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अपने-अपने दावे, अपनी-अपनी सरकार, एग्जिट पोल से पहले हिमाचल भाजपा का महामंथन

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Published : Nov 29, 2022, 9:28 PM IST

Updated : Nov 30, 2022, 6:22 PM IST

हिमाचल में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान हो चुका है और अब चुनावी परिणाम की उल्टी गिनती भी शुरू हो गई है. 8 दिसंबर को मतगणना होनी है. रोमांच और उत्सुकता के लिहाज से देखें तो इस बार हिमाचल विधानसभा का चुनाव (Himachal election 2022) सबसे अलग है. कांग्रेस सत्ता विरोधी रुझान की ओर ताक लगाए बैठी है तो भाजपा का मन डबल इंजन सरकार तथा पॉजिटिव वोटिंग से बहल रहा है. दोनों ही दल सत्ता में आने का दावा तो कर रहे हैं, लेकिन भीतर ही भीतर एक अजीब सा भय भी है. पढे़ं पूरी खबर...

Himachal election 2022
Himachal election 2022

शिमला: रोमांच और उत्सुकता के लिहाज से देखें तो इस बार हिमाचल विधानसभा का चुनाव (Himachal election 2022) सबसे अलग है. कांग्रेस सत्ता विरोधी रुझान की ओर ताक लगाए बैठी है तो भाजपा का मन डबल इंजन सरकार तथा पॉजिटिव वोटिंग से बहल रहा है. दोनों ही दल सत्ता में आने का दावा तो कर रहे हैं, लेकिन भीतर ही भीतर एक अजीब सा भय भी है. हिमाचल भाजपा मतदान के बाद से विभिन्न स्तरों पर वोटिंग पैटर्न और प्रत्याशियों की परफार्मेंस का आकलन कर चुकी है, लेकिन पार्टी ने गुजरात चुनाव में मतदान के बाद एग्जिट पोल आने से पहले एक और मीटिंग रखी है. संभवत: ये बैठक चार दिसंबर को होगी. इसमें मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से लेकर संगठन के पदाधिकारी और पार्टी प्रत्याशी भाग लेंगे.

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इस समय पोस्टल बैलेट से मतदान जारी है. ऐसे में भाजपा सभी पहलुओं पर चर्चा करेगी और सीट वाइज आकलन करेगी कि कहां कैसी परफार्मेंस रही है. इसे समीक्षा बैठक भी कहा जा सकता है. भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप के अनुसार अभी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी दिल्ली में एमसीडी चुनाव में व्यस्त हैं. इसके अलावा संगठन व सरकार के बीस से अधिक नेता दिल्ली में प्रचार कर रहे हैं. वहां प्रचार से निपटने के बाद शिमला में बैठक रखी जाएगी.

भाजपा हिमाचल में रिवाज बदलना चाहती (Mission repeat of BJP in Himachal) है. चुनाव प्रचार के दौरान भी भाजपा नेताओं ने निरंतर ये दावा किया कि इस बार पांच साल बाद सत्ता बदलने वाला रिवाज ही बदल देंगे. वर्ष 2017 में चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी कहा था कि हिमाचल में अब पांच साल के लिए नहीं कम से कम पंद्रह साल के लिए सरकार भाजपा की बनाएंगे. फिलहाल, इस चुनाव में ओल्ड पेंशन स्कीम और कर्मचारियों से जुड़े मुद्दों ने भाजपा के पसीने छुड़ा दिए हैं.

उधर, कांग्रेस ने ओपीएस पर गारंटी देकर सारी की सारी सहानुभूति बटोरने का प्रयास किया है. हिमाचल में वोट फॉर ओपीएस का अभियान चला. कांग्रेस खुश हुई है कि ओपीएस बहाली का वादा और पहली ही कैबिनेट में इसे लागू करने का दावा कर उसने अपनी पोजीशन मजबूत कर ली है. भाजपा इस मुद्दे पर जरूर बैकफुट पर है, लेकिन उसने डबल इंजन की सरकार और महिलाओं के लिए अलग से लाए गए संकल्प पत्र को भुनाने की भरपूर कोशिश की है.

पीएम नरेंद्र मोदी ने हर जनसभा में डबल इंजन सरकार के लाभ गिनाए हैं. अब भाजपा चुनाव में प्रभावी ऐसे सारे मुद्दों, प्रत्याशियों की परफार्मेंस, बूथ वाइज अपने पक्ष में वोट पड़ने के आसार, प्रत्याशियों और संगठन के नेताओं का फीडबैक लेकर उस पर नए सिरे से चर्चा करेगी. जिन सीटों पर बागी खड़े हैं और पार्टी के लिए मुसीबत बने हैं, उन सीटों पर प्लान-बी तैयार किया जाएगा. यानी बागियों के जीतने की स्थिति में उन्हें अपने पाले में लाने के उपाय डिस्कस किए जाएंगे. यदि 1998 वाली स्थिति बनती है और स्पष्ट बहुमत से कुछ कम सीटें रह जाती हैं तो किसका समर्थन हासिल करना है, इस पर भी चर्चा होगी.

भाजपा के लिए वैसे तो ये चुनाव जेपी नड्डा की प्रतिष्ठा का सवाल है, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप के लिए भी अहम हैं. कारण ये है कि सुरेश कश्यप की अगुवाई में अभी भाजपा को कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है. सतपाल सिंह सत्ती के अध्यक्ष रहते हुए भाजपा ने विभिन्न चुनावों में सफलता हासिल की. सुरेश कश्यप के अध्यक्ष रहते चार सीटों पर उपचुनाव भाजपा ने हारे हैं. ऐसे में ये चुनाव सुरेश कश्यप के लिए भी अहम हैं. यदि भाजपा इस बार चुनाव में जीत जाती है तो सीएम जयराम ठाकुर सहित प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप का नाम हिमाचल के चुनावी इतिहास में एक नए रिकॉर्ड के साथ जुड़ेगा. इन सभी बिंदुओं पर चर्चा ही भाजपा के चार दिसंबर के प्रस्तावित मंथन के केंद्र में रहेगी.

