो उनकी जान खतरे में आ सकती थी. डॉ रमेश चंद्र ने बताया कि एक आदमी अपना रक्त देकर 4 लोगों की जान बचा सकता है. उन्होंने कहा कि कि 18 साल से लेकर 65 वर्ष की आयु तक कोई भी युवा और व्यक्ति 4 महीने में एक बार रक्तदान कर सकते हैं.

उन्होंने कहा कि रक्तदान करने से किसी मरीज की जान बचाई जा सकती है. पहले लोगों में रक्तदान के बारे में जागरूकता नहीं थी और लोग भी रक्तदान करने से बचते थे. लेकिन अब लोग जागरूक हैं और बढ़-चढ़ कर रक्तदान शिविरों में हिस्सा लेते हैं. डॉक्टर रमेश चंद के पास पीड़ित मानवता के दु:ख हरने के सभी सूत्र हैं. उनके खून में सेवा का जुनून तो है ही, लेकिन व्यवहार में दया और कोमलता के गुण भी है.

डॉ. रमेश ने कहा कि डॉक्टरी (HP Health Department deputy director Ramesh Chand) पेशे के सफेद लिबास की गरिमा बनाए रखने के लिए एक डॉक्टर में सेवाभाव का होना जरूरी है. रक्तदान करने से शरीर स्वस्थ रहता है, मन में सुकून आता है और आत्मा भी सेवा करने से संतुष्ट रहती है. उन्होंने कहा कि मरीजों की तकलीफ को ध्यान से सुनने पर उनकी आधी बीमारी तो यूं ही दूर हो जाती है. वे अपने सेवाभाव की प्रवृति का श्रेय अपने परिवार को देते हैं, जो उनके इस मिशन में सहयोग करते हैं.

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