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भ्रष्टाचार मामले में विस अध्यक्ष राजीव बिंदल को बड़ी राहत, नगर परिषद भर्ती मामले में क्लिन चिट

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Published : Dec 19, 2019, 7:17 PM IST

विस अध्यक्ष राजीव बिंदल व अन्य लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों से जुड़े मामले को प्रदेश हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है. बिंदल व अन्य लोगों के खिलाफ आरोप था कि 30 अप्रैल 1998 को प्रस्ताव पारित कर नगर परिषद सोलन में विभिन्न पदों पर भर्तियां की गई थीं.

Rajiv Binda
विस अध्यक्ष राजीव बिंदल

शिमला: विधानसभा अध्यक्ष राजीव बिंदल व अन्य लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों से जुड़े मामले को प्रदेश हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है. अर्की निवासी पवन ठाकुर की दायर याचिका के माध्यम से उस निर्णय को चुनौती दी गई थी, जिसके तहत राजीव बिंदल व अन्य लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार से जुड़े मामले को वापस लेने की अनुमति प्रदान की गई है.

राजीव बिंदल व अन्य लोगों के खिलाफ आरोप था कि 30 अप्रैल 1998 को प्रस्ताव पारित कर नगर परिषद सोलन में क्लर्कों, मीटर रीडर, ड्राइवर, कीमैन, चपरासी, क्लीनर व सफाई कर्मचारी के पदों को भरने के लिए चयन कमेटी का गठन किया गया था.

कमेटी के अध्यक्ष राजीव बिंदल थे. दूसरे सदस्यों में देवेंद्र ठाकुर व हेमराज गोयल थे जो उस समय नगर परिषद के पार्षद थे. एक अन्य सदस्य सुभाष चंद कलसोत्रा अतिरिक्त जिला दण्डाधिकारी सोलन थे, जिनके पास कार्यकारी अधिकारी नगर परिषद सोलन का कार्यभार था.

इसके अलावा तीन जून 2000 को एक अन्य चयन कमेटी का गठन किया गया, जिसकी अध्यक्षता प्रधान जंगी लाल नगर परिषद सोलन ने की. उसमें पुरुषोत्तम दास चौधरी कार्यकारी अधिकारी, ललित मोहन नगर परिषद अध्यक्ष व कर्म सिंह निजी सहायक चयन कमेटी के सदस्य बनाये गए थे.

इनके खिलाफ आरोप लगाया गया था कि उन्होंने राज्य सरकार की अनुमति व हिमाचल प्रदेश नगर सेवा अधिनियम 1994 के विपरीत साक्षात्कार लेने लिए फर्जी दस्तावेज तैयार कर अयोग्य उम्मीदवारों को नौकरियां प्रदान की थी.सात जून 2003 को तत्कालीन मुख्यमंत्री के ध्यान में इस मामले को लाया गया व पुलिस अधीक्षक सतर्कता साउथ जोन शिमला के सुपुर्द मामला करने के पश्चात जांच की गई.

उप पुलिस अधीक्षक राज्य सतर्कता एवं भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने इस मामले में जांच रिपोर्ट सौंपी और दो दिसंबर 2016 को राज्य सरकार एवं भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो सोलन के समक्ष सभी आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 468, 471, व 120 बी व भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 13 (1) डी व 13 (2) के तहत मामला दर्ज किया गया.जांच में अंतिम रिपोर्ट 17 जुलाई 2013 को कोर्ट के समक्ष दाखिल की गई थी. अभियोजन पक्ष ने 7 सितंबर 2018 को राजीव बिंदल व अन्य आरोपियों के खिलाफ मामला वापस लेने के लिए विशेष जज सोलन के समक्ष आवेदन दाखिल किया था.

