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अद्भुत हिमाचल: इस गांव में है दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र, सिकंदर के वंशज माने जाते हैं यहां के लोग - हिमाचल पर्यटन स्थल

हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू में एक ऐसा गांव है, जहां के लोग भारत के संविधान को न मानकर अपनी हजारों साल पुरानी परंपरा को मानते हैं. प्राचीन काल में इस गांव में कुछ नियम बनाए गए और बाद में इन नियमों को संसदीय प्रणाली में बदल दिया गया.

मलाणा गांव
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Published : Jul 26, 2019, 8:25 AM IST

Updated : Aug 9, 2019, 8:31 AM IST

कुल्लू: यूं तो हिमाचल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए पूरी दुनिया में पहचान रखता है, लेकिन देवभूमि में कई प्रथाएं ऐसी हैं जो इसे अद्भुत बनाती हैं. ये छोटा पहाड़ी प्रदेश अपने आंचल में कई राज समेटे हुए हैं. सदियों से चली आ रही परंपराएं आज भी चली आ रही हैं.

दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र माने जाने वाले मलाणा में भारत का संविधान नहीं माना जाता. इस बात पर जल्दी यकीन कर पाना मुश्किल है, लेकिन यही हकीकत है. ऐसी ही एक मान्यता कुल्लू जिला के मलाणा गांव में प्रचलित है.

हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू में एक ऐसा गांव है, जहां के लोग भारत के संविधान को न मानकर अपनी हजारों साल पुरानी परंपरा को मानते हैं. कहा जाता है कि दुनिया को सबसे पहला लोकतंत्र भी यहीं से मिला था. प्राचीन काल में इस गांव में कुछ नियम बनाए गए और बाद में इन नियमों को संसदीय प्रणाली में बदल दिया गया.

ये भी पढ़ें-करगिल के पहले शहीद सैनिक की मां को याद आए अभिनंदन, मोदी सरकार से की ये गुजारिश

तो आइए जानते हैं अनोखी परंपरा वाले इस छोटे से गांव 'मलाणा' के बारे में.

गांव की अपनी संसदीय व्यवस्था

इस गांव के अपने खुद के दो सदन हैं. एक छोटा सदन और एक बड़ा सदन. बड़े सदन में कुल 11 सदस्य होते हैं, जिसमें 8 सदस्य गांव वालों में से चुने जाते हैं, जबकि तीन अन्य कारदार, गुर और पुजारी स्थायी सदस्य होते हैं.

गांव का अपना प्रशासन

गांव में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए इनके अपने कानून हैं, जिसमें कि सरकार भी दखलअंदाजी नहीं होती है.

सदन में देवनीति से तय होते हैं फैसले

सदन में हर तरह के मामलों को निपटाया जाता है. यहां फैसले देवनीति से तय होते हैं. संसद भवन के रूप में ऐतिहासिक चौपाल लगाई जाती है. अगर कोई ऐसा मामला फंस जाए जिसको समझ पाना मुश्किल हो रहा हो, तो ऐसे में ये मामला सबसे अंतिम पड़ाव पर भेज दिया जाता है.

अंतिम होता है जमलू देवता का फैसला

मलाणा गांव के लोग जमलू ऋषि को अपना देवता मानते हैं. किसी मामले को जमलू देवता के हवाले करने के बाद वही फैसला आखिरी माना जाता है...लोगों का मानना है कि ये फैसला खुद जमलू देवता सुनाते हैं... होता यूं है कि अंतिम पड़ाव में मामले के पहुंचने के बाद...दोनों पक्षों से दो बकरे मंगाए जाते हैं और दोनों बकरों की टांग में चीरा लगाकर जहर भर दिया जाता है. जहर भरने के बाद बकरों के मरने का इंतजार होता है. जिस पक्ष का बकरा पहले मरता है, वे दोषी होता है.

