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RCEP का हिमाचल के किसान-बागवानों पर पड़ता असर, जानिए क्या कहते हैं कृषि विशेषज्ञ

आरसीईपी (RECP) के प्रावधान है कि  90 से अधिक वस्तुओं पर आयात शुल्क जीरो प्रतिशत करने का प्रावधान है, अगर भारत आरसीईपी पर साइन कर देता और इस संधि को अपना लेता तो इससे किसान और छोटे और मध्यम वर्ग के उद्योग दोनों ही बुरी प्रभावित होते.

ईटीवी भारत की कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा से ये खास बातचीत
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Published : Nov 5, 2019, 7:59 PM IST

शिमला: शिमला: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर आरसीईपी (क्षेत्रीय समग्र आर्थिक समझौता) में शामिल होने की बात स्वीकार कर लेते तो देश के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश के किसानों पर भी इसके बुरा असर पड़ता.

प्रदेश की आर्थिकी में सेब की महत्वपूर्ण भूमिका है. भारत के आरसीईपी में शामिल होने से सेब पर जीरो प्रतिशत आयात शुल्क हो जाता जिससे प्रदेश में उगने वाले सेब की कीमत देश की मार्केट में बहुत कम होती और दामों में भारी गिरावट होती. ऐसी स्थिति में बागवानों का सेब की फसल के सहारे आजीविका कमाना नामुनकिन हो जाता. यह बात प्रसिद्ध कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा ने कही.

आरसीईपी के प्रावधान है कि 90 से अधिक वस्तुओं पर आयात शुल्क जीरो प्रतिशत करने का प्रावधान है, अगर भारत आरसीईपी पर साइन कर देता और इस संधि को अपना लेता तो इससे किसान और छोटे और मध्यम वर्ग के उद्योग दोनों ही बुरी प्रभावित होते.

वीडियो.

आरसीईपी के मुद्दे पर केरल के विधायकों को संबोधित करने के बाद शिमला पहुंचे देवेंद्र शर्मा ने कहा कि यदि यह संधि देशों के सरकारों के बीच होनी थी किसी भी प्रभावित वर्ग का इसमें कोई भूमिका नहीं थी, लेकिन अगर भारत इस संधि को स्वीकार कर लेता को किसानों, बागवानों और छोटे तथा मध्यम वर्ग के उद्योगों पर इसका खासा असर पड़ता. भारत ने इस संधि में शामिल ना होकर अच्छा कदम उठाया है.

देवेंद्र शर्मा ने कहा कि इस संधि में शामिल ना होकर भारत अच्छी तरह से विकास कर सकता है. अपने विभिन्न क्षेत्रों में उद्योगों और कृषि को बढ़ावा दे सकता है. उन्होंने बताया कि भारत के इस कदम से साफ है कि भारत सावधानी से अपने उद्योग और किसानों के संरक्षण की सोच रहा है. इससे डेयरी क्षेत्र को बड़ी राहत मिलेगी.

पिछले सालों में देश भर के 3 लाख 18 हजार किसानों ने आत्महत्या की, जबकि अकेले पंजाब में ही पिछले दो साल में 16 हजार किसानों ने आत्महत्या की. सरकार अब पिछले दो सालों से किसानों की आत्महत्या के आंकड़े सार्वजनिक नहीं कर रही है. जिसका सीधा अर्थ बिल्ली के सामने कबूतर द्वारा आंख बंद कर लेने जैसा है. इससे निपटने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है.

बता दें कि आसियान देशों और 6 अन्य प्रमुख देशों की आरसीईपी के तहत मुक्त व्यापार करार में डेयरी उत्पाद को शामिल करने के प्रस्ताव है, जिसका किसान विरोध कर रहे थे. आरसीईपी वार्ताओं को शुरू करने का मकसद एक आधुनिक, व्यापक, उच्च गुणवत्ता वाला और पारस्परिक लाभकारी आर्थिक भागीदारी करार करना था.

ये भी पढ़ें- चंबा के सलूणी में भीषण अग्निकांड, 15 दुकानें जलकर राख

शिमला: शिमला: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर आरसीईपी (क्षेत्रीय समग्र आर्थिक समझौता) में शामिल होने की बात स्वीकार कर लेते तो देश के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश के किसानों पर भी इसके बुरा असर पड़ता.

प्रदेश की आर्थिकी में सेब की महत्वपूर्ण भूमिका है. भारत के आरसीईपी में शामिल होने से सेब पर जीरो प्रतिशत आयात शुल्क हो जाता जिससे प्रदेश में उगने वाले सेब की कीमत देश की मार्केट में बहुत कम होती और दामों में भारी गिरावट होती. ऐसी स्थिति में बागवानों का सेब की फसल के सहारे आजीविका कमाना नामुनकिन हो जाता. यह बात प्रसिद्ध कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा ने कही.

आरसीईपी के प्रावधान है कि 90 से अधिक वस्तुओं पर आयात शुल्क जीरो प्रतिशत करने का प्रावधान है, अगर भारत आरसीईपी पर साइन कर देता और इस संधि को अपना लेता तो इससे किसान और छोटे और मध्यम वर्ग के उद्योग दोनों ही बुरी प्रभावित होते.

