शिमला: शहर में कठिन चढ़ाई वाले रास्तों पर गैस का सिलेंडर से लेकर राशन या फिर कोई भी भरकम सामान घर तक पहुंचाना हो कश्मीरियों के मजबूत कंधे ही इसे लोगों के दरवाजे तक पहुंचाते थे, इन्हें शिमला की लाइफ लाइन कहा जाता है, लेकिन कोरोना के चलते लगाए गए कर्फ्यू के कारण इनका कामकाज ठप्प हो गया था. ऐसे में ये सरकार से घर जाने की गुहार लगा रहे थे.
ईटीवी भारत हिमाचल भी लगातार कश्मीरियों के मुद्दे को सरकार और प्रशासन के सामने रख रहा था. नतीजा ये हुआ कि शनिवार को सुबह की पहली किरण निकलने से पहले 168 कश्मीरी छह बसों में लखनपुर बॉर्डर तक रवाना हुए. इसके बाद दोपहर को 81 लोगों का जत्था 2 बसों में घर की ओर रवाना हुआ. कुल मिलाकर 249 कश्मीरी लखनपुर बॉर्डर की ओर कूच कर चुके हैं.
एक बस में लगभग 25 लोग सवार थे, लखनपुर बॉर्डर से जम्मू प्रशासन आगे जाने की व्यवस्था करेगा, लेकिन अभी भी दो सौ कश्मीरी खान शिमला में दूध और गैस की सप्लाई करने का काम कर रहे हैं इसके अलावा बिजली के खंभों का काम करने वाले मजदूर भी शिमला में ही है, जबकि ऊपरी शिमला में भी 50 के करीब कश्मीरी खान दी तीन में घर के लिए रवाना होंगे.
शिमला की लाइफलाइन अब घर की ओर रवाना हो चुकी है, क्योंकि कोरोना की मार से लाइफ कमरे में बंद थी और रोजी रोटी की लाइन कट चुकी थी. ये कश्मीरी सालों से शिमला में रहकर अपनी रोजी रोटी कमाते हैं, लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है कि इन्हें मजबूरी में घर जाना पड़ रहा है.