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उपचुनाव में आसान नहीं बीजेपी की डगर, बागियों को मनाने में छूटे पसीने - हिमाचल प्रदेश बीजेपी न्यूज

हिमाचल में उपचुनावों को लेकर तैयारियां जोरों पर है. प्रदेश के चार में से तीन संसदीय क्षेत्रों की विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट पर होने वाले ये चुनाव 2022 के विधानसभा चुनावों का सेमीफाइनल ही समझे जा रहे हैं. ऐसे में सत्ता में होने के बावजूद उपचुनाव में बीजेपी की विजय की डगर आसान नहीं है. खासकर फतेहपुर और अर्की में बागी चोरों ने हाईकमान को चिंता में डाल दिया है.

Himachal Pradesh BJP News, हिमाचल प्रदेश बीजेपी न्यूज
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Published : Jul 20, 2021, 6:43 PM IST

शिमला: सत्ता में होने के बावजूद उपचुनाव में बीजेपी की विजय की डगर आसान नहीं है. खासकर फतेहपुर और अर्की में बागी चोरों ने हाईकमान को चिंता में डाल दिया है. हालात यह है कि प्रदेश भाजपा प्रभारी अविनाश राय खन्ना को बगावत की सुलग रही चिंगारी पर पानी डालने के लिए चंडीगढ़ से अर्की आना पड़ा.

दरअसल अर्की में गोविंद गोविंद राम शर्मा अचानक से नाराज हो गए. गोविंद राम पूर्व विधायक हैं और उन्होंने हाईकमान के कहने पर 2017 का चुनाव नहीं लड़ा था तब रतन सिंह पाल को टिकट दिया था, लेकिन वीरभद्र सिंह के राजनीतिक कद के सामने वे चुनाव हार गए थे. इधर इस बार उपचुनाव में गोविंद राम शर्मा फिर से टिकट की चाहवान हैं.

भाजपा को फतेहपुर में भी खींचतान का सामना करना पड़ रहा है. वहां कृपाल परमार एंड आदर्श के बीच जंग छिड़ी थी. मंडी और जुब्बल कोटखाई में भाजपा फिलहाल कंफर्ट जोन में है. मंडी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर (Chief Minister Jai Ram Thakur) का गृह जिला है और यहां से कद्दावर कैबिनेट मंत्री और लगभग सभी विधायक भाजपा के हैं.

हालांकि वीरभद्र सिंह के निधन के बाद मंडी सीट पर भी भाजपा के लिए आने वाला समय आसान नहीं होगा, यदि प्रतिभा सिंह चुनाव लड़ने का फैसला करती हैं तो मंडी में भाजपा को नाकों चने चबाने पड़ेंगे. फिलहाल हम यहां फतेहपुर और अर्की में हो रही खींचतान पर पहले नजर डालते हैं.

फतेहपुर में सुजान सिंह पठानिया के निधन के बाद सीट खाली हुई है. वहां सुजान सिंह पठानिया के बेटे भवानी सिंह पठानिया कांग्रेस के उम्मीदवार लगभग तय हैं, लेकिन भाजपा के लिए यहां स्थितियां सहज नहीं हैं. पहले कृपाल परमार को लेकर पार्टी में हंगामा हो चुका है. कृपाल परमार वरिष्ठ नेता हैं, लेकिन सहानुभूति लहर में भाजपा की जीत इतनी भी आसान नहीं है. वह भी तब जब पार्टी यहां तीन चुनाव लगातार हार चुकी है.

कार्यकर्ताओं का मानना है कि टिकट का वितरण सही न होने के कारण पार्टी को हमेशा नुकसान उठाना पड़ा. इस समय एक महिला नेत्री रिता ठाकुर भी यहां दावेदार हैं. पार्टी के पूर्व अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती और अन्य नेता कार्यकर्ताओं का रोष शांत करने के लिए फतेहपुर में बैठकें कर चुके हैं.

एक धड़े ने पूर्व जिला परिषद उपाध्यक्ष जगदेव सिंह के लिए टिकट की मांग की है. इस धड़े का मानना है कि जगदेव चंद लंबे समय से फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय हैं. जमीनी हकीकत से वाकिफ हैं. वे कार्यकर्ताओं को भी साथ लेकर चलने की क्षमता रखते हैं.