स्पेशल जज सोलन ने 24 जनवरी 2019 को अभियोजन पक्ष के दायर आवेदन को स्वीकार करने के बाद राजीव बिंदल व अन्य लोगों के खिलाफ मामला वापस लेने की अनुमति प्रदान की थी. 24 जनवरी 2019 को पारित इस फैसले को अर्की निवासी पवन ठाकुर ने हाई कोर्ट के समक्ष याचिका के माध्यम से चुनौती दी, जिसे न्यायाधीश सुरेश्वर ठाकुर ने मामले से जुड़े तमाम रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद खारिज कर दिया.

शिमला: विधानसभा अध्यक्ष राजीव बिंदल व अन्य लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों से जुड़े मामले को प्रदेश हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है. अर्की निवासी पवन ठाकुर की दायर याचिका के माध्यम से उस निर्णय को चुनौती दी गई थी, जिसके तहत राजीव बिंदल व अन्य लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार से जुड़े मामले को वापस लेने की अनुमति प्रदान की गई है.

राजीव बिंदल व अन्य लोगों के खिलाफ आरोप था कि 30 अप्रैल 1998 को प्रस्ताव पारित कर नगर परिषद सोलन में क्लर्कों, मीटर रीडर, ड्राइवर, कीमैन, चपरासी, क्लीनर व सफाई कर्मचारी के पदों को भरने के लिए चयन कमेटी का गठन किया गया था.

कमेटी के अध्यक्ष राजीव बिंदल थे. दूसरे सदस्यों में देवेंद्र ठाकुर व हेमराज गोयल थे जो उस समय नगर परिषद के पार्षद थे. एक अन्य सदस्य सुभाष चंद कलसोत्रा अतिरिक्त जिला दण्डाधिकारी सोलन थे, जिनके पास कार्यकारी अधिकारी नगर परिषद सोलन का कार्यभार था.

इसके अलावा तीन जून 2000 को एक अन्य चयन कमेटी का गठन किया गया, जिसकी अध्यक्षता प्रधान जंगी लाल नगर परिषद सोलन ने की. उसमें पुरुषोत्तम दास चौधरी कार्यकारी अधिकारी, ललित मोहन नगर परिषद अध्यक्ष व कर्म सिंह निजी सहायक चयन कमेटी के सदस्य बनाये गए थे.

इनके खिलाफ आरोप लगाया गया था कि उन्होंने राज्य सरकार की अनुमति व हिमाचल प्रदेश नगर सेवा अधिनियम 1994 के विपरीत साक्षात्कार लेने लिए फर्जी दस्तावेज तैयार कर अयोग्य उम्मीदवारों को नौकरियां प्रदान की थी.सात जून 2003 को तत्कालीन मुख्यमंत्री के ध्यान में इस मामले को लाया गया व पुलिस अधीक्षक सतर्कता साउथ जोन शिमला के सुपुर्द मामला करने के पश्चात जांच की गई.

उप पुलिस अधीक्षक राज्य सतर्कता एवं भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने इस मामले में जांच रिपोर्ट सौंपी और दो दिसंबर 2016 को राज्य सरकार एवं भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो सोलन के समक्ष सभी आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 468, 471, व 120 बी व भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 13 (1) डी व 13 (2) के तहत मामला दर्ज किया गया.जांच में अंतिम रिपोर्ट 17 जुलाई 2013 को कोर्ट के समक्ष दाखिल की गई थी. अभियोजन पक्ष ने 7 सितंबर 2018 को राजीव बिंदल व अन्य आरोपियों के खिलाफ मामला वापस लेने के लिए विशेष जज सोलन के समक्ष आवेदन दाखिल किया था.

स्पेशल जज सोलन ने 24 जनवरी 2019 को अभियोजन पक्ष के दायर आवेदन को स्वीकार करने के बाद राजीव बिंदल व अन्य लोगों के खिलाफ मामला वापस लेने की अनुमति प्रदान की थी. 24 जनवरी 2019 को पारित इस फैसले को अर्की निवासी पवन ठाकुर ने हाई कोर्ट के समक्ष याचिका के माध्यम से चुनौती दी, जिसे न्यायाधीश सुरेश्वर ठाकुर ने मामले से जुड़े तमाम रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद खारिज कर दिया.