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आरसीईपी के मुद्दे पर केरल के विधायकों को संबोधित करने के बाद शिमला पहुंचे देवेंद्र शर्मा ने कहा कि यदि यह संधि देशों के सरकारों के बीच होनी थी किसी भी प्रभावित वर्ग का इसमें कोई भूमिका नहीं थी, लेकिन अगर भारत इस संधि को स्वीकार कर लेता को किसानों, बागवानों और छोटे तथा मध्यम वर्ग के उद्योगों पर इसका खासा असर पड़ता. भारत ने इस संधि में शामिल ना होकर अच्छा कदम उठाया है.

देवेंद्र शर्मा ने कहा कि इस संधि में शामिल ना होकर भारत अच्छी तरह से विकास कर सकता है. अपने विभिन्न क्षेत्रों में उद्योगों और कृषि को बढ़ावा दे सकता है. उन्होंने बताया कि भारत के इस कदम से साफ है कि भारत सावधानी से अपने उद्योग और किसानों के संरक्षण की सोच रहा है. इससे डेयरी क्षेत्र को बड़ी राहत मिलेगी.

पिछले सालों में देश भर के 3 लाख 18 हजार किसानों ने आत्महत्या की, जबकि अकेले पंजाब में ही पिछले दो साल में 16 हजार किसानों ने आत्महत्या की. सरकार अब पिछले दो सालों से किसानों की आत्महत्या के आंकड़े सार्वजनिक नहीं कर रही है. जिसका सीधा अर्थ बिल्ली के सामने कबूतर द्वारा आंख बंद कर लेने जैसा है. इससे निपटने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है.

बता दें कि आसियान देशों और 6 अन्य प्रमुख देशों की आरसीईपी के तहत मुक्त व्यापार करार में डेयरी उत्पाद को शामिल करने के प्रस्ताव है, जिसका किसान विरोध कर रहे थे. आरसीईपी वार्ताओं को शुरू करने का मकसद एक आधुनिक, व्यापक, उच्च गुणवत्ता वाला और पारस्परिक लाभकारी आर्थिक भागीदारी करार करना था.

ये भी पढ़ें- चंबा के सलूणी में भीषण अग्निकांड, 15 दुकानें जलकर राख

Intro:Body:शिमला. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर आरसीईपी में शामिल हो बात स्वीकार कर लेते तो देश के साथ साथ हिमाचल प्रदेश के किसानों पर भी इसके बुरा असर पड़ता. प्रदेश की आर्थिकी में सेब की महत्वपूर्ण भूमिका है. आरसीईपी में शामिल होने से सेब पर जीरो प्रतिशत आयात शुल्क हो जाता जिससे प्रदेश में उगने वाले सेब की कीमत देश की मार्केट में बहुत कम होती और दामों में भारी गिरावट होती. ऐसी स्थिति में बागवानों का सेब की फसल के सहारे आजीविका कमाना नामुनकिन हो जाता. यह बात प्रसिद्ध कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा ने कही.
आरसीईपी के प्रावधान है कि  90 से अधिक वस्तुओं पर आयात शुल्क जीरो प्रतिशत करने का प्रावधान है अगर भारत आरसीईपी पर साइन कर देता और इस संधि को अपना लेता तो इससे किसान और छोटे तथा मध्यम वर्ग के उद्योग दोनों ही बुरी प्रभावित होते. आरसीईपी के मुद्दे पर केरल के विधायकों को संबोधित करने के बाद शिमला पहुंचे देवेंद्र शर्मा ने कहा कि यदि यह संधि  देशों के सरकारों के बीच होनी थी किसी भी प्रभावित वर्ग का इसमें कोई भूमिका नहीं थी लेकिन अगर भारत इस संधि को स्वीकार कर लेता को किसानों, बागवानों और छोटे तथा मध्यम वर्ग के उद्योगों पर इसका खासा असर पड़ता. भारत ने इस संधि में शामिल ना होकर अच्छा कदम उठाया है. इस संधि में शामिल ना होकर भारत अच्छी तरह से विकास कर सकता है अपने विभिन्न क्षेत्रों में उद्योगों और कृषि को बढ़ावा दे सकता है उन्होंने बताया  कि भारत के इस कदम से साफ़ है कि भारत सावधानी से अपने उद्योग तथा किसानों के संरक्षण की सोच रहा है। इससे डेयरी क्षेत्र को बड़ी राहत मिलेगी।
पिछले सालों में देश भर के 3 लाख 18 हज़ार किसानों ने आत्महत्या की जबकि अकेले पंजाब में ही पिछले दो साल में 16 हज़ार किसानों ने आत्महत्या की। सरकार अब पिछले दो सालों से किसानों की आत्महत्या के आंकड़े सार्वजनिक नही कर रही हैं जिसका सीधा अर्थ बिल्ली के सामने तोते द्वारा आंख बंद कर लेने जैसा है। इससे निबटने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। 
आसियान देशों और 6 अन्य प्रमुख देशों की आरसीईपी के तहत मुक्त व्यापार करार में डेयरी उत्पाद को शामिल करने के प्रस्ताव है, जिसका किसान विरोध कर रहे थे। आरसीईपी वार्ताओं को शुरू करने का मकसद एक आधुनिक, व्यापक, उच्च गुणवत्ता वाला और पारस्परिक लाभकारी आर्थिक भागीदारी करार करना था।  Conclusion:
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