इधर कृपाल परमार की अपनी ही राजनीति है वह मंझे हुए राजनेता हैं और भलीभांति जानते हैं कि किस तरह से टिकट का दावा मजबूत किया जा सकता है. यह बात अलग है कि पूर्व सांसद और वरिष्ठ भाजपा नेता कृपाल परमार विवादों में भी रहे हैं. फिलहाल फतेहपुर में भाजपा ने अंदर खाते डैमेज कंट्रोल का दावा किया है.

इसी डैमेज कंट्रोल का परिणाम है कि जगदेव सिंह को किसान मोर्चा में पद दिया गया और एक अन्य सक्रिय नेता बलदेव ठाकुर को प्रदेश कार्यकारिणी में सदस्य बनाया गया. ठाकुर की नाराजगी भी दूर की गई. बगावत को थामने का जिम्मा खुद राज्य भाजपा प्रभारी अविनाश राय ने संभाला था.

वह इस कदर सक्रिय थे कि खुद जगदेव सिंह के घर जाकर मान-मनोहार की. अभी यह देखना है कि इस इलाके के एक और कद्दावर नेता राजन सुशांत कौन सी चाल चलते हैं. अभी ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भाजपा ने फतेहपुर का संकट सुलझा लिया है.

वही, अर्की की तरफ नजर डालें तो यहां गोविंद राम शर्मा के समर्थकों का कहना है कि उन्हें टिकट मिलना चाहिए. समर्थक कारण गिनाते हुए कहते हैं कि पूर्व प्रत्याशी रतन सिंह पाल के साथ कार्यकर्ता पूरे मन से नहीं हैं. गोविंद राम यहां से विधायक रह चुके हैं वह विनम्र स्वभाव के हैं और सभी को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते हैं.

इससे पहले की बगावत की चिंगारी और भड़कती मंगलवार को अविनाश राय खन्ना ने चंडीगढ़ से अर्की आकर कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के साथ बैठक की. उन्होंने नाराजगी के कारण जानने का प्रयास किया. दरअसल अविनाश राय खन्ना यह चाहते हैं कि उपचुनाव में विरोधी दल कांग्रेस भाजपा की तरफ से पार्टी मनोवैज्ञानिक बढ़त न ले सके.

अर्की में भाजपा हाईकमान को गोविंद राम शर्मा की नाराजगी चिंता में डाल सकती है. यहां पार्टी को टिकट का फैसला करना इतना आसान नहीं होगा. उधर, पार्टी प्रभारी अविनाश राय खन्ना की प्रतिष्ठा भी दांव पर है. भाजपा प्रभारी उपचुनाव में नाराजगी का कोई रिस्क नहीं ले सकते.

यह अलग बात है कि भाजपा हाईकमान मान मनुहार के बाद बागी स्वरों के खिलाफ सख्त एक्शन लेने में भी परहेज नहीं करता है. उम्मीद की जा रही है कि अंतिम क्षणों में भाजपा हाईकमान फतेहपुर और की नाराजगी को थाम लेगा.

मंडी लोकसभा सीट और कोटखाई में भाजपा को टिकट चयन में एक खास परेशानी नहीं आएगी. जुब्बल कोटखाई में तो करीब-करीब चेतन बरागटा भाजपा के प्रत्याशी तय हो चुके हैं. वह कई आयोजनों में भाग ले चुके हैं और भाजपा नेताओं के ऊपरी शिमला के दौरे में भी उनके साथ रहे थे.

यह संकेत है कि भाजपा चेतन बरागटा को ही उनके पिता की विरासत सौंपेंगी. वहीं, मंडी में भी भाजपा के पास प्रत्याशियों की कमी नहीं है. खुशहाल ठाकुर, अजय राणा, महेश्वर सिंह, जैसे संभावित प्रत्याशी है. भाजपा को मंडी में अब सबसे बड़ा खतरा तब पैदा होगा जब कांग्रेस प्रतिभा सिंह को यहां से चुनाव मैदान में उतारने में सफल होती है.

