शिमला : हिमाचल विधानसभा चुनाव 2022 के लिए वोटिंग 12 नवंबर को होनी है. देश में चुनाव कोई भी हो जातिगत समीकरण को लेकर चर्चा जरूर होती है. यूपी, बिहार से लेकर दक्षिण के राज्यों में जातियों का बोलबाला होता है और सियासी दल भी उम्मीदवारों का चुनाव भी इन जातियों को ध्यान में रखकर करते हैं. इन सबसे अलग हिमाचल में जात-पात या जातिगत समीकरण का बोल बाला भले उस स्तर का ना हो लेकिन हिमाचल का सियासी इतिहास और सियासी दलों की हर प्लानिंग बताती है कि जाति के बिना सियासत अधूरी है, फिर चाहे राज्य कोई भी हो. हिमाचल में जातिगत समीकरणों वाली राजनीति भले यूपी-बिहार की तरह जगजाहिर ना हो लेकिन हिमाचल की सियासत से लेकर सत्ता तक में राजपूतों का वर्चस्व रहा है. (Caste factor in himachal Politics) (Himachal Assembly Election 2022)
जनसंख्या के आधार पर हिमाचल का जातिगत समीकरण- साल 2011 की जनगणना (himachal census 2011) के मुताबिक हिमाचल में 50 फीसदी से अधिक आबादी सवर्ण है. 50.72 फीसदी इस आबादी में सबसे ज्यादा 32.72 फीसदी राजपूत हैं और 18 फीसदी ब्राह्मण, इसके अलावा अनुसूचित जाति की आबादी 25.22% और अनुसूचित जनजाति की आबादी 5.71% है. प्रदेश में ओबीसी 13.52 फीसदी और अल्पसंख्यक 4.83 फीसदी हैं. (himachal census 2011) (Caste Equation in Himachal)
6 में से 5 मुख्यमंत्री राजपूत- हिमाचल प्रदेश के अब तक 6 मुख्यमंत्री (list of himachal cm) रहे हैं. इनमें से 5 मुख्यमंत्री राजपूत हैं जबकि शांता कुमार इकलौते ब्राह्मण मुख्यमंत्री (Brahmin Chief Minister of Himachal) रहे हैं. शांता कुमार ने 2 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. हिमाचल निर्माता यशवंत परमार प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रहे. उन्होंने 4 बार सूबे की कमान संभाली. इसके बाद रामलाल ठाकुर दो बार मुख्यमंत्री रहे. जबकि कांग्रेस के वीरभद्र सिंह ने 6 बार और बीजेपी के प्रेम कुमार धूमल ने दो बार हिमाचल के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. साल 2017 में जयराम ठाकुर ने पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. (Rajput Chief Ministers of Himachal) (Brahmin Chief Minister of Himachal) (list of himachal CM)
13वीं विधानसभा का जातिगत गणित- हिमाचल में 13वीं विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने वाला है. 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई और जयराम ठाकुर पहली बार मुख्यमंत्री बने. वैसे 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता ने करीब 50 फीसदी राजपूत चेहरों को विधानसभा पहुंचाया. कुल 68 विधानसभा सीटों में से 48 सीटें अनारक्षित हैं, इनमें से 33 सीटों पर राजपूत चेहरों को जीत मिली. जिनमें बीजेपी के 18, कांग्रेस से 12, सीपीआईएम का एक और दो निर्दलीय चेहरे विधायक बने. 8 दिसंबर को हिमाचल की 14वीं विधानसभा की तस्वीर भी साफ हो जाएगी. हिमाचल में बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही सीधा मुकाबला होता है. इस बार भी बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने 28-28 सीटों पर राजपूत चेहरों को टिकट दिया है. ऐसे में एक बार फिर कई राजपूत चेहरे हिमाचल विधानसभा में नजर आएंगे.
जयराम मंत्रिमंडल का जातिगत समीकरण- हिमाचल मंत्रिमंडल में सीएम जयराम ठाकुर को मिलाकर कुल 12 मंत्री हैं. इनमें से 6 मंत्री राजपूत हैं, मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के अलावा मंत्रियों में महेंद्र सिंह, वीरेंद्र कंवर, बिक्रम सिंह, गोबिंद सिंह ठाकुर, राकेश पठानिया शामिल हैं. इस बार महेंद्र ठाकुर चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, बीजेपी ने मंडी जिले की धर्मपुर सीट से उनके बेटे रजत ठाकुर को टिकट दिया है.
