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कोरोना इफेक्ट: शिमला में घोड़ा मालिकों पर कोरोना की मार, नहीं मिल रही सवारियां

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Published : Aug 19, 2020, 2:19 PM IST

शिमला में घुड़सवारी कराने वालों को कोरोना के कारण आर्थिक तौर पर संकट खड़ा हो गया है. घोड़ा मालिकों का कहना है कि पिछले कुछ महीने से उनका काम ठप है. उन्हें आर्थिक तौर पर कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

corona impact on horse riding work
घुड़सवारी कराने वालों पर कोरोना का असर

शिमला: कोरोना की वजह से शिमला में घुड़सवारी कराने वालों को आर्थिक तौर पर संकट खड़ा हो गया है. घोड़ा मालिकों का कहना है कि पिछले कुछ महीने से उनका काम ठप है. उन्हें आर्थिक तौर पर कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

ऐतिहासिक रिज मैदान पर घोड़ों का काम करने वाले मुश्ताक बताते हैं कि वे पिछले 25 सालों से ये काम कर रहे हैं, लेकिन इस दौरान ऐसा समय कभी नहीं देखा, जब काम पूरी तरह से ठप पड़ गया.

मुश्ताक बताते हैं कि कोरोना काल में घोड़ों का काम पूरी तरह से खत्म हो गया. इसके चलते कई लोग उनकी मदद के लिए भी सामने आए. उन्होंने कहा कि 15 अगस्त को करीब 1800 रुपये तक कमा लेते थे. इसमें से घोड़ों पर हर रोज 600 रुपये खर्च हो जाता था. आजकल मुश्किल से करीब 400 रुपये की कमाई होती है.

वीडियो.

मुश्ताक ने कहा कि घोड़ों का काम करने वाले कुछ लोग इनका खर्चा न उठा पाने पर अपने गांव चले गए. कुछ ही लोग यहां पर रह गए हैं. उन्होंने कहा कि गांव में कमाई का और साधन नहीं है, जिसके चलते वे यहीं पर रह गए.

सुभाष चंद बताते हैं कि इन दिनों सवारियां न मिलने के कारण कमाई बिल्कुल नहीं हो रही है, लेकिन घोड़ों पर आने वाला खर्चा पहले की तरह ही है. उन्होंने कहा कि कमाई न होने के बावजूद घोड़ों के चारे पर उन्हें खर्च करना पड़ रहा है.

सुभाष चंद कहते हैं कि रिज पर पर्यटकों के साथ-साथ स्थानीय लोग भी घोड़ों पर सवारी किया करते थे, लेकिन कोरोना के चलते पर्यटक कहीं भी आने से परहेज कर रहे हैं. साथ ही स्थानीय लोग भी कोरोना महामारी के चलते घरों से कम ही बाहर निकलते हैं. उन्होंने कहा कि पहले यहां स्कूली बच्चे घोड़ों पर सवारी करते थे, लेकिन स्कूल बंद होने के कारण बच्चे घर पर ही हैं. इसके कारण उनकी आमदनी नहीं हो रही है.

शेर सिंह कहते हैं कि पहले उनका घोड़ों का काम अच्छा चलता था, लेकिन कोरोना ने उनका काम बिल्कुल खत्म कर दिया है. उन्होंने कहा कि वे यहां करीब 45 साल से काम कर रहे हैं. कोरोना के चलते लगाए गए लॉकडाउन के कारण साढ़े 3 महीने घोड़े अंदर ही रहे और इनका काम बिल्कुल भी नहीं हुआ. इस दौरान घोड़ों का खर्चा करने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा. उन्होंने कहा कि इसके अलावा उनके पास रोजगार का कोई साधन नहीं है. इसी काम से वे अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं.

शेर सिंह कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान उनके दो घोड़ों की मौत हो गई. वहीं, अब पैसे न होने के चलते घोड़े नहीं खरीद पा रहे हैं. अब पैसे इकट्ठे कर घोड़े खरीदने पड़ेंगे, ताकि अपने परिवार को पाल सकें.

ये भी पढ़ें: हिमाचल विधानसभा का मानसून सत्र तय, कोरोना संकट में होंगी 10 बैठकें

शिमला: कोरोना की वजह से शिमला में घुड़सवारी कराने वालों को आर्थिक तौर पर संकट खड़ा हो गया है. घोड़ा मालिकों का कहना है कि पिछले कुछ महीने से उनका काम ठप है. उन्हें आर्थिक तौर पर कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

ऐतिहासिक रिज मैदान पर घोड़ों का काम करने वाले मुश्ताक बताते हैं कि वे पिछले 25 सालों से ये काम कर रहे हैं, लेकिन इस दौरान ऐसा समय कभी नहीं देखा, जब काम पूरी तरह से ठप पड़ गया.

मुश्ताक बताते हैं कि कोरोना काल में घोड़ों का काम पूरी तरह से खत्म हो गया. इसके चलते कई लोग उनकी मदद के लिए भी सामने आए. उन्होंने कहा कि 15 अगस्त को करीब 1800 रुपये तक कमा लेते थे. इसमें से घोड़ों पर हर रोज 600 रुपये खर्च हो जाता था. आजकल मुश्किल से करीब 400 रुपये की कमाई होती है.

वीडियो.

मुश्ताक ने कहा कि घोड़ों का काम करने वाले कुछ लोग इनका खर्चा न उठा पाने पर अपने गांव चले गए. कुछ ही लोग यहां पर रह गए हैं. उन्होंने कहा कि गांव में कमाई का और साधन नहीं है, जिसके चलते वे यहीं पर रह गए.

सुभाष चंद बताते हैं कि इन दिनों सवारियां न मिलने के कारण कमाई बिल्कुल नहीं हो रही है, लेकिन घोड़ों पर आने वाला खर्चा पहले की तरह ही है. उन्होंने कहा कि कमाई न होने के बावजूद घोड़ों के चारे पर उन्हें खर्च करना पड़ रहा है.

सुभाष चंद कहते हैं कि रिज पर पर्यटकों के साथ-साथ स्थानीय लोग भी घोड़ों पर सवारी किया करते थे, लेकिन कोरोना के चलते पर्यटक कहीं भी आने से परहेज कर रहे हैं. साथ ही स्थानीय लोग भी कोरोना महामारी के चलते घरों से कम ही बाहर निकलते हैं. उन्होंने कहा कि पहले यहां स्कूली बच्चे घोड़ों पर सवारी करते थे, लेकिन स्कूल बंद होने के कारण बच्चे घर पर ही हैं. इसके कारण उनकी आमदनी नहीं हो रही है.

शेर सिंह कहते हैं कि पहले उनका घोड़ों का काम अच्छा चलता था, लेकिन कोरोना ने उनका काम बिल्कुल खत्म कर दिया है. उन्होंने कहा कि वे यहां करीब 45 साल से काम कर रहे हैं. कोरोना के चलते लगाए गए लॉकडाउन के कारण साढ़े 3 महीने घोड़े अंदर ही रहे और इनका काम बिल्कुल भी नहीं हुआ. इस दौरान घोड़ों का खर्चा करने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा. उन्होंने कहा कि इसके अलावा उनके पास रोजगार का कोई साधन नहीं है. इसी काम से वे अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं.

शेर सिंह कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान उनके दो घोड़ों की मौत हो गई. वहीं, अब पैसे न होने के चलते घोड़े नहीं खरीद पा रहे हैं. अब पैसे इकट्ठे कर घोड़े खरीदने पड़ेंगे, ताकि अपने परिवार को पाल सकें.

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