पालमपुर: आज कैप्टन विक्रम बत्रा की पुण्यतिथि है. पालमपुर की भूमि से कई जवान शहादत को गले लगा चुके हैं लेकिन शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की शहादत ने देश का नाम रोशन किया था और करगिल युद्ध में शहादत को गले लगाया था. पालमपुर के शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता और माता आज अपने बेटे की शहादत पर गर्व महसूस करते हैं और उनका कहना है कि उनके बेटे ने शहादत को गले लगा कर भारत माता की रक्षा की है और देश का नाम ऊंचा किया है भले ही आज शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा को सारा देश याद करता है लेकिन उनकी शहादत व्यर्थ नहीं जानी चाहिए.
शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता ने सरकार से की ये मांग
शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता गिरधारी लाल बत्रा का कहना है कि उनके बेटे ने दुश्मनों को नाको चने चबाने के बाद शहादत को गले लगाया था. आज सारा देश इस शहादत को जानता है और हिमाचल के शिक्षा सिलेबस में विक्रम बत्रा का जिक्र किया जाना चाहिए. ताकि आने वाली पीढ़ी भी इस शहादत को जान सकें. वहीं, उन्होंने ने कहा है कि शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के नाम पर हिमाचल में एक स्मृति स्थल का निर्माण किया जाना चाहिए ताकि हिमाचल में आने वाले पर्यटक भी शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की शहादत की गाथा को जान सकें.
'ये दिल मांगे मोर'
बत्रा ने युद्ध के दौरान कई दुस्साहसिक फैसले लिए. जुलाई 1999 की 7 तारीख थी. कई दिनों से मोर्चे पर डटे विक्रम बत्रा को उनके ऑफिसर्स ने आराम करने की सलाह दी थी, जिसे वे नजर अंदाज करते रहे. इसी दिन वे पॉइंट 4875 पर युद्ध के दौरान शहादत को चूम गए, लेकिन इससे पहले वे भारतीय सेना के समक्ष आने वाले सारे अवरोध दूर कर चुके थे. युद्ध के दौरान उनका नारा ये दिल मांगे मोर था. उन्होंने इसे सच कर दिखाया. कैप्टन बत्रा के शौर्य के किस्से सदा अमर रहेंगे.
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