कुल्लू: देश भर में युवाओं के बीच आज के जमाने में प्रेम विवाह का चलन बढ़ा है. वहीं, प्रेम विवाह से नाराज लोगों के द्वारा युवा प्रेमियों की हत्या के मामले भी आए दिन सामने आते रहते हैं. ऐसे में अगर कोई प्रेमी जोड़ा देव शंगचूल महादेव की शरण में आ जाए तो कोई उनका बाल भी बांका नहीं कर सकता है.
देवता के आशीर्वाद से कई प्रेमी जोड़े सकुशल अपने घरों को लौटे हैं और आज भी यहां प्रेमी जोड़ों की शंगचूल महादेव के द्वारा रक्षा की जाती है. यह शंगचूल महादेव जिला कुल्लू की सैंज घाटी के शांघड़ गांव में विराजे हैं. शंगचुल महादेव का मंदिर कुल्लू के शांघड़ गांव में है.
'घर से भागे प्रेमी जोड़े को महादेव शरण देते हैं'
पांडवकालीन शांघड़ गांव में स्थित इस महादेव मंदिर (Shangchul Mahadev Temple) के बारे में कहा जाता है कि घर से भागे प्रेमी जोड़े को महादेव शरण देते हैं. कहा जाता है कि किसी भी जाति-समुदाय के प्रेमी युगल अगर शंगचूल महादेव की सीमा में पहुंच जाते हैं, तो इनका कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता.
शंगचूल महादेव मंदिर (Shangchul Mahadev Temple) की सीमा लगभग 128 बीघा का मैदान है. कहा जाता है कि इस सीमा में पहुंचे प्रेमी युगल को देवता की शरण में आया हुआ मान लिया जाता है. इसके बाद प्रेमी युगल के परिजन भी कुछ नहीं कर सकते. समाज और बिरादरी की रिवाजों को तोड़कर शादी करने वाले प्रेमी जोड़ों के लिए यहां के देवता रक्षक हैं.
'अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां रूके थे'
यहां सिर्फ देवता का कानून चलता है और पुलिस के आने तक पर इस इलाके में पूर्ण पाबंदी रहती है. महादेव सदियों से शरण में आने वाले प्रेमियों की रक्षा करते आए हैं. इसके पीछे की कहानी बड़ी ही रोचक है. देवता के कारकून बताते हैं कि अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां रूके थे. इसी दौरान कौरव उनका पीछा करते हुए यहां तक पहुंच गए.
पांडवों ने शंगचूल महादेव (Shangchul Mahadev) की शरण ली और रक्षा के लिए प्रार्थना की. महादेव ने भी कौरवों को रोका और कहा कि यह मेरा क्षेत्र है और जो भी मेरी शरण में आएगा उसका कोई कुछ बिगाड़ सकता. महादेव के डर से कौरव वापस लौट गए. इसके बाद से यहां परंपरा शुरू हो गई और यहां आने वाले भक्तों को पूरी सुरक्षा मिलने लगी.
'ब्राह्मण समुदाय के लोग यहां आने वालों की पूरी आव भगत करते हैं'
कहते हैं कि जब तक मामले का निपटारा न हो जाए ब्राह्मण समुदाय के लोग यहां आने वालों की पूरी आव भगत करते हैं. उनके रहने से खाने तक की पूरी जिम्मेवारी यहां के लोग ही उठाते हैं. वहीं, इस क्षेत्र में पुलिस का आना भी वर्जित है.
इस गांव में हर नियम और कानून का बेहद सख्ती से पालन किया जाता है. यहां के नियम कायदे कानून के तहत, कोई भी व्यक्ति इस गांव में ऊंची आवाज में बात नहीं कर सकता है, न ही किसी प्रकार का लड़ाई झगड़ा, इसके साथ ही यहां शराब, सिगरेट और चमड़े का सामान लेकर आना भी मना है.
यहां देवता का ही फैसला मान्य होता है. शांघड़ में फैला मैदान यहां के स्थानीय देवता शंगचूल महादेव का आवास स्थल है. इस मैदान पर देवता के आदेशों की पालना नहीं हुई तो स्थानीय लोगों को इसके कोप भाजन का शिकार होना पड़ता है.