वीरभद्र सिंह के निधन के बाद हिमाचल की राजनीति में परिस्थितियां पूरी तरह से बदल गई है. मंडी लोकसभा क्षेत्र में वीरभद्र सिंह व कांग्रेस के प्रभाव से कौन इनकार कर सकता है. ऐसे समय में जब सहानुभूति लहर वीरभद्र सिंह परिवार के साथ है और पार्टी प्रतिभा सिंह को टिकट देती है तो सत्ता में होने के बावजूद भाजपा की राह यहां कठिन हो जाएगी.

यदि प्रतिभा सिंह चुनाव लड़ने से मना करती हैं तो संभावित प्रत्याशियों में कौल सिंह ठाकुर का नाम आगे आता है. आश्रय शर्मा पर शायद ही कांग्रेसी दांव लगाएं. ऐसे में मंडी लोकसभा क्षेत्र में भी अब मौजूदा परिस्थितियों में भाजपा की राह आसान नहीं रह गई है.

बेशक यहां से चुनाव प्रबंधन में माहिर महेंद्र सिंह ठाकुर को जिम्मेदारी सौंपी गई है, लेकिन सहानुभूति लहर में बहने वाले हिमाचल के मतदाताओं को ऐसे समय में कोई चुनाव प्रबंधन रिझा नहीं सकता. फिर वीरभद्र सिंह का कद खुद में इतना बड़ा है कि उनके नाम पर ही वोट आसानी से कांग्रेस की झोली में गिरेंगे.

इस तरह पिछली ही परिस्थितियों में फतेहपुर और अर्की में दबी छुपी बगावत और नाराजगी और मंडी में कांग्रेस के प्रति संभावित सहानुभूति लहर से भाजपा का चुनावी खेल बिगड़ सकता है. पार्टी अध्यक्ष सुरेश कश्यप दावा करते है कि तीनों विधानसभा सीटें और एक लोकसभा सीट पर भाजपा ही जीत हासिल करेगी.

सुरेश कश्यप का कहना है कि पार्टी कार्यकर्ता लगातार सक्रिय हैं और चुनावी मोड में रहते हैं. संगठन के तौर पर नियमित रूप से भाजपा पदाधिकारियों और मंडलों सहित कार्यकर्ताओं के साथ बैठकर होती हैं. मजबूत संगठन ही चुनाव में जीत हासिल करता है. अब सारी नजरें टिकट वितरण और विरोधी पक्ष के चेहरों पर टिक गई हैं.

ये भी पढ़ें- लंबलू कस्बे पर भाजपा और कांग्रेस की निगाहें, उप तहसील बनी रणभूमि

शिमला: सत्ता में होने के बावजूद उपचुनाव में बीजेपी की विजय की डगर आसान नहीं है. खासकर फतेहपुर और अर्की में बागी चोरों ने हाईकमान को चिंता में डाल दिया है. हालात यह है कि प्रदेश भाजपा प्रभारी अविनाश राय खन्ना को बगावत की सुलग रही चिंगारी पर पानी डालने के लिए चंडीगढ़ से अर्की आना पड़ा.

दरअसल अर्की में गोविंद गोविंद राम शर्मा अचानक से नाराज हो गए. गोविंद राम पूर्व विधायक हैं और उन्होंने हाईकमान के कहने पर 2017 का चुनाव नहीं लड़ा था तब रतन सिंह पाल को टिकट दिया था, लेकिन वीरभद्र सिंह के राजनीतिक कद के सामने वे चुनाव हार गए थे. इधर इस बार उपचुनाव में गोविंद राम शर्मा फिर से टिकट की चाहवान हैं.

भाजपा को फतेहपुर में भी खींचतान का सामना करना पड़ रहा है. वहां कृपाल परमार एंड आदर्श के बीच जंग छिड़ी थी. मंडी और जुब्बल कोटखाई में भाजपा फिलहाल कंफर्ट जोन में है. मंडी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर (Chief Minister Jai Ram Thakur) का गृह जिला है और यहां से कद्दावर कैबिनेट मंत्री और लगभग सभी विधायक भाजपा के हैं.

