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सियासत के अग्निपथ पर दो परिवार, पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ रही सियासी 'रार'

छोटी काशी के नाम से विख्यात मंडी के दो राजनैतिक घरानों के बीच रार पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ती जा रही है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कौल सिंह और राजनीति में चाणक्य कहे जाने वाले पंडित सुखराम का परिवार एक बार फिर सुर्खियों मे है. ताजा राजनैतिक घटनाक्रम में खुद कौल सिंह ठाकुर व पंडित सुखराम के पोते आश्रय शर्मा आमने-सामने हैं.

kaul singh and pt Sukhram families
सियासत के अग्निपथ पर दो परिवार
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Published : Jul 5, 2020, 3:04 PM IST

मंडी: हिमाचल की राजनीति में अपनी पहचान रखने वाले दो राजनीतिक परिवार एक बार फिर आमने-सामने हैं. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कौल सिंह व कांग्रेस के दिग्गज नेता पंडित सुखराम का परिवार फिर से हिमाचल की राजनीति में सुर्खियों में है.

ताजा राजनैतिक घटनाक्रम में कौल सिंह ठाकुर व आश्रय शर्मा आमने-सामने हैं. कौल सिंह समर्थकों ने इन दिनों कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कुलदीप राठौर के खिलाफ मोर्चा खोला है. इस बीच कौल सिंह को कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष बनाने को लेकर एक चिट्ठी भी वायरल हुई है.

इसी घटनाक्रम के बीच आश्रय भी अब सक्रिय हो गए हैं और उनके जन्मदिन के मौके पर लंच के बहाने इकट्ठा होकर अनुशासनहीनता पर कार्रवाई के लिए आवाज बुलंदकर राजनीति में उफान ला दिया है. इन दो परिवारों में राजनितिक तौर पर जो दुश्मनी है वह पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती हुई नजर आ रही है.

1993 में नहीं दिया था सुखराम का साथ

कौल सिंह ठाकुर पर ये आरोप लगता आ रहा है कि इन्होंने पंडित सुखराम का साथ न देकर उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने से रोक दिया था. वैसे यह बात 1993 की है जब मंडी जिला से कांग्रेस ने 9 सीटें जीती थी और एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी.

उस वक्त सुखराम का मुख्यमंत्री बनना लगभग तय था, लेकिन कहा यह भी जाता है कि सुखराम ने जिला के तीन नेताओं को एक ही विभाग का लालच देकर अपनी तरफ करने की कोशिश की थी जिसके कारण ही उन्हें इनके विरोध को झेलना पड़ा और सीएम बनते-बनते रह गए थे. उसके बाद से ही सुखराम और कौल सिंह ठाकुर के बीच 36 का आंकड़ा हो गया और यह एक दूसरे के राजनैतिक दुश्मन बन बैठे.

आश्रय निभा रहे पुरानी रंजिश को

सुखराम तो सक्रिय राजनीति से दूर हो गए हैं, लेकिन कौल सिंह ठाकुर अभी भी सक्रिय राजनीति में बरकरार हैं, लेकिन कौल सिंह ठाकुर को टक्कर देने के लिए अब सुखराम का पोता आश्रय शर्मा पूरी तरह से फ्रंट फुट पर आकर खड़ा हो गया.

यह परिवार नहीं चाहता कि मंडी जिला से कांग्रेस का कोई नेता उभर कर सामने आए, क्योंकि ऐसा होने से भविष्य में इन्हीं को खतरा होगा. कौल सिंह ठाकुर इस वक्त हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की कमान संभालना चाहते हैं और उसके लिए उन्होंने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है, लेकिन कौल सिंह को इसके लिए उनके अपने गृहजिला के नेताओं का ही साथ नहीं मिल पा रहा है.

आश्रय शर्मा ने अपने दादा की पुरानी रंजिश को निभाने का मन बना लिया है और कौल सिंह ठाकुर की राह में रोड़ा बन गए हैं.

दोनों परिवारों के खिंच गई हैं तलवारें

एक तरफ कौल सिंह ठाकुर दोबारा हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद की तरफ अपने कदम बढ़ा रहे हैं और दूसरी तरफ आश्रय शर्मा उन्हें पीछे धकेलने में लगे हुए हैं. कौल सिंह ठाकुर भी दिल्ली तक अपनी पहुंच रखते हैं और आश्रय शर्मा भी.

ऐसे में राजनैतिक रूप से एक-दूसरे को पीछे धकेलने में दोनों ही नेता एढ़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं. इसके साथ ही आश्रय ने जिला में संगठन को ही अपने कब्जे में लेने की कवायद शुरू कर दी है. दूसरी तरफ कौल सिंह ठाकुर की बेटी चंपा ठाकुर ने भी सदर में अपनी अपनी अच्छी पैंठ बना ली है.

ऐसे में रंजिश और ज्यादा बढ़ गई है. क्योंकि दोनों परिवारों ने फिर से तलवारें खिंच ली हैं, ऐसे में आने वाले समय में इस पुरानी रंजिश का नया स्वरूप सभी को प्रत्यक्ष रूप से देखने को मिलेगा.

