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आयुर्वेद विभाग ने एडहॉक सर्विस का तर्क देकर बंद की थी पेंशन, HC ने रिटायर कर्मचारी के हक में सुनाया फैसला - हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संदीप शर्मा

प्रदेश हाईकोर्ट ने पेंशन संबंधी एक अहम फैसला सुनाया है. आयुर्वेद विभाग ने एक रिटायर डॉक्टर की पेंशन ये कहकर बंद की थी कि एडहॉक के तहत सेवा अवधि पेंशन के लिए नहीं गिनी जाएगी. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने रामकृष्ण शर्मा की तरफ से दाखिल याचिका की सुनवाई के बाद आयुर्वेद विभाग का आदेश रद्द कर दिया.

हिमाचल हाई कोर्ट
Himachal high court
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Published : Jan 7, 2020, 8:32 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने पेंशन संबंधी एक अहम फैसला सुनाया है. आयुर्वेद विभाग ने एक रिटायर डॉक्टर की पेंशन ये कहकर बंद की थी कि एडहॉक के तहत सेवा अवधि पेंशन के लिए नहीं गिनी जाएगी. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने रामकृष्ण शर्मा की तरफ से दाखिल याचिका की सुनवाई के बाद आयुर्वेद विभाग का आदेश रद्द कर दिया. याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार, 11 अक्टूबर 2019 को जिला आयुर्वेदिक ऑफिसर बिलासपुर ने अकाउंटेंट जनरल को कहा था कि प्रार्थी की पेंशन बंद कर दी जाए.

प्रार्थी की सेवाओं को 15 मई 2003 के बाद रेगुलर किया गया था. राज्य सरकार के वित्त विभाग के निर्देश के अनुसार, प्रार्थी पुरानी पेंशन स्कीम के तहत पेंशन लिए जाने का हक नहीं रखता है. वित्त विभाग के निर्देशों के अनुसार, वह केवल कंट्रीब्यूटरी प्रोविडेंट फंड के तहत पेंशन लेने का हक रखता है.

प्रार्थी को 23 जनवरी 1999 को एडहॉक बेस पर आयुर्वेदिक मेडिकल ऑफिसर के तौर पर नियुक्ति मिली थी. उसकी सेवाओं को 25 नवंबर 2006 को नियमित किया गया था. प्रार्थी 31 दिसंबर 2011 को सेवानिवृत्त हो गया था बाद में वह पुरानी पेंशन स्कीम के तहत नियमित पेंशन ले रहा था.

हाईकोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय व प्रदेश उच्च न्यायालय के विभिन्न मामलों में दिए गए फैसलों का अवलोकन करने के बाद ये पाया कि प्रार्थी को पेंशन दिए जाने के लिए लिया गया फैसला कानूनी तौर पर सही था. इस फैसले पर कानूनी तौर पर किसी भी तरह के संशोधन की आवश्यकता नहीं है.

खासकर तब, जब इस बारे में कानून स्पष्ट हो चुका है कि अस्थाई तौर पर, अनुबंध के आधार पर व तदर्थ के आधार पर दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए गिना जाएगा. प्रार्थी तदर्थ के आधार पर दी गई सेवाओं के बावजूद पेंशन लेने का हक रखता है.

एकल पीठ ने कहा कि जिला आयुर्वेदिक ऑफिसर बिलासपुर का पेंशन को बंद करने वाला आदेश कानूनी तौर पर गलत है. हाईकोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है अनुबंध अथवा तदर्थ के आधार पर कम वेतन में दी गई सेवाओं से राज्य सरकार को ही लाभ हुआ है. इस दौरान दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए न गिना जाना राज्य सरकार के अनुचित व्यापारिक व्यवहार को दर्शाता है. कानून ऐसे व्यवहार की अनुमति नहीं देता है.

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने पेंशन संबंधी एक अहम फैसला सुनाया है. आयुर्वेद विभाग ने एक रिटायर डॉक्टर की पेंशन ये कहकर बंद की थी कि एडहॉक के तहत सेवा अवधि पेंशन के लिए नहीं गिनी जाएगी. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने रामकृष्ण शर्मा की तरफ से दाखिल याचिका की सुनवाई के बाद आयुर्वेद विभाग का आदेश रद्द कर दिया. याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार, 11 अक्टूबर 2019 को जिला आयुर्वेदिक ऑफिसर बिलासपुर ने अकाउंटेंट जनरल को कहा था कि प्रार्थी की पेंशन बंद कर दी जाए.

प्रार्थी की सेवाओं को 15 मई 2003 के बाद रेगुलर किया गया था. राज्य सरकार के वित्त विभाग के निर्देश के अनुसार, प्रार्थी पुरानी पेंशन स्कीम के तहत पेंशन लिए जाने का हक नहीं रखता है. वित्त विभाग के निर्देशों के अनुसार, वह केवल कंट्रीब्यूटरी प्रोविडेंट फंड के तहत पेंशन लेने का हक रखता है.

