शिमला: हाईकोर्ट (High Court) ने मादक पदार्थों की तस्करी में षड्यंत्र (conspiracy) रचने के आरोपों का सामना करने वाली सात माह की गर्भवती महिला (pregnant woman) को अग्रिम जमानत (Anticipatory bail) पर रिहा करने के आदेश जारी किये हैं. न्यायमूर्ति अनूप चिटकारा (Justice Anoop Chitkara) ने अग्रिम जमानत याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि मादक पदार्थों की तस्करी दंडनीय अपराध (Punishable crime) है, लेकिन एक गर्भवती महिला का अपराधी होना अजन्मे बच्चे के लिए पूरी उम्र घातक साबित हो सकता है. यदि बच्चे का जन्म जेल में हो.
जेल में जन्म लेने पर बच्चे को तब मानसिक तनाव (mental stress) का सामना करना पड़ सकता है, जब जब उसके जन्म की बात उठेगी. ऐसा आघात उसे सामाजिक जीवन जीने नहीं देगा. अपराध में संलिप्त या आरोपित गर्भवती महिलाओं को भी जेल में पौष्टिक आहार तो मिल सकता, लेकिन मानसिक तनाव से मुक्ति नहीं.
पौष्टिक आहार अच्छे मानसिक स्वास्थ्य की जगह नहीं ले सकता. चार दीवारी में बंद रहने से गर्भवती महिला को मानसिक तनाव उत्पन्न हो सकता है. जेल (Jail) में जन्म देना मां को गहरा आघात पहुंचा सकता है. कोर्ट ने कहा कि गर्भवती महिलाओं की सजा को यदि बच्चे के जन्म से पहले व उसके बाद लगभग एक साल तक के लिए टालने से समाज पर कोई फर्क नहीं पड़ जायेगा. गर्भवती महिलाओं की जेल की सजा टालने से आसमान नहीं टूट पड़ेगा
गर्भावस्था काल, डिलीवरी टाइम (delivery time) व जन्म देने से कम से कम एक साल तक महिला को तनाव मुक्त वातावरण की जरूरत होती है. हर महिला का मातृत्व काल में गरिमा पूर्ण जीवन जीने का हक है. गर्भवती महिलाओं को जेल नहीं बेल की जरूरत है. अदालतों को गर्भवती महिलाओं की मातृत्व समय में उनकी पावन स्वतंत्रता बहाल करनी चाहिए.अपराध कितना भी बड़ा हो उन्हें कम से कम ऐसे समय में अस्थायी बेल (temporary bail) तो दी ही जानी चाहिए.
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