पेटी और टोपी पहनकर आने की सख्त मनाही
यूं तो मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क निकाली गई है, लेकिन मैदान तक वाहन लाने की मनाही है, साथ ही मैदान में गंदगी फैलाने, शराब पीकर आने और पुलिस और वन विभाग के कर्मचारियों के पेटी और टोपी पहनकर आने की सख्त मनाही है. देवता के कार-कारिंदों का कहना है कि देवता ने इस तरह का फैसला स्वयं ही लिया है, वे तो सिर्फ इसकी पालना करते रहे हैं.
इसके लिए मंदिर कमेटी की ओर से बोर्ड भी टांग दिया गया है. हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा में चेतावनी बोर्ड पर साफ लिखा गया है. विदेशी पर्यटकों को भी इसके बारे में सख्त निर्देश दिए गए हैं. शांघड़ मैदान का इतिहास पांडवों के जीवन काल से जुड़ा है.
128 बीघा में एक भी कंकड़-पत्थर नहीं
जनश्रुति के अनुसार अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने कुछ समय शांघड़ में भी बिताया. इस दौरान उन्होंने यहां धान की खेती के लिए मिट्टी छानकर खेत तैयार किए. वे खेत आज भी विशाल शांघड़ मैदान के रूप में यथावत हैं. इस मैदान की खासियत यह है कि मैदान में सिर्फ हरियाली ही हरियाली है. यहां 128 बीघा में एक भी कंकड़-पत्थर नहीं है.
शांघड़ पंचायत विश्व धरोहर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क क्षेत्र में होने के कारण भी प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि जंगल की रखवाली करने वाले वन विभाग के कर्मचारियों व पुलिस महकमे के कर्मचारियों को अपनी टोपी व पेटी उतारकर मैदान से होकर जाना पड़ता है.
घोड़े के प्रवेश पर भी मनाही
यही नहीं, यहां पर घोड़े के प्रवेश पर भी मनाही है. यदि किसी का घोड़ा शंगचूल देवता के निजी क्षेत्र में प्रवेश करता है तो उसके मालिक को जुर्माना देना पड़ता है या फिर देवता कमेटी की ओर से उस पर कानूनी कार्रवाई अमल में लाई जाती है.
शंगचूल महादेव (Shangchul Mahadev) के पुजारी ओम प्रकाश, बोद्ध राज शर्मा का कहना है कि देवता के पास कई ऐसे स्थान हैं, जहां केवल देवता के कुछेक कार-कारिंदे ही जाते हैं. यहां तक कि स्थानीय लोगों का प्रवेश भी यहां पर वर्जित है.
शांघड़ से मिली सैंज को नई पहचान
देश-विदेश के पर्यटकों के लिए शांत सैरगाह के रूप में शांघड़ को जाना जाता है. यहां की एकांत स्थली को कई शोधार्थियों ने अपने शोध के लिए चुना है. कुल्लू से 58 किलोमीटर की दूरी पर बसा शांघड़ गांव सैंज घाटी के अंतिम छोर पर है. एक हजार से अधिक आबादी वाले शांघड़ को भी अपने मैदान से पहचान मिली है.
यही नहीं, सैंज घाटी के लिए शांघड़ से पर्यटन के नए आयाम स्थापित हुए हैं. गर्मियों के दिनों में यहां अधिक संख्या में पर्यटक आते हैं जिससे यहां का पर्यटन कारोबार भी चरम पर पहुंच जाता है. देवता की पूरी जमीन का आधा हिस्सा ऐसा है जो ब्राह्मण, पुजारी, मुजारों, बजंतरी व गुर सहित अन्य देव कारकूनों को दिया गया है.
मैदान में न तो कोई कंकर-पत्थर है और न ही किसी प्रकार की झाड़ियां
वहीं, आधा हिस्सा गौ चारे के रूप में खाली रखा गया है. 128 बीघा में फैला यह मैदान अपने चारों ओर देवदार के घने पेड़ों से घिरा ऐसा प्रतीत होता है मानो इसकी सुरक्षा के लिए प्रकृति ने पहरेदार खड़े किए हों. वहीं, मैदान के तीन किनारों पर काष्ठकुणी शैली में बनाए गगन चुंबी मंदिर इसकी शोभा में चार चांद लगा देते हैं. इतने बड़े मैदान में न तो कोई कंकर-पत्थर है और न ही किसी प्रकार की झाड़ियां.
मैदान में शांघड़वासी अपनी गायों को रोज चराते हैं, लेकिन हैरानी की बात है कि इस मैदान में गाय का गोबर कही भी नहीं मिलता. भूमि की खुदाई, देवता की अनुमति के बगैर नाचना और शराब ले जाने पर भी पाबंदी है.
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