हालांकि वीरभद्र सिंह के निधन के बाद मंडी सीट पर भी भाजपा के लिए आने वाला समय आसान नहीं होगा, यदि प्रतिभा सिंह चुनाव लड़ने का फैसला करती हैं तो मंडी में भाजपा को नाकों चने चबाने पड़ेंगे. फिलहाल हम यहां फतेहपुर और अर्की में हो रही खींचतान पर पहले नजर डालते हैं.

फतेहपुर में सुजान सिंह पठानिया के निधन के बाद सीट खाली हुई है. वहां सुजान सिंह पठानिया के बेटे भवानी सिंह पठानिया कांग्रेस के उम्मीदवार लगभग तय हैं, लेकिन भाजपा के लिए यहां स्थितियां सहज नहीं हैं. पहले कृपाल परमार को लेकर पार्टी में हंगामा हो चुका है. कृपाल परमार वरिष्ठ नेता हैं, लेकिन सहानुभूति लहर में भाजपा की जीत इतनी भी आसान नहीं है. वह भी तब जब पार्टी यहां तीन चुनाव लगातार हार चुकी है.

कार्यकर्ताओं का मानना है कि टिकट का वितरण सही न होने के कारण पार्टी को हमेशा नुकसान उठाना पड़ा. इस समय एक महिला नेत्री रिता ठाकुर भी यहां दावेदार हैं. पार्टी के पूर्व अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती और अन्य नेता कार्यकर्ताओं का रोष शांत करने के लिए फतेहपुर में बैठकें कर चुके हैं.

एक धड़े ने पूर्व जिला परिषद उपाध्यक्ष जगदेव सिंह के लिए टिकट की मांग की है. इस धड़े का मानना है कि जगदेव चंद लंबे समय से फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय हैं. जमीनी हकीकत से वाकिफ हैं. वे कार्यकर्ताओं को भी साथ लेकर चलने की क्षमता रखते हैं.

इधर कृपाल परमार की अपनी ही राजनीति है वह मंझे हुए राजनेता हैं और भलीभांति जानते हैं कि किस तरह से टिकट का दावा मजबूत किया जा सकता है. यह बात अलग है कि पूर्व सांसद और वरिष्ठ भाजपा नेता कृपाल परमार विवादों में भी रहे हैं. फिलहाल फतेहपुर में भाजपा ने अंदर खाते डैमेज कंट्रोल का दावा किया है.

इसी डैमेज कंट्रोल का परिणाम है कि जगदेव सिंह को किसान मोर्चा में पद दिया गया और एक अन्य सक्रिय नेता बलदेव ठाकुर को प्रदेश कार्यकारिणी में सदस्य बनाया गया. ठाकुर की नाराजगी भी दूर की गई. बगावत को थामने का जिम्मा खुद राज्य भाजपा प्रभारी अविनाश राय ने संभाला था.

वह इस कदर सक्रिय थे कि खुद जगदेव सिंह के घर जाकर मान-मनोहार की. अभी यह देखना है कि इस इलाके के एक और कद्दावर नेता राजन सुशांत कौन सी चाल चलते हैं. अभी ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भाजपा ने फतेहपुर का संकट सुलझा लिया है.

वही, अर्की की तरफ नजर डालें तो यहां गोविंद राम शर्मा के समर्थकों का कहना है कि उन्हें टिकट मिलना चाहिए. समर्थक कारण गिनाते हुए कहते हैं कि पूर्व प्रत्याशी रतन सिंह पाल के साथ कार्यकर्ता पूरे मन से नहीं हैं. गोविंद राम यहां से विधायक रह चुके हैं वह विनम्र स्वभाव के हैं और सभी को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते हैं.

इससे पहले की बगावत की चिंगारी और भड़कती मंगलवार को अविनाश राय खन्ना ने चंडीगढ़ से अर्की आकर कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के साथ बैठक की. उन्होंने नाराजगी के कारण जानने का प्रयास किया. दरअसल अविनाश राय खन्ना यह चाहते हैं कि उपचुनाव में विरोधी दल कांग्रेस भाजपा की तरफ से पार्टी मनोवैज्ञानिक बढ़त न ले सके.

अर्की में भाजपा हाईकमान को गोविंद राम शर्मा की नाराजगी चिंता में डाल सकती है. यहां पार्टी को टिकट का फैसला करना इतना आसान नहीं होगा. उधर, पार्टी प्रभारी अविनाश राय खन्ना की प्रतिष्ठा भी दांव पर है. भाजपा प्रभारी उपचुनाव में नाराजगी का कोई रिस्क नहीं ले सकते.

यह अलग बात है कि भाजपा हाईकमान मान मनुहार के बाद बागी स्वरों के खिलाफ सख्त एक्शन लेने में भी परहेज नहीं करता है. उम्मीद की जा रही है कि अंतिम क्षणों में भाजपा हाईकमान फतेहपुर और की नाराजगी को थाम लेगा.

मंडी लोकसभा सीट और कोटखाई में भाजपा को टिकट चयन में एक खास परेशानी नहीं आएगी. जुब्बल कोटखाई में तो करीब-करीब चेतन बरागटा भाजपा के प्रत्याशी तय हो चुके हैं. वह कई आयोजनों में भाग ले चुके हैं और भाजपा नेताओं के ऊपरी शिमला के दौरे में भी उनके साथ रहे थे.

यह संकेत है कि भाजपा चेतन बरागटा को ही उनके पिता की विरासत सौंपेंगी. वहीं, मंडी में भी भाजपा के पास प्रत्याशियों की कमी नहीं है. खुशहाल ठाकुर, अजय राणा, महेश्वर सिंह, जैसे संभावित प्रत्याशी है. भाजपा को मंडी में अब सबसे बड़ा खतरा तब पैदा होगा जब कांग्रेस प्रतिभा सिंह को यहां से चुनाव मैदान में उतारने में सफल होती है.

वीरभद्र सिंह के निधन के बाद हिमाचल की राजनीति में परिस्थितियां पूरी तरह से बदल गई है. मंडी लोकसभा क्षेत्र में वीरभद्र सिंह व कांग्रेस के प्रभाव से कौन इनकार कर सकता है. ऐसे समय में जब सहानुभूति लहर वीरभद्र सिंह परिवार के साथ है और पार्टी प्रतिभा सिंह को टिकट देती है तो सत्ता में होने के बावजूद भाजपा की राह यहां कठिन हो जाएगी.

यदि प्रतिभा सिंह चुनाव लड़ने से मना करती हैं तो संभावित प्रत्याशियों में कौल सिंह ठाकुर का नाम आगे आता है. आश्रय शर्मा पर शायद ही कांग्रेसी दांव लगाएं. ऐसे में मंडी लोकसभा क्षेत्र में भी अब मौजूदा परिस्थितियों में भाजपा की राह आसान नहीं रह गई है.

बेशक यहां से चुनाव प्रबंधन में माहिर महेंद्र सिंह ठाकुर को जिम्मेदारी सौंपी गई है, लेकिन सहानुभूति लहर में बहने वाले हिमाचल के मतदाताओं को ऐसे समय में कोई चुनाव प्रबंधन रिझा नहीं सकता. फिर वीरभद्र सिंह का कद खुद में इतना बड़ा है कि उनके नाम पर ही वोट आसानी से कांग्रेस की झोली में गिरेंगे.

इस तरह पिछली ही परिस्थितियों में फतेहपुर और अर्की में दबी छुपी बगावत और नाराजगी और मंडी में कांग्रेस के प्रति संभावित सहानुभूति लहर से भाजपा का चुनावी खेल बिगड़ सकता है. पार्टी अध्यक्ष सुरेश कश्यप दावा करते है कि तीनों विधानसभा सीटें और एक लोकसभा सीट पर भाजपा ही जीत हासिल करेगी.

सुरेश कश्यप का कहना है कि पार्टी कार्यकर्ता लगातार सक्रिय हैं और चुनावी मोड में रहते हैं. संगठन के तौर पर नियमित रूप से भाजपा पदाधिकारियों और मंडलों सहित कार्यकर्ताओं के साथ बैठकर होती हैं. मजबूत संगठन ही चुनाव में जीत हासिल करता है. अब सारी नजरें टिकट वितरण और विरोधी पक्ष के चेहरों पर टिक गई हैं.

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