मंडीः भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी के शोधकर्ताओं ने फेस मास्क और अन्य पीपीई उपकरण बनाने के लिए खास सामग्री का विकास किया है जो वायरस-फिल्टर करने, खुद अपनी सफाई करने में सक्षम और जीवाणुरोधी हैं. इस सामग्री का विकास आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज में सहायक प्रोफेसर डॉ.अमित जायसवाल के साथ शोधकर्ता प्रवीण कुमार, शौनक रॉय और सु अंकिता सकरकर ने किया है.
फेस मास्क बना हमारे पोशाक का हिस्सा
डॉ.अमित जायसवाल ने कहा कि शोध के परिणाम हाल ही में अमेरिकन केमिकल सोसायटी के प्रतिष्ठित जर्नल-एप्लाइड मैटीरियल्स एण्ड इंटरफेसेज में प्रकाशित हुए हैं. महामारी के कठिन दौर में सार्वजनिक जीवन में फेस मास्क हमारे पोशाक का हिस्सा बन गया है. हालांकि वास्तव में जरूरी यह है कि ये एंटी-माइक्रोबियल एजेंट बन कर रोग के जनक को रोकने या मारने का भी कार्य करें.
खास कर दोबारा इस्तेमाल किए जाने वाले मास्क के लिए यह अधिक महत्वपूर्ण है. आज बार-बार उपयोगी मास्क इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि केवल एक बार उपयोग वाले मास्क से कूड़ा फैलने और प्रदूषण बढ़ने के साथ दूसरी बार संक्रमण का खतरा बढ़ता है.
महामारी के मद्देनजर और मास्क की लागत कम करने की अनिवार्यता ध्यान में रखते हुए हम ने मौजूदा पीपीई, खास कर फेस मास्क के उद्देश्य पर पुनिर्वचार करने की रणनीति बनाई. इसके तहत सुरक्षात्मक कपड़ों/वस्त्रों पर रोगाणु-रोधी कोटिंग की गई है.
रोगाणुरोधी मास्क करेंगे जोखिम को कम
डॉ. जायसवाल ने बताया कि उपयोग के बाद पीपीई फेंकने में लापरवाही से दूसरा संक्रमण शुरू होने का खतरा है. परंतु बार-बार उपयोगी रोगाणुरोधी मास्क इस जोखिम को कम करेंगे. यह फैब्रिक बार-बार उपयोगी है इसलिए घरेलू मास्क बनाने में भी इसका बखूबी उपयोग होगा.
शोधकर्ताओं ने एमओएस मोडिफाइड फैब्रिक से बने 4 लेयर के फेस मास्क के प्रोटोटाइप विकसित किए हैं. उनका कहना है कि ये मास्क रोगाणुओं को मारने और रोशनी में साफ होने के अलावा कोविड वायरस आकार के 96 प्रतिशत कणों को छान सकते हैं जबकि इस फैब्रिक की वजह से सांस लेने की क्षमता में कोई कमी नहीं आएगी. इस तरह ये मास्क कोरोना वायरस और अन्य सूक्ष्मजीव के संक्रमण रोकने के शक्तिशाली उपाय हो सकते हैं.
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