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उखड़ती सांसों से अभी भी संभाल रखे हैं 'बीण' के सुर, इन लोक कलाकारों की सुध नहीं लेती सरकार

स्थानीय बोली में इस वाद्य यंत्र को बीण कहा जाता है. सरकार की अनदेखी के कारण भी इस कला को विस्तार नहीं मिल पा रहा है.

'बीण' बजाते कलाकार
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Published : Jun 4, 2019, 9:08 PM IST

शिमला: सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अक्सर सुनाई देने वाली शहनाई (बीण) की धुन अब गायब होते जा रही है. पारंपरिक कला को संजोने का काम मुठी भर लोग ही कर रहे हैं. इसका कारण ये भी है कि मॉडर्न सोसाइटी में अब पाश्चात्य संगीत का बोल बोला होता जा रहा है.


स्थानीय बोली में इस वाद्य यंत्र को बीण कहा जाता है. सरकार की अनदेखी के कारण भी इस कला को विस्तार नहीं मिल पा रहा है. अपनी सांसों की दम पर इस कला को संजो रहे कलाकारों की माने तो पहले सभी कार्यक्रमों में शहनाई बजती थी, लेकिन अब इसमें लोगों की रूचि कम होती जा रही है.

अनदेखी का शिकार कलाकार


85 वर्षीय मस्तराम राणा व उनके सहयोगी आज भी इस कला को संजोने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं. शिमला में समर फेस्टिवल का आयोजन किया जा रहा है और इनका दल भी बीण की मधूर धुन से लोगों का मनोरंजन कर रहा है.
ईटीवी से बातचीत के दौरान मस्तराम राणा ने कहा कि पहले बीण खूब प्रचलन में थी और जब भी कभी सांस्कृतिक कार्यक्रम होता था उन्हें जरूर बुलाया जाता था, लेकिन अब इसमें कलाकार कम होते जा रहे हैं और गिने चुने ही लोग इस कला को संभाल रहे हैं. उन्होंने कहा कि वह 65 सालों से बीण वादन से जुड़े हैं, लेकिन अब उन्हें इस परम्परा के लुप्त होने की चिंता सताने लगी है.


कलाकारों की उम्मीद अब सरकार पर टिक्की हैं. उनका कहना है कि सरकार को लुप्त होती इस कला को बचाने के लिए उचित कदम उठाए जाने चाहिए.

ये भी पढ़ेंः मां शूलिनी मेले में टूट सकती है ये प्रथा, जानिए क्या है ये दशकों से चली आ रही अनोखी परम्परा

शिमला: सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अक्सर सुनाई देने वाली शहनाई (बीण) की धुन अब गायब होते जा रही है. पारंपरिक कला को संजोने का काम मुठी भर लोग ही कर रहे हैं. इसका कारण ये भी है कि मॉडर्न सोसाइटी में अब पाश्चात्य संगीत का बोल बोला होता जा रहा है.


स्थानीय बोली में इस वाद्य यंत्र को बीण कहा जाता है. सरकार की अनदेखी के कारण भी इस कला को विस्तार नहीं मिल पा रहा है. अपनी सांसों की दम पर इस कला को संजो रहे कलाकारों की माने तो पहले सभी कार्यक्रमों में शहनाई बजती थी, लेकिन अब इसमें लोगों की रूचि कम होती जा रही है.

अनदेखी का शिकार कलाकार


85 वर्षीय मस्तराम राणा व उनके सहयोगी आज भी इस कला को संजोने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं. शिमला में समर फेस्टिवल का आयोजन किया जा रहा है और इनका दल भी बीण की मधूर धुन से लोगों का मनोरंजन कर रहा है.
ईटीवी से बातचीत के दौरान मस्तराम राणा ने कहा कि पहले बीण खूब प्रचलन में थी और जब भी कभी सांस्कृतिक कार्यक्रम होता था उन्हें जरूर बुलाया जाता था, लेकिन अब इसमें कलाकार कम होते जा रहे हैं और गिने चुने ही लोग इस कला को संभाल रहे हैं. उन्होंने कहा कि वह 65 सालों से बीण वादन से जुड़े हैं, लेकिन अब उन्हें इस परम्परा के लुप्त होने की चिंता सताने लगी है.


कलाकारों की उम्मीद अब सरकार पर टिक्की हैं. उनका कहना है कि सरकार को लुप्त होती इस कला को बचाने के लिए उचित कदम उठाए जाने चाहिए.

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Intro:
अपनी सांसो के दम पर जिंदा रखे है शहनाई परम्परा 

अब सरकार से हे उम्मीदे। 

शिमला। 

शादी समारोह में शुभ माने जाने वाले शहनाई अब धीरे धीरे लुप्त होती जा रही है। कारन हे लोगो की इसमें रूचि ना होना। लेकिन अभी भी 85 वर्षीय मस्तराम राणा व उनके सहयोगी अपने सांसो के दम पर इस ऐतिहासिक परम्परा को जीवित रखे हुए है।


Body:


ईटीवी से बातचीत के दौरान शहनाई वादक मस्तराम राणा ने कहा कि पहले यह खूब प्रचलन में थी और जब भी कभी सांस्कृतिक कार्यक्रम होता था उन्हें जरूर बुलाया जाता था लेकिन अब इसमें कलाकार कम होते जा रहे है और गिने चुने ही शहनाई वादक रह गए है। उन्होंने कहा की वर्तमान में नौकरियों की चाहत में युवा पीढ़ी पढ़ाई करने में जुटी हुई है और अपनी ऐतिहासिक परम्परा को भूलते जा रहे है। उन्होंने कहा कि वह 65 सालो से इस शहनाई वादन में जुड़े है लेकिन अब उन्हें इस परम्परा के लुप्त होने की चिंता सताने लगी है।




Conclusion: उनकी उम्मीद अब सरकार के ऊपर टिक्की है। उनका कहना है की सरकार को लुप्त होते जा रहे शहनाई परम्परा को बचाने के लिए कोई कदम उठाना चाहिए। 
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