सिरमौर: सनातन धर्म में सिंदूर का बहुत महत्व है. चाहे फिर वो पूजा-पाठ के लिए इस्तेमाल किया जाए या फिर सुहागन के श्रृंगार की शोभा बढ़ाए. मगर बाजार में मिलने वाला सिंदूर अकसर केमिकल से बना होता है. जिससे कई तरह की स्किन से जुड़ी समस्याएं आती हैं. कई महिलाओं को ये केमिकल युक्त सिंदूर लगाने से सिरदर्द और चर्म रोग जैसी गंभीर बीमारियां भी हो जाती हैं. ऐसे में केमिकल युक्त ये सिंदूर सेहत के लिहाज से बेहद खतरनाक है.
हिमाचल में सिंदूर की खेती
केमिकल से बने सिंदूर की जगह प्राकृतिक सिंदूर का इस्तेमाल किया जा सकता है. बहुत कम लोगों को पता होगा कि सिंदूर का भी पौधा होता है. जिसकी खेती कर न सिर्फ प्राकृतिक सिंदूर प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि इसका व्यवसाय कर अच्छा खासा मुनाफा भी कमा सकते हैं. देश के कई राज्यों में सिंदूर की खेती की जाती है. हिमाचल प्रदेश में भी एक प्रगतिशील किसान ने प्राकृतिक सिंदूर की खेती शुरू की. आज सिंदूर के 80 पौधों से किसान का बगीचा लहलहा रहा है. जहां पौधों पर लगे फूल बगीचे की सुंदरता को चार चांद लगा रहे हैं. वहीं, इससे मिलने वाला सिंदूर का प्राकृतिक गुणों से भरपूर है.
सिंदूर की खेती देखने में लोगों में उत्साह
जिला सिरमौर के मुख्यालय नाहन से करीब 23 किलोमीटर दूर कोलर पंचायत के प्रगतिशील किसान गिरधारी लाल ने सिंदूर के पेड़ों का बगीचा तैयार किया है. जिससे प्राकृतिक सिंदूर बनाया जाता है. हालांकि गिरधारी लाल ने अपने बगीचे में कई फल, ऑर्गेनिक चाय समेत कई उत्पाद तैयार किए हैं, लेकिन उनकी तैयार की सिंदूर की खेती चर्चा का विषय बनी हुई है. वहीं, लोगों में भी सिंदूर के पेड़ देखने का खासा उत्साह है, इसलिए जैसे ही लोगों को इस बारे में पता चल रहा है तो लोग सिंदूर के पौधों को देखने के लिए गिरधारी लाल के बगीचों में पहुंच जा रहे हैं. कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के सह निदेशक प्रसार डॉ. अजय दीप बिंद्रा भी सिरमौर जिले के कृषि वैज्ञानिकों के साथ गिरधारी लाल के इस बगीचे का भ्रमण करने के लिए पहुंचे. जहां उनका और उनकी टीम का स्वागत इस प्राकृतिक तौर पर उगाए गए सिंदूर का तिलक लगाकर किया गया.
![SINDOOR KI KHETI](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/07-02-2025/23485353_1.jpg)
'आमदनी का बेहतर साधन'
कोलर निवासी किसान गिरधारी लाल ने बताया, "ये पौधा प्राकृतिक रूप से सिंदूर देता है और साथ में अपनी शुद्धता के लिए भी जाना जाता है. बाजार में मिलने वाला सिंदूर रासायनिक विधि से तैयार किया जाता है. जिससे ये प्राकृतिक सिंदूर बहुत बेहतर है. क्योंकि इससे स्किन संबंधी कोई समस्या नहीं होती है. बाजार में इसका मूल्य भी अच्छा मिलता है. पशु-पक्षी इसके पौधों को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. साथ ही ये खेती आमदनी का बहुत अच्छा साधन बन सकती है."
कैसे शुरू की सिंदूर की खेती?
प्रगतिशील किसान गिरधारी लाल ने बताया कि वो करीब 3 साल पहले नेपाल के काठमांडू गए थे. जहां उन्होंने सिंदूर के पेड़ को देखा और फिर वापस आकर इसके बारे में पता लगाया. जिसके बाद उन्होंने सिंदूर की खेती करने का फैसला लिया और बगीचे में सिंदूर के 80 पेड़ तैयार किए. उन्होंने बताया कि उनके द्वारा बनाया गया प्राकृतिक सिंदूर वो ऑनलाइन भी बेचते हैं. जिसमें 10 ग्राम सिंदूर की डिब्बी की कीमत 100 रुपये है. गिरधारी लाल ने 3 से 4 लोगों को भी रोजगार दिया है, जो कि किसान के साथ उनके बगीचे में काम करते हैं. इसके साथ ही वो अन्य लोगों को भी प्राकृतिक सिंदूर यूज करने के लिए जागरूक कर रहे हैं. उन्होंने लोगों से भी आह्वान किया कि वे हमेशा प्राकृतिक सिंदूर का ही तिलक लगाएं.
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वहीं, स्थानीय निवासी संजय शर्मा ने बताया, "गिरधारी लाल के बगीचे में सिंदूर की खेती देखने बहुत से लोग आते हैं और यहां से शुद्ध प्राकृतिक सिंदूर लेकर जाते हैं. ये सिंदूर प्राकृतिक है इसलिए इससे त्वचा संबंधी किसी भी बीमारी के होने का डर नहीं रहता है."
इतने सालों में लगते हैं पौधों में फल-फूल
किसान गिरधारी लाल ने बताया कि सिंदूर के पौधे का औषधीय महत्व भी है. जिसका वैज्ञानिक नाम बिक्सा ओरेलाना है. कई लोग इसे सिंदूरी कपिला के नाम से भी जानते हैं. सुहागिन महिलाओं के साथ-साथ सिंदूर का पूजा-पाठ में भी विशेष महत्व होता है. ऐसे में सिंदूर की गुणवत्ता का ख्याल रखना बहुत जरूरी है. उन्होंने बताया कि ये पौधा औसत ऊंचाई का होता है. इसे सिरमौर जिले के मैदानी इलाकों में आसानी से उगाया जा सकता है. इसको लगाने के तीन साल बाद पौधे में फल और फूल आना शुरू हो जाते हैं.
कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के सह निदेशक प्रसार डॉ. अजय दीप बिंद्रा ने गिरधारी लाल के प्रयासों की सराहना की और अन्य किसानों को भी इससे जोड़ने का आह्वान किया. डॉ. अजय दीप बिंद्रा ने कहा, "गिरधारी लाल ने एक बहुत अच्छा बगीचा बनाया है. जिसमें प्राकृतिक तौर पर सिंदूर सहित अनेक उत्पाद तैयार किए हैं, जो अन्य किसानों और बागवानों के लिए भी एक प्रेरणा है."