चंबा: कोरोना महामारी को ध्यान में रखते हुए प्रदेश सरकार के फैसले के बाद परंपराओं का निर्वहन करते रविवार को अंतरराष्ट्रीय मिंजर मेले का भी आगाज हो गया. 26 जुलाई से 2 अगस्त तक चलने वाले मिंजर मेले की शुरुआत हर साल महामहिम राज्यपाल के जरिए की जाती थी, लेकिन कोरोना महामारी के चलते इस बार विधानसभा उपाध्यक्ष हंसराज ने मिंजर का शुभारंभ किया.
रविवार सुबह नगर परिषद कार्यालय से शोभायात्रा निकाली गई. जिसमें प्रशासनिक अधिकारियों व मीडिया कर्मियों के अलावा नगर परिषद के कुछ सदस्यों ने भाग लिया. शोभायात्रा के दौरान चंबा मुख्यालय को पूरी तरह से सील कर दिया गया था, जिससे किसी तरह के संक्रमण का खतरा ना रहे.
परंपरा के मुताबिक सबसे पहले भगवान लक्ष्मी नाथ के मंदिर में मिर्जा परिवार की बनाई हुई रेशम की मिंजर चढ़ाई गई. उसके बाद अखंड चंडी महल में रघुवीर भगवान को मिंजर अर्पित की गई और फिर हरि राय मंदिर में मिंजर अर्पित कर इस ऐतिहासिक चौहान में ध्वजारोहण कर इस कार्यक्रम का आगाज किया गया. इस अवसर पर कुंजड़ी मल्हार गायन का भी आयोजन हुआ.
मिंजर मेले का इतिहास
श्रावण माह के दूसरे रविवार से शुरू होकर तीसरे रविवार को रावी नदी में मिंजर विसर्जन के साथ खत्म होने वाले मिंजर मेले का अपना प्राचीन वैभवशाली इतिहास है.
दसवीं शताब्दी में त्रिगत (कांगड़ा) के राजा, दुग्गरों, कीरों और सामन्तों पर विजय प्राप्त कर के राजा साहिल वर्मा ने जब चंबा के अपने राज्य की सीमा में प्रवेश किया, तो प्रजा ने उन्हें मक्की व धान की बालियां (मंजारियां) भेंट करके उनका स्वागत सत्कार किया.
राजा साहिल वर्मा ने भेंट में प्राप्त मंजरियों को अपने राजमहल में संग्रहित कर दिया और चंबा की प्राचीन परंपरा का अनुसरण करते हुए इरावत्ती नदी के उफान को शांत करने और अच्छी वर्षा व भरपूर पैदावार के लिए इरावत्ती (आधुनिक रावी नदी) में मंजरियों को प्रवाहित करने की प्रचलित प्रथा के अनुसार उन्हें विसर्जित कर दिया.
इस अवसर पर राजमहल से रावी नदी तक शोभायात्रा निकाली गई. राजा की शाही सवारी के साथ सैनिकों की टुकड़ियों, राज दरबारी और प्रजा भी शामिल हुई. मिंजर शोभायात्रा को भव्यता प्रदान करने का पूर्ण श्रेय राजा पृथ्वी सिंह को जाता है. उन्होंने राजसी वैभव का प्रदर्शन करते हुए राजसी आफतावी (सूर्य) चिन्ह के अलंकार अथवा विशाल झण्डों, पारंपरिक वेशभूषा से सुसज्जित प्रजा, सैन्य टुकड़ियों व स्थानीय वाद्यययंत्रों के साथ रावी नदी में मिंजर प्रवाहित करने की प्रथा का आगाज किया, जो अब तक जारी है.
मक्की की बालियों की मिंजर से जरी-तिल्ले तक के मिजंर के सफर की कहानी अत्यंत गौरवशाली और आधुनिक परिवेश के लिए प्रेरणादायक है. राजा पृथ्वी सिंह ने मुगल सम्राट शाहजहां के दरबार में घुड़दौड प्रतियोगिता जीतने के बाद शाहजहां के सल्तनत कोष से धन धान्य, बुद्धि व अमन की प्रतीक शालिग्राम अथवा रघुवीर की प्रतिमा प्राप्त की. शाहजहां को इस प्रतिमा के साथ असीम लगाव था.
राजा ने इस प्रतिमा के साथ अपने राजदूत के रूप में मिर्जा शफी बेग को चंबा भेजा. मिर्जा शफी बेग जरी-तिल्ले अथवा गोटे के माहिर कारीगर थे. उन्होंने अपनी कला निपूणता दिखाते हुए धान अथवा मक्की के अनुरूप जरी व सोने की तारों से सुंदर मिंजर बनाकर राजा को भेंट की. यह कलाकृति देखकर राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ. उन्होंने यह भेंट में प्राप्त मिंजर रघुवीर भगवान और लक्ष्मीनारायण को अर्पित की.
यही परंपरा आज भी कायम है. मिर्जा शफी बेग के वंशज पीढ़ी दर पीढ़ी सुच्चे गोटे की मिंजर बनाते हैं और श्रावण माह के दूसरे रविवार को शोभायात्रा के साथ रघुवीर और लक्ष्मीनारायण के मंदिरों में इन मिंजरों को चढ़ाने के बाद मिंजर मेले की शुरूआत होती है.
मिर्जा परिवार के सदस्य सफी मिर्जा
मिर्जा परिवार द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी रेशम व सुचे गोटे की मिंजर बनाई जाती है और श्रावण माह के दूसरे रविवार को शोभायात्रा के साथ रघुवीर, लक्ष्मी नाथ व भगवान और हरिराय को अर्पित की जाती है. मिर्जा परिवार के वंशज मिर्जा सफी बेग ने बताया कि राजा पृथ्वी सिंह के कार्यकाल से यह परंपरा इसी तरह से निभाई रही है और इस बार कोरोना महामारी के कारण दौरान भी इस परंपरा को निभाते हुए आज यहां पर भगवान लक्ष्मी नाथ रघुवीर और है हरिराय भगवान को मिंजर अर्पित की गई.
विधान सभा उपाध्यक्ष हंस राज
मिंजर मेले के कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विधानसभा उपाध्यक्ष हंसराज व स्थानीय विधायक पवन नय्यर ने बताया कि कोरोना महामारी के बीच में मिंजर त्यौहार को बड़े ही रस्मी व पारंपरिक तरीके से मनाया जा रहा है. अपनी प्रचीनत्म परंपराओं को सहेजते हुए इस मेले को रस्मी तौर पर मनाया जा रहा है और मिर्जा परिवार के हाथों से बनाए गई मिंजर लक्ष्मीनाथ, रघुवीर भगवान व हरिराय को अर्पित की गई है.
परंपराओं को निभाते हुए शाम के समय कुंजड़ी मल्हार गायन होगा, लेकिन उसमें सिर्फ मीडिया कर्मी ही रहेंगे जो अपने चैनलों के माध्यम से लोगों को इस कुंजड़ी मल्हार गायन का प्रसारण करेंगे. अगले रविवार को जब इसका समापन होगा तो, उस समय भी परंपरा के साथ सीमित ही कार्यक्रम होगा.
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