किन्नौर: कोरोना वायरस ने जैसे ही देश और प्रदेश में दस्तक दी उस दिन के बाद समूचा प्रदेश कोरोना से जंग लड़ने के लिए हर सम्भव तरीके और कोशिशों में लगा हुआ है. लॉकडाउन के बाद जिला में मजदूरों की हालत काफी गम्भीर होती जा रही है.
जिला किन्नौर में दो तबके के मजदूर मौजूद हैं. एक वह मजदूर जो हिमाचल से ही है, जो सिर्फ सेब की कटिंग प्रूनिंग के काम के लिए कुछ समय के लिए आते हैं और दूसरा तबका झारखंड, बिहार, नेपाल के मजदूर जो लंबे समय की अवधि के लिए काम करने किन्नौर आते हैं.
इनमें सबसे अधिक 482 मजदूर नेपाली हैं. जबकि यूपी के118, झारखंड के 94 बिहार 70, कश्मीरी 112 और दूसरे राज्यों के 332 मजदूर मौजूदा समय में किन्नौर में फंसे हुए हैं. किन्नौर में मौजूद मजदूरों के पास अब ना तो कोई कामकाज है और न खाने पीने को पहले की तरह व्यवस्थाएं. इन मजदूरों को कोरोना की जंजीरों ने अपने चंगुल में इस कदर बांध रखा कि यह लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे. जिला प्रशासन की तरफ से इन प्रवासी मजदूरों को खाने के लिए राशन दिया जा रहा है, लेकिन अपनों से दूर यह मजदूर घर जाने की राह ताक रहे हैं.
हिमाचल के अधिकतर क्षेत्रों से कुछ मजदूर घर को पलायन कर चुके हैं. बाहरी राज्यों के मजदूरों के साथ नेपाली मजदूरों की एक ही मांग है कि उन्हें अपने घर भेजा जाए या उनकी मजदूरी का कुछ इंतजाम किया जाए ताकि मजदूरी कर अपने और परिवार का भरण पोषण कर सके.
किन्नौर में अकेले रह चुके है लॉकडाउन कि जंजीरों में परिवार बिछड़ गए मजदूरी गयी एक वक्त की रोटी प्रशासन दे रहा लेकिन रोटी गले से नीचे नही निगल रही मजबूरी और बेबसी में फंसे इन मजदूरों के लिए फिलहाल कोई रास्ता नहीं दिख रहा है.
डीसी किन्नौर गोपालचन्द ने कहा कि लॉकडाउन के बाद केवल भूखे प्रवासी मजदूरों की सूची बनाई गई थी, जिसमें कुछ प्रदेश और कुछ बाहरी राज्यों के मजदूर थें. जिन्हें राशन दिया जा रहा था और प्रदेश के जितने भी मजदूर किन्नौर में फंसे हुए थे. उन्हें अपने गंतव्यों तक भेज गया है. डीसी ने कहा कि झारखंड, बिहार और नेपाली मजदूरों की संख्या का अभी कोई अनुमान नहीं है क्योंकि कुछ मजदूर ग्रामीणों के पास है और कुछ प्रशासन के पास नही पहुंच पाए.