शिमला: हिमाचल में इस बार मौसम के मिजाज से सेब बागवानी संकट में पड़ सकती है. अनुकूल मौसम न होने से बागीचों में चिलिंग ऑवर्स पूरे न होने की आशंका बनी हुई है, जिसका आगामी फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है. इसी तरह सूखे की वजह से सेब के बागीचों में खाद डालने और अन्य काम नहीं हो पा रहे हैं. ऐसे में बागवानों को चिंता सता रही है. अगर समय रहते बर्फबारी या बारिश नहीं हुई तो इससे अगले सीजन में सेब की फसल की संभावना कम हो सकती है.
अनुकूल मौसम न होने की वजह से सेब के लिए जरूरी चिलिंग ऑवर्स भी कम पड़ सकते हैं. विशेषकर निचले और मध्यम इलाकों में यह समस्या आ सकती है. आमतौर पर इन इलाकों में सेब के चिलिंग ऑवर्स दिसंबर से लेकर फरवरी तक ही होते हैं, जिसमें तापमान शून्य से लेकर 7 डिग्री तक रहता है. सेब की अधिकतर किस्मों के लिए 1200 से लेकर 1400 चिलिंग ऑवर्स की जरूरत रहती है. लेकिन, इस बार दिसंबर में तापमान अधिक रहा है और जनवरी में भी अधिकतर इलाकों में तापमान कम नहीं रहा, जिसके चलते निम्न और मध्यम इलाकों में चिलिंग ऑवर पूरा न की संभावना बन गई है.
इसलिए जरूरी है चिलिंग ऑवर्स: सर्दियों में सेब के पौधों के लिए बेहद कम तापमान 7 डिग्री सेल्सियस या इससे नीचे के तापमान की जरूरत रहती है, जिसे चिलिंग ऑवर्स कहते हैं. इस तापमान में पौधे सुप्त अवस्था में रहते हैं जिससे गर्मियां शुरू होते ही पौधों में फ्वारिंग आने लगती है. अगर जरूरी चिलिंग ऑवर पूरे न हो तो इसका सेब की फ्लावरिंग पर असर पड़ता है. इससे सेब की फ्वारिंग कम और देरी से हो सकती है. यही नहीं इसे सेब की पत्तियों का विकास भी प्रभावित होता है जिसका सीधा असर सेब की फसल पर होता है.
पर्याप्त बर्फ और बारिश न होने से बगीचों में सूखे की स्थिति: पर्याप्त बर्फबारी और बारिश न होने से प्रदेश के अधिकांश इलाकों सूखे की स्थिति पैदा हुई है. जिसका कृषि और बागवानी पर असर पड़ने लगा है. दरअसल, पिछले लंबे अरसे से अधितकतर इलाकों में अच्छी बारिश नहीं हुई है. सेब बाहुल इलाकों में भी कम बारिश और बर्फबारी हुई है. इससे सेब के बगीचे सूखे की चपेट में हैं.
बागीचों में नमी नहीं है. जिससे बगीचों के बीमारियां की चपेट में आने का खतरा बढ़ गया है. सूखे चलते सेब के बगीचों में केंकर और वूली एफिड के पनपने की संभावना रहती है. विशेषज्ञों के मुताबिक कांटछांट के दौरान सेब में जख्म वाली जगहों पर वूली एफिड और केंकर सूखे में पनपपने का खतरा ज्यादा रहता है. यह रोग अगर पेड़ में लग जाए तो उसको धीरे-धीरे खत्म कर देता है. ऐसे में इसके लिए बागवानों को विशेष ध्यान रखने की जरूत है.
जनवरी में अधिकतर इलाकों में हुई कम बारिश: हिमचल के अधिकतर इलाकों जनवरी माह में कम बारिश हुई है. इनमें जिला चंबा में सामान्य से 6 फीसदी से कम बारिश हुई है. इसी तरह किन्नौर में सामान्य से 66 फीसदी कम, लाहौल स्पिति में 18 फीसदी कम, मंडी में 42 फीसदी से कम, शिमला जिला में 39 फीसदी कम, सिरमौर में 33 फीसदी कम और सोलन में सामान्य से 32 फीसदी कम बारिश हुई है. हालांकि कुल्लू जिला में ओवर ऑल बारिश अभी तक सामान्य है. लेकिन कई सेब बहुल इलाकों में बारिश कम हुई है.
उधर, बगावानी विभाग के संयुक्त निदेशक देसराज शर्मा का कहना है कि आने वाले समय में मौसम का क्या रूख रहता है, यह देखने वाली बात है. अगर तापमान लो नहीं रहा तो इससे निम्न व मध्यम इलाकों में चिलिंग ऑवर्स पूरे होने में दिक्कतें आ सकती हैं. हालांकि ऊंचाई वाले इलाकों में इसके लिए अभी काफी समय है. बागवानों को बारिश और बर्फबारी की भी जरूरत है ताकि बागीचों में नमी बनी रहे. हालांकि अभी सर्दियों का समय है और उम्मीद है कि आने वाले दिनों में बारिश और बर्फबारी होगी.
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