शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने बेवजह प्रार्थी को मुकदमेबाजी के लिए मजबूर करने को लेकर हिमाचल प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड पर 1 लाख रुपये की कॉस्ट डाली है. कॉस्ट की राशि में से 50 हजार रुपये प्रार्थी सतदेव सिंह को अदा करने होंगे और 50 हजार रुपए रेड क्रॉस सोसायटी शिमला में जमा करवाने होंगे.
हाई कोर्ट के न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने सतदेव सिंह की तरफ से दायर याचिका को स्वीकार करते हुए यह निर्णय सुनाया. याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार वर्ष 2009 में हिमाचल प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड ने प्रार्थी की जमीन का अधिग्रहण रेणुकाजी डैम प्रोजेक्ट के लिए किया था.
प्रार्थी को उसकी जमीन के बदले दी गयी क्षतिपूर्ति मुआवजे की राशि के अलावा लिखित तौर पर यह आश्वासन दिया था कि अगर भविष्य में अधिग्रहित की गई भूमि के लिए क्षतिपूर्ति मुआवजे की राशि में बढ़ोतरी होती है तो उसे भी अतिरिक्त बढ़ी राशि का भुगतान कर लिया जाएगा. अन्य लोगों की अधिग्रहित की गई भूमि के लिए पावर कॉर्पोरेशन की ओर से लैंड एक्विजिशन कलेक्टर द्वारा पारित निर्णय के अनुसार अन्य को प्रार्थी के मुकाबले ज्यादा क्षतिपूर्ति मुआवजा अदा किया गया.
प्रार्थी ने भी पावर कॉरपोरेशन से उसी तर्ज पर उसका क्षतिपूर्ति मुआवजा दिए जाने की गुहार लगाई. मगर पावर कॉर्पोरेशन ने अतिरिक्त मुआवजा दिए जाने से मना कर दिया. प्रार्थी को मजबूरन हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा. पावर कॉर्पोरेशन की ओर से हाईकोर्ट के समक्ष रखी दलील के मुताबिक प्रार्थी के साथ किए गए करार के मुताबिक प्रार्थी को केवल क्षतिपूर्ति मुआवजा उसी स्थिति में बढ़ाया जा सकता था अगर पावर कॉरपोरेशन ने खुद ही क्षतिपूर्ति मुआवजे को बढ़ाने बाबत आदेश जारी किए होते. उसके लिए पावर कॉरपोरेशन बाध्य नहीं थी जिन स्थितियों में क्षतिपूर्ति हर्जाने की राशि कलेक्टर या कोर्ट द्वारा बढ़ाई गई हो.
पावर कॉरपोरेशन इस दलील को न्यायालय द्वारा कानून सम्मत न पाते हुए पावर कॉरपोरेशन को यह आदेश जारी की है कि वह प्रार्थी को भी अन्य लोगों की तरह बढ़ी हुई राशि का हस्तांतरण करे. साथ ही न्यायालय ने यह पाया कि प्रार्थी को और लोगों के समान मुआवजा राशि प्राप्त करने के लिए बेवजह कोर्ट के चक्कर काटने पड़े, जबकि पावर कॉरपोरेशन खुद ही लिखित करार के मुताबिक प्रार्थी को बढ़ी हुई मुआवजे की राशि देने के लिए सक्षम थी.
न्यायालय ने कहा कि पावर कॉरपोरेशन कुछ अधिकारियों के लापरवाह रवैये के चलते बेवजह प्रार्थी को कोर्ट के समक्ष याचिका दाखिल करनी पड़ी. इससे न केवल प्रार्थी के समय की बर्बादी हुई बल्कि पावर कॉरपोरेशन ने बेवजह अदालत के कीमती समय को बर्बाद किया.
न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि कॉस्ट की राशि पहले पावर कॉरपोरेशन की तरफ से जमा करवाई जाएगी. बाद में यह राशि उन लोगों से वसूली जाएगी जो लोग प्रार्थी को कोर्ट में बीमा वजह धकेलने के लिए जिम्मेदार थे चाहे वह अभी नौकरी कर रहे हैं या नौकरी से सेवानिवृत्त हो गए हैं. इसके अतिरिक्त पावर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष को यह आदेश जारी किए गए हैं कि वह इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ जांच अमल में लाये व अनुपालना रिपोर्ट 31 अक्टूबर 2019 को कोर्ट के समक्ष दायर की जाए.