हिमाचल की सियासत के दमदार ठाकुर- हिमाचल प्रदेश की सियासत में शुरुआत से ही राजपूतों का दबदबा रहा है. बड़े नेताओं में डॉ. वाईएस परमार, वीरभद्र सिंह, रामलाल ठाकुर, प्रेम कुमार धूमल, कर्म सिंह ठाकुर, ठाकुर जगदेव चंद, जयराम ठाकुर, अनुराग ठाकुर, जेबीएल खाची, कौल सिंह ठाकुर, गुलाब सिंह ठाकुर, महेश्वर सिंह, गंगा सिंह ठाकुर, महेंद्र सिंह ठाकुर, कुंजलाल ठाकुर, गोविंद सिंह ठाकुर, मेजर विजय सिंह मनकोटिया, प्रतिभा सिंह, सुजान सिंह पठानिया, गुमान सिंह ठाकुर, हर्षवर्धन सिंह, रामलाल ठाकुर, सुखविंद्र सिंह ठाकुर का नाम शामिल है. भाजपा और कांग्रेस दोनों में ही राजपूत नेताओं की धमक रही है.
हिमाचल की सियासत में ब्राह्मणों की भूमिका- 2011 की जनगणना के मुताबिक हिमाचल की आबादी में 50 फीसदी से अधिक सवर्ण है. इनमें 18 फीसद ब्राह्मण हैं, जो प्रदेश में अनुसूचित जातियों के बाद सबसे बड़ी आबादी है. हिमाचल की सियासत में कई ब्राह्मण चेहरों ने अपनी पहचान बनाई है. शांता कुमार प्रदेश के इकलौते ब्राह्मण मुख्यमंत्री रहे हैं. इसके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, सुरेश भारद्वाज, आनंद शर्मा जैसे कई बड़े ब्राह्मण चेहरे हिमाचल की राजनीति के चेहरे हैं. इनमें से कई चेहरे हिमाचल के मुख्यमंत्री की दौड़ में भी रहे लेकिन कई सालों तक वीरभद्र सिंह की छाया में कांग्रेस कोई और चेहरा नहीं दे पाई और बीजेपी ने भी राजपूत चेहरे को ही मुखिया बनाया.
ओबीसी बना और बिगाड़ सकते हैं खेल- हिमाचल में ओबीसी की जनसंख्या भले महज 13.52 फीसदी हो लेकिन ओबीसी वोट बैंक निर्णायक साबित हो सकता है. खासकर उस कांगड़ा जिले में जहां सबसे ज्यादा 15 सीटें हैं और हिमाचल में कहते हैं कि कांगड़ा का किला जीतने वाला ही सत्ता तक पहुंचता है. ओबीसी की 50 फीसदी से अधिक आबादी कांगड़ा में रहती है और प्रदेश की करीब 18 से 20 सीटों पर असर डाल सकते हैं. ओबीसी चेहरे भले हिमाचल में सियासत का चरम ना देख पाए हों लेकिन चंद्र कुमार, नीरज भारती, पवन काजल और जयराम सरकार में मंत्री सरवीण चौधरी जैसे नेताओं की अपने-अपने इलाकों में अच्छी खासी पैठ है.
एससी सीटों का समीकरण- हिमाचल में आबादी के लिहाज से अनुसूचित जाति की जनसंख्या राजपूतों के बाद दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या है. प्रदेश की 68 में से 17 विधानसभा सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. अनुसूचित जाति की भूमिका भी सरकार चुनने में रहती है. मौजूदा कैबिनेट मंत्री राजीव सैजल, पूर्व कैबिनेट मंत्री धनीराम शांडिल, केडी सुल्तानपुरी, सिंघीराम, रूपदास कश्यप, सुरेश कश्यप, वीरेंद्र कश्यप जैसे चेहरे सांसद, प्रदेश अध्यक्ष से लेकर हिमाचल के कैबिनेट मंत्री तक रहे हैं. इसके अलावा अनुसूचित जनजाति की भी 3 सीटें हिमाचल में हैं. मौजूदा वक्त में रामलाल मारकंडा जयराम कैबिनेट में अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व करते हैं, वहीं ठाकुर सिंह भरमौरी वीरभद्र कैबिनेट में मंत्री रहे.
हिमाचल प्रदेश में रिजर्व सीटें- हिमाचल प्रदेश में 68 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 17 सीटें अनुसूचित जाति (SC) और 3 सीटें अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित हैं. इसी तरह 4 लोकसभा सीटों में से शिमला की सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं.