शिमला: सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अक्सर सुनाई देने वाली शहनाई (बीण) की धुन अब गायब होते जा रही है. पारंपरिक कला को संजोने का काम मुठी भर लोग ही कर रहे हैं. इसका कारण ये भी है कि मॉडर्न सोसाइटी में अब पाश्चात्य संगीत का बोल बोला होता जा रहा है.
स्थानीय बोली में इस वाद्य यंत्र को बीण कहा जाता है. सरकार की अनदेखी के कारण भी इस कला को विस्तार नहीं मिल पा रहा है. अपनी सांसों की दम पर इस कला को संजो रहे कलाकारों की माने तो पहले सभी कार्यक्रमों में शहनाई बजती थी, लेकिन अब इसमें लोगों की रूचि कम होती जा रही है.
85 वर्षीय मस्तराम राणा व उनके सहयोगी आज भी इस कला को संजोने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं. शिमला में समर फेस्टिवल का आयोजन किया जा रहा है और इनका दल भी बीण की मधूर धुन से लोगों का मनोरंजन कर रहा है.
ईटीवी से बातचीत के दौरान मस्तराम राणा ने कहा कि पहले बीण खूब प्रचलन में थी और जब भी कभी सांस्कृतिक कार्यक्रम होता था उन्हें जरूर बुलाया जाता था, लेकिन अब इसमें कलाकार कम होते जा रहे हैं और गिने चुने ही लोग इस कला को संभाल रहे हैं. उन्होंने कहा कि वह 65 सालों से बीण वादन से जुड़े हैं, लेकिन अब उन्हें इस परम्परा के लुप्त होने की चिंता सताने लगी है.
कलाकारों की उम्मीद अब सरकार पर टिक्की हैं. उनका कहना है कि सरकार को लुप्त होती इस कला को बचाने के लिए उचित कदम उठाए जाने चाहिए.
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