मंडी: सीएम जयराम ठाकुर के गृह क्षेत्र में हींग की खेती होगी. इसके लिए इन दिनों ट्रायल लिया जा रहा है. ट्रायल सफल रहने पर लाहौल स्पीति के बाद सराज घाटी में भी हींग की खेती हो सकेगी.
हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएचबीटी) पालमपुर के डॉक्टर रमेश कुमार ने बताया कि संस्थान के उच्च अधिकारी डॉक्टर विजय कुमार के आदेशानुसार हींग की खेती के लिए उपयुक्त स्थानों का सर्वे किया जा रहा है. इसके लिए सराज के जंजैहली क्षेत्र में हींग की खेती की पार संभावनाएं हैं.
उन्होंने कहा कि इस दौरान सराज और नाचन में खेती का ट्रायल किया जा रहा है. जंजैहली के मनोज कुमार व गणेशचौक के संजीव कुमार के यंहा विशेषज्ञों ने हींग की खेती के लिए पहली बार ट्रायल के लिए पौधे लगाए हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि संस्थान की यह पहल देश को हींग के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बड़ा कदम होगा. हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएचबीटी) पालमपुर ने गुणवत्तायुक्त हींग के पौधे तैयार किए हैं.
उन्होंने कहा कि पालमपुर में पहली बार हींग की खेती शुरू होने वाली है. भारत में अभी तक हींग का उत्पादन नहीं होता था. सीएसआईआर के हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएचबीटी) पालमपुर में हींग के उत्पादन की पहल की जाएगी.
बताया जा रहा है कि नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक के माध्यम से संस्थान को हींग के बीज उपलब्ध हुए हैं. व्यापारिक आंकड़ों के मुताबिक देश में हर साल 1145 टन हींग की खपत होती है. देश 70 मिलियन डॉलर का हींग हर साल आयात करता है.
अफगानिस्तान भारत को हींग की आपूर्ति करने वाला सबसे प्रमुख देश है. अफगानिस्तान से 90 प्रतिशत हींग भारत आयात करता है, जबकि उसके 8 प्रतिशत उज्बेकिस्तान और 2 प्रतिशत ईरान से हींग आयात किया जाता है.
सीएसआईआर के हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएचबीटी) पालमपुर ने प्रारंभिक रूप में हींग की बिजाई की है. यह एक आयुर्वेद औषधि के गुणों से परिपूर्ण माना गया है. सीएसआईआर के हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएचबीटी) पालमपुर के निदेशक डॉ. संजय कुमार ने कहा कि पहली बार देश में नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक के माध्यम से संस्थान को हींग के बीज उपलब्ध हुए हैं और उनकी देखरेख में सभी कार्य हो रहा है. अगले वर्ष यानी 2021 तक यह किसानों को उपलब्ध हो जाएगा.
डॉ. रमेश कुमार ने कहा कि एनपीजीआर नई दिल्ली संस्थान को हींग के 6 किस्मों के बीज उपलब्ध हुए हैं और अनुसंधान विशेषज्ञों की देखरेख में पौधा तैयार किया गया है. उन्होंने कहा कि सरकार की गरीब किसान व बागवान की आय दोगुनी करने के तहत वाणिज्यिक फसलों के नए नए शोध व प्रसार की कोशिश में लगे हुए हैं, ताकि पहाड़ी क्षेत्रों में वाणिज्यिक फसलें उगा कर आर्थिक स्थिति को मजबूत करते हुए पलायन को रोका जा सके.
डॉ. रमेश शर्मा ने बताया कि प्रायोगिक तौर पर हींग के बीज स्थानीय लोगों व कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के कृषि विज्ञान केंद्र उदयपुर जिला लाहौल स्पीति में दिए गए, जिन्हें पौधे तैयार होने पर विभिन्न स्थानों पर लगाया जा सकेगा. उन्होंने कहा कि इसके सफल होने पर बंजर होती जमीन, कृषि छोड़ता किसान व पलायन करते युवा को फिर से स्थापित किया जा सकता है.
इन देशों में होती है हींग की खेती
विशेषज्ञों का कहना है हिंग एक सौंफ प्रजाति का पौधा है और इसकी लंबाई 1 से 1.5 मीटर तक होती है. इसकी खेती जिन देशों में प्रमुख तौर पर होती हैं उनमें अफगानिस्तान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान और ब्लूचिस्तान प्रमुख हैं.
कब और कहां कर सकते हैं हींग की खेती
हींग की खेती के लिए 20 से 30 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त होता है. भारत में यह तापमान पहाड़ी क्षेत्रों में होता है और इन क्षेत्रों में इसकी खेती आसानी से की जा सकती है. खेती के लिए न ज्यादा ठंड और न ही ज्यादा गर्मी की जरूरत होती है. ज्यादातर खेती पहाड़ों के ढलानदार भूमि वाले खेतों में उपयुक्त मानी जाती है, जहां ठंड के साथ धूप का होना अति लाजमी है.
भारत में कहां हो रही है हींग की खेती
भारत में हिंग की खेती की शुरुआत हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति से हुई है. इसके बीज को ईरान और तुर्की से मंगाकर यहां इसकी बीज तैयार किए हैं. इसके साथ ही पहाड़ी इलाकों में रह रहे किसानों के लिए अच्छी खबर यह है कि वहां के किसान आसानी से हींग की खेती कर सकते हैं.
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