ये भी पढ़ें: नए साल और क्रिसमस पर पर्यटकों को लुभाने की तैयारी, जारी होंगे विशेष पैकज

शिमला: रोमांच और उत्सुकता के लिहाज से देखें तो इस बार हिमाचल विधानसभा का चुनाव (Himachal election 2022) सबसे अलग है. कांग्रेस सत्ता विरोधी रुझान की ओर ताक लगाए बैठी है तो भाजपा का मन डबल इंजन सरकार तथा पॉजिटिव वोटिंग से बहल रहा है. दोनों ही दल सत्ता में आने का दावा तो कर रहे हैं, लेकिन भीतर ही भीतर एक अजीब सा भय भी है. हिमाचल भाजपा मतदान के बाद से विभिन्न स्तरों पर वोटिंग पैटर्न और प्रत्याशियों की परफार्मेंस का आकलन कर चुकी है, लेकिन पार्टी ने गुजरात चुनाव में मतदान के बाद एग्जिट पोल आने से पहले एक और मीटिंग रखी है. संभवत: ये बैठक चार दिसंबर को होगी. इसमें मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से लेकर संगठन के पदाधिकारी और पार्टी प्रत्याशी भाग लेंगे.

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इस समय पोस्टल बैलेट से मतदान जारी है. ऐसे में भाजपा सभी पहलुओं पर चर्चा करेगी और सीट वाइज आकलन करेगी कि कहां कैसी परफार्मेंस रही है. इसे समीक्षा बैठक भी कहा जा सकता है. भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप के अनुसार अभी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी दिल्ली में एमसीडी चुनाव में व्यस्त हैं. इसके अलावा संगठन व सरकार के बीस से अधिक नेता दिल्ली में प्रचार कर रहे हैं. वहां प्रचार से निपटने के बाद शिमला में बैठक रखी जाएगी.

भाजपा हिमाचल में रिवाज बदलना चाहती (Mission repeat of BJP in Himachal) है. चुनाव प्रचार के दौरान भी भाजपा नेताओं ने निरंतर ये दावा किया कि इस बार पांच साल बाद सत्ता बदलने वाला रिवाज ही बदल देंगे. वर्ष 2017 में चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी कहा था कि हिमाचल में अब पांच साल के लिए नहीं कम से कम पंद्रह साल के लिए सरकार भाजपा की बनाएंगे. फिलहाल, इस चुनाव में ओल्ड पेंशन स्कीम और कर्मचारियों से जुड़े मुद्दों ने भाजपा के पसीने छुड़ा दिए हैं.

उधर, कांग्रेस ने ओपीएस पर गारंटी देकर सारी की सारी सहानुभूति बटोरने का प्रयास किया है. हिमाचल में वोट फॉर ओपीएस का अभियान चला. कांग्रेस खुश हुई है कि ओपीएस बहाली का वादा और पहली ही कैबिनेट में इसे लागू करने का दावा कर उसने अपनी पोजीशन मजबूत कर ली है. भाजपा इस मुद्दे पर जरूर बैकफुट पर है, लेकिन उसने डबल इंजन की सरकार और महिलाओं के लिए अलग से लाए गए संकल्प पत्र को भुनाने की भरपूर कोशिश की है.

पीएम नरेंद्र मोदी ने हर जनसभा में डबल इंजन सरकार के लाभ गिनाए हैं. अब भाजपा चुनाव में प्रभावी ऐसे सारे मुद्दों, प्रत्याशियों की परफार्मेंस, बूथ वाइज अपने पक्ष में वोट पड़ने के आसार, प्रत्याशियों और संगठन के नेताओं का फीडबैक लेकर उस पर नए सिरे से चर्चा करेगी. जिन सीटों पर बागी खड़े हैं और पार्टी के लिए मुसीबत बने हैं, उन सीटों पर प्लान-बी तैयार किया जाएगा. यानी बागियों के जीतने की स्थिति में उन्हें अपने पाले में लाने के उपाय डिस्कस किए जाएंगे. यदि 1998 वाली स्थिति बनती है और स्पष्ट बहुमत से कुछ कम सीटें रह जाती हैं तो किसका समर्थन हासिल करना है, इस पर भी चर्चा होगी.

भाजपा के लिए वैसे तो ये चुनाव जेपी नड्डा की प्रतिष्ठा का सवाल है, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप के लिए भी अहम हैं. कारण ये है कि सुरेश कश्यप की अगुवाई में अभी भाजपा को कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है. सतपाल सिंह सत्ती के अध्यक्ष रहते हुए भाजपा ने विभिन्न चुनावों में सफलता हासिल की. सुरेश कश्यप के अध्यक्ष रहते चार सीटों पर उपचुनाव भाजपा ने हारे हैं. ऐसे में ये चुनाव सुरेश कश्यप के लिए भी अहम हैं. यदि भाजपा इस बार चुनाव में जीत जाती है तो सीएम जयराम ठाकुर सहित प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप का नाम हिमाचल के चुनावी इतिहास में एक नए रिकॉर्ड के साथ जुड़ेगा. इन सभी बिंदुओं पर चर्चा ही भाजपा के चार दिसंबर के प्रस्तावित मंथन के केंद्र में रहेगी.

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Last Updated : Nov 30, 2022, 6:22 PM IST
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