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चीन से वार्ता के बिना नहीं होगा तिब्बत मसले का हल, 2011 के बाद चाइना ने नहीं की कोई बात: आचार्य यशी

निर्वासित तिब्बती संसद के उप-सभापति आचार्य यशी लोगों के आह्वान पर प्रधानमंत्री पद का चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने सभी लोगों से प्रजातंत्र और लोकतंत्र में सहभागिता का आह्वान किया है. आचार्य यशी ने कहा कि यह चुनाव तिब्बत आंदोलन को तेजी देने के लिए है.

talk with China are necessary for resolving Tibet issue
तिब्बत मसले के हल के लिए चीन से वार्ता जरूरी
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Published : Dec 29, 2020, 8:11 PM IST

धर्मशाला: रविवार को निर्वासित तिब्बती संसद के चुनाव हैं. निर्वासित तिब्बती संसद के उप-सभापति आचार्य यशी ने बताया कि आगामी लोगों के आह्वान पर वह प्रधानमंत्री पद का चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने सभी तिब्बती समुदाय के 18 वर्ष से अधिक आयु के लोग जिनके पास मतदान का अधिकार हैं, वे उस दिन अपने मताधिकार का प्रयोग करें. उन्होंने सभी लोगों से प्रजातंत्र और लोकतंत्र में सहभागिता का आह्वान किया है. इसका मुख्य कारण यह है कि धर्मगुरु दलाईलामा भी लाेकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाने को कहते हैं.

तिब्बत आंदोलन को तेजी देने के लिए चुनाव जरूरी

आचार्य यशी ने कहा कि यह चुनाव तिब्बत आंदोलन को तेजी देने के लिए है. यह तिब्बत की एकता के लिए भी जरूरी है. उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने घोषणा पत्र में मुख्य रूप से तिब्बत का संघर्ष, तिब्बती समाज में स्थिरता और मुद्रा कोष में बढ़ावा देना मुख्य बिंदु रखे हैं.

वीडियो

विश्व मुद्रा कोष बढ़ाना जरूरी

आचार्य यशी ने कहा कि बिना मुद्रा के कुछ नहीं चल सकता इसलिए विश्व मुद्रा कोष बढ़ाना जरूरी है. उन्होंने कहा कि विश्व में 30 देशों में तिब्बतियन लोग रहते हैं. इसमें जो लोग निर्वासन में रहते हैं, उन्हें इस चुनाव में भाग लेना चाहिए. दलाई लामा से निर्वासन की शुरुआत से ही लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाने को कहा है.

साल 2011 से चीन ने बंद की वार्ता

आचार्य यशी ने कहा कि छह दशकों से अधिक समय से तिब्बत की आजादी को संघर्ष चल रहा है. पहले धर्मगुरु दलाईलामा और निर्वासित तिब्बती संसद के प्रतिनिधि चीन के प्रतिनिधियों के साथ वार्ता करते थे और चीन सरकार भी वार्ता के लिए राजी हो जाती थी. अब साल 2011 के बाद चीन ने वार्ता करना बंद कर दिया है जबकि तिब्बत की आजादी और स्वायत्तता के लिए वार्ता बहुत जरूरी है.

आचार्य यशी को है लंबा अनुभव

आचार्य यशी ने कहा कि उन्होंने 33 वर्ष भारत में रहते हुए बनारस और शिमला में शिक्षा ली. कई साल तिब्बत संघर्ष में काम किया है और प्रशासनिक काम किए हैं. तिब्बत संघर्ष को लेकर 61 सालों में तिब्बती के प्रतिनिधि 20 बार चीन प्रतिनिधि से मिले. साल 2008 में जब 20वीं वार्ता हुई, उसमें उन्हें तिब्बत स्वायत्तता को लेकर पत्र दिया.

