शिमला: हिमाचल में अच्छे-खासे बहुमत के साथ सत्ता में वापिस लौटी कांग्रेस सरकार हनीमून पीरियड में ही नाराजगी के तूफान में फंस गई है. आठ महीने के भीतर ही कांग्रेस नेताओं की नाराजगी के स्वर सोशल मीडिया पर मुखर होने लगे हैं. ओपीएस बहाली का वादा पूरा करने के बाद सुखविंदर सरकार की लोकप्रियता चढ़दी कलां में हो गई, लेकिन उसके बाद सरकार को न जाने किसकी नजर लगी कि नेताओं की नाराजगी चरम पर पहुंच चुकी है. कैबिनेट विस्तार, निगम-बोर्डों में ताजपोशी में देरी से भीतर ही भीतर बेस्वाद खिचड़ी पक गई. ऊपर से संगठन की अवहेलना के आरोपों ने सरकार की छवि को बिगाड़ा है. अब नौबत ये आई है कि पार्टी के सीनियर लीडर ही अपनी नाराजगी सोशल मीडिया पर संकेत के रूप में जताने लगे हैं.
अपनों के निशाने पर सरकार- कैबिनेट मंत्री और पार्टी के सीनियर मोस्ट चेहरों में शामिल चौधरी चंद्र कुमार और उनके बेटे नीरज भारती के बीच बयानों की जंग से हर कोई हैरान है. आपदा के समय पहले कांग्रेस के युवा कैबिनेट मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने कुल्लू-मनाली की तबाही को मैन मेड बताया और खनन माफिया पर जमकर बरसे. वहीं, जवाब में उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने तुरंत पलटवार करते हुए विक्रमादित्य सिंह के बयान को बचकाना बता दिया.
उधर कैबिनेट विस्तार न होने से हमीरपुर के प्रभावशाली नेता राजिंद्र राणा ने महाभारत के संकेत दिए तो धर्मशाला के विधायक और पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा ने भी कमेंट डाल कर अपनी ही सरकार पर तंज कस दिया. अभी ये बवाल थमा भी नहीं था कि चंद्र कुमार ने आग में घी डालते हुए कहा कि ऐसी घटनाओं पर हाईकमान को संज्ञान लेना चाहिए. अब चंद्र कुमार के इस बयान के बाद उनके बेटे तथा पूर्व सीपीएस नीरज भारती ने उन्हें नसीहत दे डाली. फिर पिता ने भी बेटे को सियासत समझाई और कहा कि अधिकारी एकदम से नहीं बदलते, सुखविंदर सरकार सभी को साथ लेकर चल रही है. कुल मिलाकर हिमाचल में कांग्रेस सरकार में सब ठीक नहीं चल रहा है.
चंद्र कुमार बन रहे सुखविंदर की ढाल- सोशल मीडिया पर राजिंद्र राणा और सुधीर शर्मा के तीखे तीरों के बाद सीनियर कैबिनेट मिनिस्टर चंद्र कुमार ने इसे अनुशासनहीनता करार दिया. उन्होंने हाईकमान से इस मामले में संज्ञान लेने की बात कही थी. इस पर उनके बेटे और पूर्व सीपीएस नीरज भारती ने सोशल मीडिया पर पोस्ट में अपने पिता को निर्वाचित विधायकों पर टिप्पणी से गुरेज करने की सलाह दे डाली. नीरज भारती ने यहां तक लिख डाला कि सरकार को प्रभाव साबित करने के लिए 8 महीने ही काफी होते हैं. नीरज भारती की पोस्ट में संगठन के कार्यकर्ताओं की अनदेखी का दर्द था. संगठन की इसी अनदेखी का मसला पीसीसी चीफ प्रतिभा सिंह व पूर्व अध्यक्ष कुलदीप राठौर भी उठा चुके हैं. उधर, कैबिनेट विस्तार न होने से राजिंद्र राणा, सुधीर शर्मा सहित अन्य कुर्सी के चाहवान नाराज हैं. ऐसे में आने वाले समय में कांग्रेस सरकार में सियासी भूकंप के आसार बन गए हैं. चंद्र कुमार ने तो नाराज नेताओं को धैर्य की सलाह दी और कहा कि कांग्रेस एक बड़ा परिवार है. ऐसे में परिवार के सदस्यों को मिल कर काम करना चाहिए।
लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा नाराजगी का साया- कांग्रेस नेताओं की अपनी ही सरकार से नाराजगी का असर आगामी लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा. भाजपा निरंतर सरकार पर हमलावर है और सुखविंदर सिंह सरकार में अपनों में ही इतना मनमुटाव है कि परिस्थितियां नियंत्रण से बाहर हो रही हैं. सरकार ने ओपीएस का वादा बेशक पूरा कर दिया हो, लेकिन पेंडिंग रिजल्ट निकालने में हो रही देरी से युवा नाराज हैं. इसके अलावा नौकरियों के मामले में भी सरकार अभी तक फिसड्डी साबित हुई है. बाकी रही गारंटियों की बात तो नेता प्रतिपक्ष तंज कस रहे हैं-सुक्खू भाई दस गरंटियां केथी पाई... दूध खरीद, गोबर खरीद और महिलाओं को 1500 रुपये का वादा अधूरा है. अभी कर्मचारी अलग से नाराज हैं. बिजली बोर्ड में ओपीएस लागू न होने पर कर्मचारियों में गुस्सा है. अब डीए व एरियर न मिलने पर भी कर्मचारियों के सब्र का बांध टूट रहा है. कुल मिलाकर सीएम सुखविंदर सिंह की लोकप्रियता का लिटमस टैस्ट लोकसभा चुनाव में हो जाएगा.
वरिष्ठ पत्रकार बलदेव शर्मा के अनुसार हाल ही में हाईकोर्ट ने सरकार के अफसरों पर प्रतिकूल टिप्पणियां की हैं. ऐसे में संकेत है कि अफसरशाही पर सरकार का नियंत्रण कमजोर है. सियासी विश्लेषक धनंजय अंथ्वाल का कहना है कि कांग्रेस के भीतर की नाराजगी आने वाले चुनाव में भारी पड़ेगी. अब देखना है कि नेताओं की नाराजगी को हाईकमान डील करता है या फिर फिलहाल सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू को ही फ्री हैंड रहेगा. क्या टुकड़ों में बंटती जा रही कांग्रेस में हाईकमान एक करेगा, ये बड़ा सवाल है. आने वाले दिनों में इस सियासी तूफान का मार्ग भी स्पष्ट होगा कि ये पार्टी और सरकार को कहीं बड़े नुकसान की तरफ ना धकेल दे.