प्रार्थी को 23 जनवरी 1999 को एडहॉक बेस पर आयुर्वेदिक मेडिकल ऑफिसर के तौर पर नियुक्ति मिली थी. उसकी सेवाओं को 25 नवंबर 2006 को नियमित किया गया था. प्रार्थी 31 दिसंबर 2011 को सेवानिवृत्त हो गया था बाद में वह पुरानी पेंशन स्कीम के तहत नियमित पेंशन ले रहा था.

हाईकोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय व प्रदेश उच्च न्यायालय के विभिन्न मामलों में दिए गए फैसलों का अवलोकन करने के बाद ये पाया कि प्रार्थी को पेंशन दिए जाने के लिए लिया गया फैसला कानूनी तौर पर सही था. इस फैसले पर कानूनी तौर पर किसी भी तरह के संशोधन की आवश्यकता नहीं है.

खासकर तब, जब इस बारे में कानून स्पष्ट हो चुका है कि अस्थाई तौर पर, अनुबंध के आधार पर व तदर्थ के आधार पर दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए गिना जाएगा. प्रार्थी तदर्थ के आधार पर दी गई सेवाओं के बावजूद पेंशन लेने का हक रखता है.

एकल पीठ ने कहा कि जिला आयुर्वेदिक ऑफिसर बिलासपुर का पेंशन को बंद करने वाला आदेश कानूनी तौर पर गलत है. हाईकोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है अनुबंध अथवा तदर्थ के आधार पर कम वेतन में दी गई सेवाओं से राज्य सरकार को ही लाभ हुआ है. इस दौरान दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए न गिना जाना राज्य सरकार के अनुचित व्यापारिक व्यवहार को दर्शाता है. कानून ऐसे व्यवहार की अनुमति नहीं देता है.

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आयुर्वेद विभाग ने एडहॉक सर्विस का तर्क देकर बंद की थी पेंशन, हाईकोर्ट ने कहा-मिलनी चाहिए पेंशन
शिमला। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने पेंशन संबंधी एक अहम फैसला दिया है। आयुर्वेद विभाग ने एक रिटायर डॉक्टर की पेंशन इस आधार पर बंद की थी कि एडहॉक के तहत सेवा अवधि पेंशन के लिए नहीं गिनी जाएगी। आयुर्वेद विभाग ने  रिटायर हो चुके आयुर्वेदिक मेडिकल ऑफिसर की पेंशन को इस वजह से बंद करने का आदेश दिया था कि एडहॉक पर दी गयी सेवा पेंशन के लिए नही गिनी जाएगी। हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने रामकृष्ण शर्मा की तरफ से दाखिल याचिका की सुनवाई के बाद आयुर्वेद विभाग का आदेश रद्द कर दिया। याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार 11 अक्टूबर 2019 को जिला आयुर्वेदिक ऑफिसर बिलासपुर ने अकाउंटेंट जनरल को कहा था कि प्रार्थी की पेंशन बंद कर दी जाए क्योंकि प्रार्थी की सेवाओं को 15 मई 2003 के बाद रेगुलर किया गया था। राज्य सरकार के वित्त विभाग के निर्देश के अनुसार प्रार्थी पुरानी पेंशन स्कीम के अंतर्गत पेंशन लिए जाने का हक नहीं रखता है। वित्त विभाग के निर्देशों के अनुसार वह केवल कंट्रीब्यूटरी प्रोविडेंट फंड के अंतर्गत पेंशन लेने का हक रखता है।
प्रार्थी को 23 जनवरी 1999 को एडहॉक बेस पर आयुर्वेदिक मेडिकल ऑफिसर के तौर पर नियुक्ति मिली थी। उसकी सेवाओं को 25 नवंबर 2006 को नियमित किया गया था। प्रार्थी 31 दिसंबर 2011 को सेवानिवृत्त हो गया था। बाद में वह पुरानी पेंशन स्कीम के तहत नियमित पेंशन ले रहा था। हाईकोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय व प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा विभिन्न मामलों में दिए गए फैसलों का अवलोकन करने के बाद यह पाया कि प्रार्थी को पेंशन दिए जाने के लिए लिया गया फैसला कानूनी तौर पर सही था। इस फैसले पर कानूनी तौर पर किसी भी तरह के संशोधन की आवश्यकता नहीं है। खासकर तब, जब इस बारे में कानून स्पष्ट हो चुका है कि अस्थाई तौर पर, अनुबंध के आधार पर व तदर्थ के आधार पर दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए गिना जाएगा। प्रार्थी तदर्थ के आधार पर दी गई सेवाओं के बाबजूद पेंशन लेने का हक रखता है। एकल पीठ ने कहा कि जिला आयुर्वेदिक ऑफिसर बिलासपुर द्वारा पेंशन को बंद करने वाला आदेश कानूनी तौर पर गलत है। हाईकोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है अनुबंध अथवा तदर्थ के आधार पर कम वेतन में दी गई सेवाओं से राज्य सरकार को ही लाभ हुआ है। इस दौरान दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए न गिना जाना राज्य सरकार के अनुचित व्यापारिक व्यवहार को दर्शाता है। कानून ऐसे व्यवहार की अनुमति नहीं देता है। 
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