विधानसभा अध्यक्ष राजीव बिंदल व अन्यों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों से जुड़े मामले को प्रदेश हाई कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया है/ अर्की निवासी पवन ठाकुर द्वारा दायर याचिका के माध्यम से उस निर्णय को चुनौती दी थी जिसके तहत राजीव बिंदल व अन्यों के खिलाफ भ्रष्टाचार से जुड़े मामले को वापस लेने की अनुमति प्रदान की गई थी।  राजीव बिंदल व अन्यों के खिलाफ आरोप था  कि 30 अप्रैल  1998 को प्रस्ताव पारित कर नगर परिषद सोलन में क्लर्कों, मीटर रीडर, ड्राइवर, कीमैन, चपरासी, क्लीनर व सफाई कर्मचारी के पदों को भरने के लिए चयन कमेटी का गठन किया गया। इस कमेटी के अध्यक्ष राजीव बिंदल थे। दूसरे सदस्यों में देवेंद्र ठाकुर व हेमराज गोयल थे जो उस समय नगर परिषद के पार्षद थे। एक अन्य सदस्य सुभाष चंद कलसोत्रा अतिरिक्त जिला दण्डाधिकारी सोलन थे जिनके पास कार्यकारी अधिकारी नगर परिषद सोलन का कार्यभार था। इसके अतिरिक्त 3 जून 2000 को एक अन्य चयन कमेटी का गठन किया गया जिसकी अध्यक्षता प्रधान जंगी लाल नगर परिषद सोलन ने की। उसमें पुरुषोत्तम दास चौधरी कार्यकारी अधिकारी, ललित मोहन नगर परिषद अध्यक्ष व कर्म सिंह निजी सहायक चयन कमेटी के सदस्य बनाये गए थे। इनके खिलाफ आरोप लगाया गया  था  कि उन्होंने राज्य सरकार की अनुमति व हिमाचल प्रदेश नगर सेवा अधिनियम 1994 के विपरीत साक्षात्कार लेने लिए फर्जी दस्तावेज तैयार कर अयोग्य उम्मीदवारों को नौकरियां प्रदान की। 7 जून 2003 को तत्कालीन मुख्यमंत्री के ध्यान में इस मामले को लाया गया व पुलिस अधीक्षक सतर्कता साउथ जोन शिमला के सपुर्द मामला करने के पश्चात जांच की गई । उप पुलिस अधीक्षक राज्य सतर्कता एवं भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने इस मामले में जांच रिपोर्ट सौंपी और 2 दिसंबर 2016 को राज्य सरकार एवं भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो सोलन के समक्ष सभी आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 468, 471, व 120 बी व भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 13 (1)डी व 13 (2) के तहत मामला दर्ज किया गया ।  जांच के पश्चात अंतिम रिपोर्ट 17 जुलाई 2013 को कोर्ट के समक्ष दाखिल की गई। अभियोजन पक्ष द्वारा 7 सितंबर 2018 को राजीव बिंदल व अन्य आरोपियों के खिलाफ मामला वापस लेने के लिए विशेष जज सोलन के समक्ष आवेदन दाखिल किया गया। स्पेशल जज सोलन ने 24 जनवरी 2019 को अभियोजन पक्ष द्वारा दायर आवेदन को स्वीकार करने के पश्चात राजीव बिंदल व अन्यों के खिलाफ मामला वापस लेने की अनुमति प्रदान कर दी। 24 जनवरी 2019 को पारित इस फैसले को अर्की निवासी पवन ठाकुर ने हाई कोर्ट के समक्ष याचिका के माध्यम से चुनौती दी गई जिसे न्यायाधीश सुरेश्वर ठाकुर ने मामले से जुड़े तमाम रिकॉर्ड का अवलोकन करने के पश्चात् ख़ारिज कर दिया/
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