ये भी पढ़ें-करगिल हीरो का बेटा कर रहा अब सरहदों की रक्षा, 9 बरस की उम्र में देखी पिता की शहादत

अपनी अनोखी कानून व्यवस्था के साथ मलाणा गांव चरस के लिए भी कुख्यात है. विदेशी लोग मणिकर्ण घाटी को मलाणा के नाम से ही जानते है. इतिहास की बात करें तो माना जाता है कि यहां के लोग सिकंदर के वंशज हैं. यहां की कानून व्यवस्था यूनानी पद्धति से बहुत हद तक मेल खाती है.

मलाणा गांव के वाशिंदों को सिकंदर का वशंज माना जाता है. कहा जाता है कि जब सिकंदर दुनिया जीतने निकला तो मणिकर्ण घाटी से होकर भी गुजरा. इस दौरान उसके कुछ सैनिक यहीं रुक गए. किवदंतियों के अनुसार यहां के निवासी उन्हीं सैनिकों के वंशज हैं.

मलाणा गांव के एक मंदिर के बारे में जहां साल में एक बार मुगल सम्राट अकबर की पूजा होती है. यह मूर्ति सोने की है. इस गांव के लोग बताते हैं कि मुगल सम्राट अकबर भी इस गांव को अपने अधीन नहीं कर पाया था. गांव को अपने अधीन करने के लिए अकबर ने यहां के देवता जमलू की परीक्षा लेनी चाही थी. अकबर को सबक सिखाने के लिए जमलू देवता ने दिल्ली में बर्फ गिरवा दी थी. इसके बाद अकबर को जमलू देवता से माफी मांगनी पड़ी थी.

कुछ भी छूने पर है पाबंदी

रहस्य भरे इस गांव में बाहरी लोगों के कुछ भी छूने पर पाबंदी है. इस नियम का पालन कराने के लिए यहां के लोग कड़ी नजर रखते हैं. इसके लिए बकायदा नोटिस लगाया गया है, जिसमें साफ तौर पर लिखा गया है कि गांव में किसी भी चीज को छूने पर 3500 रुपये जुर्माना देना होगा.

मलाणा गांव अपने आप में कई राज समेटे हुए हैं. देश-विदेश के लोगों के लिए यह एक आकर्षण का केंद्र है.

ये भी पढ़ें-खंडहर से जंगल बन गया कटोच गढ़ किला, न पर्यटन विकसित और न ही स्थानीय लोगों को मिला रोजगार

कुल्लू: यूं तो हिमाचल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए पूरी दुनिया में पहचान रखता है, लेकिन देवभूमि में कई प्रथाएं ऐसी हैं जो इसे अद्भुत बनाती हैं. ये छोटा पहाड़ी प्रदेश अपने आंचल में कई राज समेटे हुए हैं. सदियों से चली आ रही परंपराएं आज भी चली आ रही हैं.

दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र माने जाने वाले मलाणा में भारत का संविधान नहीं माना जाता. इस बात पर जल्दी यकीन कर पाना मुश्किल है, लेकिन यही हकीकत है. ऐसी ही एक मान्यता कुल्लू जिला के मलाणा गांव में प्रचलित है.

हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू में एक ऐसा गांव है, जहां के लोग भारत के संविधान को न मानकर अपनी हजारों साल पुरानी परंपरा को मानते हैं. कहा जाता है कि दुनिया को सबसे पहला लोकतंत्र भी यहीं से मिला था. प्राचीन काल में इस गांव में कुछ नियम बनाए गए और बाद में इन नियमों को संसदीय प्रणाली में बदल दिया गया.

ये भी पढ़ें-करगिल के पहले शहीद सैनिक की मां को याद आए अभिनंदन, मोदी सरकार से की ये गुजारिश

तो आइए जानते हैं अनोखी परंपरा वाले इस छोटे से गांव 'मलाणा' के बारे में.

गांव की अपनी संसदीय व्यवस्था

इस गांव के अपने खुद के दो सदन हैं. एक छोटा सदन और एक बड़ा सदन. बड़े सदन में कुल 11 सदस्य होते हैं, जिसमें 8 सदस्य गांव वालों में से चुने जाते हैं, जबकि तीन अन्य कारदार, गुर और पुजारी स्थायी सदस्य होते हैं.