लोकसभा चुनावों में हुआ समझौता टूटा

इन दोनों परिवारों के बीच 2019 में हुए लोकसभा चुनावों के दौरान समझौता हो गया था. सुखराम और कौल सिंह ठाकुर ने आपस में बैठकर सभी पुरानी बातों को भूलाकर नई शुरुआत करने का निर्णय लिया था, लेकिन लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद अब जो हालात पैदा हुए उसमें यह समझौता पूरी तरह से धराशाही हो गया है और फिर से इन परिवारों के बीच राजनैतिक युद्ध शुरू हो गया है.

मंडी: हिमाचल की राजनीति में अपनी पहचान रखने वाले दो राजनीतिक परिवार एक बार फिर आमने-सामने हैं. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कौल सिंह व कांग्रेस के दिग्गज नेता पंडित सुखराम का परिवार फिर से हिमाचल की राजनीति में सुर्खियों में है.

ताजा राजनैतिक घटनाक्रम में कौल सिंह ठाकुर व आश्रय शर्मा आमने-सामने हैं. कौल सिंह समर्थकों ने इन दिनों कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कुलदीप राठौर के खिलाफ मोर्चा खोला है. इस बीच कौल सिंह को कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष बनाने को लेकर एक चिट्ठी भी वायरल हुई है.

इसी घटनाक्रम के बीच आश्रय भी अब सक्रिय हो गए हैं और उनके जन्मदिन के मौके पर लंच के बहाने इकट्ठा होकर अनुशासनहीनता पर कार्रवाई के लिए आवाज बुलंदकर राजनीति में उफान ला दिया है. इन दो परिवारों में राजनितिक तौर पर जो दुश्मनी है वह पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती हुई नजर आ रही है.

1993 में नहीं दिया था सुखराम का साथ

कौल सिंह ठाकुर पर ये आरोप लगता आ रहा है कि इन्होंने पंडित सुखराम का साथ न देकर उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने से रोक दिया था. वैसे यह बात 1993 की है जब मंडी जिला से कांग्रेस ने 9 सीटें जीती थी और एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी.

उस वक्त सुखराम का मुख्यमंत्री बनना लगभग तय था, लेकिन कहा यह भी जाता है कि सुखराम ने जिला के तीन नेताओं को एक ही विभाग का लालच देकर अपनी तरफ करने की कोशिश की थी जिसके कारण ही उन्हें इनके विरोध को झेलना पड़ा और सीएम बनते-बनते रह गए थे. उसके बाद से ही सुखराम और कौल सिंह ठाकुर के बीच 36 का आंकड़ा हो गया और यह एक दूसरे के राजनैतिक दुश्मन बन बैठे.

आश्रय निभा रहे पुरानी रंजिश को

सुखराम तो सक्रिय राजनीति से दूर हो गए हैं, लेकिन कौल सिंह ठाकुर अभी भी सक्रिय राजनीति में बरकरार हैं, लेकिन कौल सिंह ठाकुर को टक्कर देने के लिए अब सुखराम का पोता आश्रय शर्मा पूरी तरह से फ्रंट फुट पर आकर खड़ा हो गया.

यह परिवार नहीं चाहता कि मंडी जिला से कांग्रेस का कोई नेता उभर कर सामने आए, क्योंकि ऐसा होने से भविष्य में इन्हीं को खतरा होगा. कौल सिंह ठाकुर इस वक्त हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की कमान संभालना चाहते हैं और उसके लिए उन्होंने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है, लेकिन कौल सिंह को इसके लिए उनके अपने गृहजिला के नेताओं का ही साथ नहीं मिल पा रहा है.

आश्रय शर्मा ने अपने दादा की पुरानी रंजिश को निभाने का मन बना लिया है और कौल सिंह ठाकुर की राह में रोड़ा बन गए हैं.

दोनों परिवारों के खिंच गई हैं तलवारें

एक तरफ कौल सिंह ठाकुर दोबारा हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद की तरफ अपने कदम बढ़ा रहे हैं और दूसरी तरफ आश्रय शर्मा उन्हें पीछे धकेलने में लगे हुए हैं. कौल सिंह ठाकुर भी दिल्ली तक अपनी पहुंच रखते हैं और आश्रय शर्मा भी.

ऐसे में राजनैतिक रूप से एक-दूसरे को पीछे धकेलने में दोनों ही नेता एढ़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं. इसके साथ ही आश्रय ने जिला में संगठन को ही अपने कब्जे में लेने की कवायद शुरू कर दी है. दूसरी तरफ कौल सिंह ठाकुर की बेटी चंपा ठाकुर ने भी सदर में अपनी अपनी अच्छी पैंठ बना ली है.

ऐसे में रंजिश और ज्यादा बढ़ गई है. क्योंकि दोनों परिवारों ने फिर से तलवारें खिंच ली हैं, ऐसे में आने वाले समय में इस पुरानी रंजिश का नया स्वरूप सभी को प्रत्यक्ष रूप से देखने को मिलेगा.

लोकसभा चुनावों में हुआ समझौता टूटा

इन दोनों परिवारों के बीच 2019 में हुए लोकसभा चुनावों के दौरान समझौता हो गया था. सुखराम और कौल सिंह ठाकुर ने आपस में बैठकर सभी पुरानी बातों को भूलाकर नई शुरुआत करने का निर्णय लिया था, लेकिन लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद अब जो हालात पैदा हुए उसमें यह समझौता पूरी तरह से धराशाही हो गया है और फिर से इन परिवारों के बीच राजनैतिक युद्ध शुरू हो गया है.

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