चीन शासन के साथ साल 2011 के बाद वार्ता ही नहीं हो पाई जबकि चीन से भेंट करना जरूरी है. कम से कम 2-3 बार वार्ता होना जरूरी है, तभी इसका हल होगा. आचार्य यशी ने कहा कि वार्ता होने से ही तीन-चार पीढ़ियों से आजादी की लड़ाई लड़ रहे तिब्बती लोगों के बलिदान फलीभूत होंगे.

ये भी पढ़ें: विदेश से लौटे दो कोरोना संक्रमितों के सैंपल भेजे गए पुणे लैब, स्वास्थ्य सचिव ने की ये अपील

धर्मशाला: रविवार को निर्वासित तिब्बती संसद के चुनाव हैं. निर्वासित तिब्बती संसद के उप-सभापति आचार्य यशी ने बताया कि आगामी लोगों के आह्वान पर वह प्रधानमंत्री पद का चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने सभी तिब्बती समुदाय के 18 वर्ष से अधिक आयु के लोग जिनके पास मतदान का अधिकार हैं, वे उस दिन अपने मताधिकार का प्रयोग करें. उन्होंने सभी लोगों से प्रजातंत्र और लोकतंत्र में सहभागिता का आह्वान किया है. इसका मुख्य कारण यह है कि धर्मगुरु दलाईलामा भी लाेकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाने को कहते हैं.

तिब्बत आंदोलन को तेजी देने के लिए चुनाव जरूरी

आचार्य यशी ने कहा कि यह चुनाव तिब्बत आंदोलन को तेजी देने के लिए है. यह तिब्बत की एकता के लिए भी जरूरी है. उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने घोषणा पत्र में मुख्य रूप से तिब्बत का संघर्ष, तिब्बती समाज में स्थिरता और मुद्रा कोष में बढ़ावा देना मुख्य बिंदु रखे हैं.

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विश्व मुद्रा कोष बढ़ाना जरूरी

आचार्य यशी ने कहा कि बिना मुद्रा के कुछ नहीं चल सकता इसलिए विश्व मुद्रा कोष बढ़ाना जरूरी है. उन्होंने कहा कि विश्व में 30 देशों में तिब्बतियन लोग रहते हैं. इसमें जो लोग निर्वासन में रहते हैं, उन्हें इस चुनाव में भाग लेना चाहिए. दलाई लामा से निर्वासन की शुरुआत से ही लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाने को कहा है.

साल 2011 से चीन ने बंद की वार्ता

आचार्य यशी ने कहा कि छह दशकों से अधिक समय से तिब्बत की आजादी को संघर्ष चल रहा है. पहले धर्मगुरु दलाईलामा और निर्वासित तिब्बती संसद के प्रतिनिधि चीन के प्रतिनिधियों के साथ वार्ता करते थे और चीन सरकार भी वार्ता के लिए राजी हो जाती थी. अब साल 2011 के बाद चीन ने वार्ता करना बंद कर दिया है जबकि तिब्बत की आजादी और स्वायत्तता के लिए वार्ता बहुत जरूरी है.

आचार्य यशी को है लंबा अनुभव

आचार्य यशी ने कहा कि उन्होंने 33 वर्ष भारत में रहते हुए बनारस और शिमला में शिक्षा ली. कई साल तिब्बत संघर्ष में काम किया है और प्रशासनिक काम किए हैं. तिब्बत संघर्ष को लेकर 61 सालों में तिब्बती के प्रतिनिधि 20 बार चीन प्रतिनिधि से मिले. साल 2008 में जब 20वीं वार्ता हुई, उसमें उन्हें तिब्बत स्वायत्तता को लेकर पत्र दिया.

चीन शासन के साथ साल 2011 के बाद वार्ता ही नहीं हो पाई जबकि चीन से भेंट करना जरूरी है. कम से कम 2-3 बार वार्ता होना जरूरी है, तभी इसका हल होगा. आचार्य यशी ने कहा कि वार्ता होने से ही तीन-चार पीढ़ियों से आजादी की लड़ाई लड़ रहे तिब्बती लोगों के बलिदान फलीभूत होंगे.

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