गांव का अपना प्रशासन

गांव में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए इनके अपने कानून हैं, जिसमें कि सरकार भी दखलअंदाजी नहीं होती है.

सदन में देवनीति से तय होते हैं फैसले

सदन में हर तरह के मामलों को निपटाया जाता है. यहां फैसले देवनीति से तय होते हैं. संसद भवन के रूप में ऐतिहासिक चौपाल लगाई जाती है. अगर कोई ऐसा मामला फंस जाए जिसको समझ पाना मुश्किल हो रहा हो, तो ऐसे में ये मामला सबसे अंतिम पड़ाव पर भेज दिया जाता है.

अंतिम होता है जमलू देवता का फैसला

मलाणा गांव के लोग जमलू ऋषि को अपना देवता मानते हैं. किसी मामले को जमलू देवता के हवाले करने के बाद वही फैसला आखिरी माना जाता है...लोगों का मानना है कि ये फैसला खुद जमलू देवता सुनाते हैं... होता यूं है कि अंतिम पड़ाव में मामले के पहुंचने के बाद...दोनों पक्षों से दो बकरे मंगाए जाते हैं और दोनों बकरों की टांग में चीरा लगाकर जहर भर दिया जाता है. जहर भरने के बाद बकरों के मरने का इंतजार होता है. जिस पक्ष का बकरा पहले मरता है, वे दोषी होता है.

ये भी पढ़ें-करगिल हीरो का बेटा कर रहा अब सरहदों की रक्षा, 9 बरस की उम्र में देखी पिता की शहादत

अपनी अनोखी कानून व्यवस्था के साथ मलाणा गांव चरस के लिए भी कुख्यात है. विदेशी लोग मणिकर्ण घाटी को मलाणा के नाम से ही जानते है. इतिहास की बात करें तो माना जाता है कि यहां के लोग सिकंदर के वंशज हैं. यहां की कानून व्यवस्था यूनानी पद्धति से बहुत हद तक मेल खाती है.

मलाणा गांव के वाशिंदों को सिकंदर का वशंज माना जाता है. कहा जाता है कि जब सिकंदर दुनिया जीतने निकला तो मणिकर्ण घाटी से होकर भी गुजरा. इस दौरान उसके कुछ सैनिक यहीं रुक गए. किवदंतियों के अनुसार यहां के निवासी उन्हीं सैनिकों के वंशज हैं.

मलाणा गांव के एक मंदिर के बारे में जहां साल में एक बार मुगल सम्राट अकबर की पूजा होती है. यह मूर्ति सोने की है. इस गांव के लोग बताते हैं कि मुगल सम्राट अकबर भी इस गांव को अपने अधीन नहीं कर पाया था. गांव को अपने अधीन करने के लिए अकबर ने यहां के देवता जमलू की परीक्षा लेनी चाही थी. अकबर को सबक सिखाने के लिए जमलू देवता ने दिल्ली में बर्फ गिरवा दी थी. इसके बाद अकबर को जमलू देवता से माफी मांगनी पड़ी थी.

कुछ भी छूने पर है पाबंदी

रहस्य भरे इस गांव में बाहरी लोगों के कुछ भी छूने पर पाबंदी है. इस नियम का पालन कराने के लिए यहां के लोग कड़ी नजर रखते हैं. इसके लिए बकायदा नोटिस लगाया गया है, जिसमें साफ तौर पर लिखा गया है कि गांव में किसी भी चीज को छूने पर 3500 रुपये जुर्माना देना होगा.

मलाणा गांव अपने आप में कई राज समेटे हुए हैं. देश-विदेश के लोगों के लिए यह एक आकर्षण का केंद्र है.

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Special Story on Malana Village Kullu




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Last Updated : Aug 9, 2019, 8:31 AM IST
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