शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में बड़ी व्यवस्था दी है. हाईकोर्ट ने कहा कि छात्रों के व्यवहार में सुधार लाने के लिए टीचर यदि हल्की-फुल्की डांट लगाते हैं तो उसे आपराधिक कृत्य नहीं कहा जा सकता. अदालत ने ये महत्वपूर्ण व्यवस्था शिमला के आठ साल पुराने एक चर्चित मामले में दी है. शिमला के एक बड़े निजी स्कूल की दो छात्राओं ने संजौली के समीप काली ढांक से कूदकर जान दे दी थी. दो छात्राओं की मौत से जुड़े इस मामले में निजी स्कूल की टीचर के खिलाफ एफआईआर हुई थी. साथ ही आपराधिक मामला भी दर्ज किया गया था.
हाईकोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद अब महिला टीचर के खिलाफ एफआईआर तथा आपराधिक मामले को निरस्त कर दिया. हाईकोर्ट ने अपनी व्यवस्था में कहा है कि छात्रों के व्यवहार में सुधार लाने के मकसद से यदि शिक्षक उन्हें हल्का दंड दे तो उसे आपराधिक कृत्य के तहत नहीं आंका जा सकता. हाईकोर्ट की व्यवस्था के मुताबिक शिक्षक छात्र को हल्की सजा दे सकता है, लेकिन ऐसी सजा भविष्य में छात्र के शारीरिक और मानसिक विकास में किसी तरह से बाधा नहीं बननी चाहिए.
अध्यापक अगर किसी छात्र को उसके व्यक्तित्व विकास को लेकर शारीरिक तौर पर चोट पहुंचाता है तो उस स्थिति में टीचर के खिलाफ आपराधिक मामला चलाया जा सकता है. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर ने निजी स्कूल की महिला टीचर के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर व आपराधिक मामले को निरस्त करते हुए उक्त व्यवस्था दी है.
अदालत ने कहा कि अभिभावक किसी भी स्कूल में बच्चों को पढाई के लिए बिना शर्त स्कूल प्रबंधन को सौंपते हैं. इस कारण वहां बच्चों की देखरेख तथा पढाई के लिए तैनात स्टाफ बच्चों की भलाई के लिए माता पिता की तरह कोई एक्शन ले सकते हैं. हर घर में माता-पिता भी बच्चों की बेहतरी के लिए गलती करने पर दंड देते हैं, ताकि बच्चा भविष्य में गलती न करे.
आठ साल पहले दो छात्राओं की हुई थी मौत
मामला आठ साल पुराना है. शिमला के एक निजी स्कूल की दो छात्राओं ने संजौली के पास काली ढांक नामक जगह से कूदकर जान दे दी थी. अदालत के समक्ष रखे गये तथ्यों के अनुसार 24 सितम्बर 2012 को दो छात्राओं को अध्यापिका ने कक्षा में सजा के तौर पर दो-दो थप्पड़ मारे थे. अध्यापिका की मार से आहत हो कर 12 साल की दोनों छात्राओं ने स्कूल के समीप ढांक से छलांग लगा दी थी. हादसे में दोनों की मौत हो गई थी.
पुलिस ने इस मामले में स्कूल प्रिंसिपल और टीचर के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने के साथ ही बाल संरक्षण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया था. पुलिस ने आत्महत्या को उकसाने को लेकर साक्ष्यों के अभाव में प्रधानाचार्य और अध्यापिका को छोड़ दिया था. वहीं, बाल संरक्षण अधिनियम के तहत अध्यापिका के खिलाफ मामला चलाया था. इसी मामले में टीचर ने अदालत में दलील दी थी कि स्कूल में एक अभिभावक की भूमिका अदा करते हुए उसने बच्चों को डांटा था. ये डांट उनके बेहतर भविष्य के लिए थी और गलती करने पर बच्चों का डांटा जाना जरूरी भी है. घर पर भी माता-पिता अपने बच्चों को हल्की-फुल्की सजा देते ही हैं.
ऐसे में प्रार्थी महिला टीचर की तरफ से बच्चों को गलती पर डांट लगाना आपराधिक मामले की परिभाषा में नहीं आता. इन तथ्यों को रखते हुए प्रार्थी ने मामले को रद्द करने की गुहार लगाई थी. अदालत ने प्रार्थी की दलीलों से सहमति जताते हुए अपराधिक मामले को रद्द करने का निर्णय सुनाया. साथ ही व्यवस्था दी कि हल्की-फुल्की डांट आपराधिक कृत्य के तहत नहीं आती.