कांगड़ा: इस समय इंदौरा के बरोटा, ठाकुरद्वारा, मंड स्नोर, बसंतपुर समेत कई गांवों में सैकड़ों एकड़ में प्लम और आड़ू के फल पककर बिल्कुल तैयार हैं. बागवानों के फल मंडियों तक तो पहुंच रहे हैं, लेकिन मंडियों में खरीददार नहीं मिलने से बागवानों को फलों के उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं. ऐसे में बागवान बिना पैसे लिए ही प्लम से भरी गाड़ियों को मंडियों में छोड़ रहे हैं.
क्षेत्र के बागवानों की मानें तो उन्होंने कई एकड़ भूमि पर प्लम, आड़ू, आम और लीची के पौधे लगाए हैं. यहां के लोग अधिकत्तर बागबानी पर ही निर्भर हैं और इस वक्त प्लम व आड़ू पककर तैयार है. बागवानों का कहना है कि बाजारों में फलों के खरीददार न मिलने से उन्हें रद्दी के भाव फल बेचने पड़ रहे हैं.
बागवानों ने यह भी बताया कि कई बागवानों ने अपने बगीचे की खड़ी फसल उत्तर प्रदेश, पंजाब और स्थानीय ठेकेदारों को भेजी थी, लेकिन लॉकडाउन के चलते बाहरी राज्यों के ठेकेदार नहीं आ सके. ऐसे में इस बार लॉकडाउन ने बागवानों के खून-पसीने की मेहनत पर पानी फेर रहा है. बागवानों ने बताया कि जो बगीचा गत बर्ष पांच से सात लाख की आमदनी देता था, अब उससे 50 हजार रुपये निकालना भी मुश्किल हो गया है.
बागवानों की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हो रही. प्लम को पैक करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले खाली डिब्बे की कीमत 15 रुपये है, जिसमे 5 किलो प्लम आते हैं और उस पांच किलो के डिब्बे के फल की कीमत को छोड़कर, पैकिंग और तुड़वाई से लेकर जालंधर मंडी तक ले जाने के लिए किराये सहित कुल 50 रुपये खर्च आता है. जबकि मंडी में इसका प्रति डिब्बे का रेट 40 रुपये दिया जा रहा है.
बरोटा के बागवान ने बताया कि दो दिन पहले वो 300 डिब्बे प्लम के गाड़ी में भरकर जालंधर मंडी बेचने ले गए और लॉकडाउन के चलते मंडियों में ग्राहक कम थे. जिसके चलते 100 डिब्बों में से मात्र 50 डिब्बे ही बिक सके और वो भी मात्र 40 से 50 रुपये प्रति डिब्बा.
अब बागवानों और किसानों को आगामी महीनों में तैयार होने वाली लीची और आम से होने वाली आमदनी की भी चिंता सताने लगी है. बागवानों ने हिमाचल सरकार से अपील की है कि उनकी स्थिति को देखते हुए सरकार खुद उनके फलों की खरीददारी करें और अगर नहीं खरीद सकते तो उनके आमदनी की जगह उन्हें मुआवजा दिया जाए.