रिकांगपिओ: किन्नौर जनमंच में मंत्री और विधायक के बीच उपजे विवाद के बाद राजनीति गरमा गई है. किन्नौर जिला विधायक जगत सिंह नेगी और हिमाचल वन निगम के उपाध्यक्ष सूरत नेगी के बीच इस मामले में आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है.
वन विभाग के उपाध्यक्ष सूरत नेगी ने विधायक जगत सिंह नेगी पर आरोप लगाया है कि वो क्षेत्र में विलेन की भूमिका निभा रहे हैं. विधायक हर विकास कार्यों में अड़ंगा लगा रहे हैं. वहीं, विधायक जगत सिंह नेगी ने इन आरोपों को पूरी तरह से खारिज किया है.
विधायक का कहना है कि जनमंच कार्यक्रम में आए मंत्रियों को न तो प्रॉटोकॉल का पता है न ही किन्नौर के लोगों की प्रमुख समस्या नौतोड़ की जानकारी. मौजूदा सरकार और मंत्री किन्नौर के लोगों को विकास के नाम परर गुमराह कर रहे हैं.
बता दें कि बीते रविवार को किन्नौर जिले के रिकांगपीओ में जनमंच का आयोजन किया गया था. इस कार्यक्रम की अध्यक्षता शहरी विकास मंत्री सरवीण चौधरी ने की थी. इस दौरान किन्नौर कांग्रेस विधायक जगत सिंह नेगी और सरवीण चौधरी के बीच पंचायत प्रधान के एक सवाल को लेकर मंच पर ही विवाद हो गया था.
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अब ये विवाद थमने की बजाए राजनीतिक रंग लेता जा रहा है. जनमंच के दौरान विधायक ने वन विभाग के उपाध्यक्ष सुरत सिंह नेगी पर अशोभनीय टिप्पणी भी की थी. वहीं, उस दौरान विधायक और उनके समर्थकों ने कार्यक्रम में हंगामा कर उसका बायकॉट कर दिया था.
हिमाचल वन निगम के उपाध्यक्ष सूरत नेगी ने आरोप लगाया है कि विधायक ने पिछले पांच सालों में स्थानीय क्षेत्र विकास निधि का बड़े पैमाने पर दुरूपयोग किया है। सूरत नेगी ने कहा कि वो इस मामले में मांग करेंगे की एक एसआईटी का गठन हो और तथ्यों की गहराई से जांच हो.
सूरत नेगी ने कहा कि विधायक ने जिस प्रधान के पक्ष में जनमंच कार्यक्रम के दौरान हंगामा खड़ा किया था, विधायक ने उस पंचायत को स्थानीय क्षेत्र की विकास निधि से 22 लाख रुपये जारी करवाए थे जिसमें 16 लाख रुपयों की गड़बड़ी हुई है. उन्होंने कहा कि विधायक इलाके में विकास कार्यों के बीच विलेन की भूमिका निभा रहे हैं.
वहीं, विधायक जगत सिंह नेगी का कहना है कि मंत्री जी ने महिला से बदसलूकी की है. इसके अलावा सरकार में बैठे लोग और अधिकारी किन्नौर की जनता को गुमराह कर रहे हैं. जनमंच के दौरान लोगों को खुलकर बात रखने का मौका नहीं मिल रहा है.
उन्होंने कहा कि मंत्री जी यहां लोगों की समस्याओं का निपटान करने के लिए आईं थी, लेकिन उन्हें नौतोड़ भूमि मामले की कोई जानकारी नहीं है और न ही उन्हें प्रोटोकॉल पता है. नौतोड़ भूमि मामले में किन्नौर के लोगों को बेवकूफ बनाया जा रहा है. इस तरह से जनमंच कार्यक्रम लोगों के समय और सरकार के पैसे की बर्बादी है.
वहीं, इस विवाद के बीच ये जानना भी जरूरी हो जाता है कि आखिर जिस मुद्दे को लेकर ये विवाद हुआ है वो नौतोड़ भूमि मामला है क्या.
क्या है नौतोड़ भूमि मामला?
हिमाचल में 1970 में जिन परिवारों के पास कम भूमि थी सरकार ने उन्हें कुछ भूमि प्रदान की ती, इसे नौतोड़ नाम दिया गया था. इसके लिए राज्य सरकार ने हिमाचल प्रदेश नौतोड़ एक्ट 1968 बनाया था. इस एक्ट के तहत नौतोड़ के लिए उन लोगों को पात्र माना गया था जिनकी सालाना आय दो हजार रुपये से कम थी.
राज्य सरकार ने 1968 के एक्ट के तहत तत्कालीन नियमों के तहत ही लोगों को नौतोड़ जमीन दी थी. इसमें पांच बीघा जमीन दी गई थी. इसके बाद प्रदेश हाईकोर्ट ने इसमें आदेश दिए थे कि नौतोड़ के तहत दी भूमि को सरकार वापस ले. हाईकोर्ट के आदेशों के बाद इस फैसले को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला लिया था.
इसके बाद अब साढ़े चार दशक के बाद इस भूमि को वापस लेने की प्रक्रिया चल रही थी. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नौतोड़ भूमिधारकों को राहत देते हुए हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है. इसमें राजस्व विभाग की ओर से पूरा मसौदा तैयार कर सुप्रीम कोर्ट में सरकार की पैरवी के लिए सौंपा गया था.