शिमला: वैश्विक महामारी कोरोना के बीच में कोरोना संक्रमित लोगों के इलाज के लिए एनेस्थेसियोलॉजिस्ट का भी काफी महत्वपूर्ण योगदान हैं. ऐसे में इस स्पेशलाइजेशन से जुड़े हुए विशेषज्ञों की ज्यादा आवश्यकता अस्पतालों में महसूस हो रही है.
एक एनेस्थेसियोलॉजिस्ट का कार्य अब मात्र ऑपरेशन थियेटर तक ही सीमित नहीं रह गया है बल्कि पेशंट से वेंटिलेटर पर रखने से पहले उन्हें मेडिसन देने से लेकर ऑक्सीजन देने तक का कार्य यह डॉक्टर कर रहे हैं.
आज से 25 साल पहले फील्ड में अधिक चुनौतियां थीं और महिलाएं कम ही इस स्पेशलाइजेशन को चुनती थीं तो लेकिन डॉ. ज्योति पठानिया ने इस स्पेशलाइजेशन में आने वाली चुनौतियों की परवाह नहीं की और अनेस्थेसिया में पीजी कर 1995 में इस विभाग में बतौर एमडी अपनी सेवाएं दीं.
आज वह इसी अस्पताल में एनेस्थेटिक कंसल्टेंट के तौर पर अपनी सेवाएं दे रही हैं. कोविड-19 के बीच में एक एनेस्थेसियोलॉजिस्ट की क्या भूमिका है और क्या चुनौतियां इस फील्ड में है इस बारे में ईटीवी से खास बातचीत में डॉ. ज्योति पठानिया ने बताया कि समय के साथ अब इस फील्ड का विस्तार हुआ है और अब एनेस्थेसियोलॉजिस्ट का कार्य ऑपरेशन थियेटर तक ही नहीं सिमटा है.
डॉ. ज्योति पठानिया ने बताया कि जिस समय वो इस फील्ड में आई थी उस समय इस स्पेशलाइजेशन में महिलाएं बहुत कम आना पसंद करती थीं. उन्होंने भी शादी के बाद 1995 में इस स्पेशलाइजेशन में पीजी की और बतौर एमडी अपना कार्य शुरू किया.
डॉ. ज्योति पठानिया ने बताया कि इस फील्ड से जुड़े डॉक्टर का काम मेडिसन के साथ ही मरीज को उसकी हर तरह की कंडीशन में बेहोश करना है. इसके साथ ही आज कल के समय में इस फील्ड में ऑपरेशन करवाने से भी आगे मरीज को पेन रिलीफ देना, ऑपरेशन के बाद आईसीयू में रखना और अब कोविड-19 के बीच इन सेवाओं का और भी ज्यादा विस्तार हो गया है.
उन्होंने कहा कि मरीज को वेंटिलेटर पर रखने के साथ ही उसके सारे उपचार जिसमें मेडिसन भी कवर हो जाती है वह एनेस्थीसिया के डॉक्टर दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि अगर हम अपने उपचार में थोड़ी भी देरी करते है तो मरीज को अपनी जान से हाथ गवांना पड़ सकता है. ऐसे में एक एनेस्थेसियोलॉजिस्ट की भूमिका मरीज को जीवनदान देने में अहम है और यही वजह भी थी कि उन्होंने इस फील्ड को चुना.
इस फील्ड में उनके समक्ष आने वाली चुनौतियों के बारे में बताते हुए डॉ. ज्योति पठानिया ने बताया कि इस फील्ड में जब वह आयी थी तो उस समय रात दिन ऑपरेशन करने पड़ते थे. 24 घंटे भी ड्यूटी इस फील्ड में देनी पड़ती है.
वहीं, आज भी ऑपरेशन के 36 घंटे बाद ही घर जाना पड़ता है. ऐसे में बच्चों के साथ काम करने में दिक्कतें भी आई, लेकिन सभी के सहयोग से यह आसान हो गया, लेकिन अब खुशी इस बात की है कि आज लकड़ियां इस स्पेशलाइजेशन में आ रही है और उनकी संख्या बढ़ती जा रही है.
कोविड 19 के चलते पड़ रही इस फील्ड में पड़ रही अधिक स्पेशलिस्ट की आवश्यकता
हिमाचल में अभी कोविड 19 के मरीजों को वेंटिलेटर की आवश्यकता नहीं पड़ी है, जितनी की दूसरी जगहों या बाहरी देशों में पड़ी है, लेकिन फिर भी हालातों से निपटने के लिए पूरी तैयारी की गई है और प्राप्त वेंटिलेटर की खरीदी की गई है, लेकिन एनेस्थीसिया के विशेषज्ञों की कमी है जिसके लिए अब दूसरे डॉक्टर्स को भी इसकी ट्रेनिंग दी जा रही है कि वेंटीलेटर पर मरीज को किस तरह से डील करना है.
अगर वेंटिलेटर पर कोई मरीज जाता है तो उसे 20 से 22 दिन उस स्टेज पर रहना पड़ता है जिससे की कम डॉक्टर्स की सेवाएं 8-8 घंटे नहीं ली जा सकती है. इसलिए दूसरे डॉक्टर भी ट्रेन किए जा रहे हैं.
उन्होंने कहा कि हिमाचल में कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा बेहद कम है और यहां जो आठ लोगों की मौत हुई है. उन्हें पहले से ही कोई ना कोई बीमारी थी जिसकी वजह से उनकी रोगों से लड़ने की क्षमता को कोरोना ने कम किया और उनकी मृत्यु हुई.
एनेस्थीसिया की पीजी में 17 सीटें जिसमें 13 से 14 लडकियां शामिल
डॉ. ज्योति पठानिया का कहना है कि वर्तमान समय में आई टीम के लिए एनेस्थीसिया विभाग में 17 सीटें हैं. इसमें से 13 या 14 लड़कियां इस स्पेशलाइजेशन को कर रही हैं. उन्होंने कहा अभी स्पेशलाइजेशन क्राइटेरिया बढ़ चुका है.
यही वजह है कि महिलाएं भी अब ज्यादा फील्ड में आ रही है. उन्होंने महिलाओं को यह संदेश दिया ज्यादा से ज्यादा स्पीड में आए चुनौतियों का सामना करें जिससे कि वह खुद को साबित कर सके.
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