चंबा: सेब के बागीचों में फूलों की बहार देख कर चंबा के बागवानों के चेहरे खिलने लग गए हैं. फ्लावरिंग के पहले दौर के साथ ही बागवानों के लिए सीजन का सबसे संवदेनशील समय की शुरुआत भी हो गई है. सेब की पैदावार फ्लावरिंग व पॉलिनेशन पर परी तरह से निर्भर रहती है. ऐसे में परागण की इस प्रक्रिया का सही ढंग से निपट जाना बागवानों के लिए हमेशा अहम रहता है. इसलिए बागवान हमेशा पॉलिनेशन की प्रक्रिया को सही ढंग से निपटाने के लिए व्यापक स्तर पर मधुमक्खियों का इस्तेमाल करते हैं.
कोरोना के चलते इस बार बाहरी राज्यों विशेषकर पंजाब व हरियाणा के मौन पालक हिमाचल का रूख नहीं कर पाए हैं जिससे बागवानों को अबकी बार मधुमक्खियों की कमी का सामना करना पड़ रहा है. बागवानों को परागण प्रक्रिया के लिए आसानी से मधुमक्खियां नहीं मिल पा रही है. सेब की परागण प्रक्रिया में मधुमक्खियों की अहम भूमिका का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बागवान मौन पालकों को एक बक्से का मासिक किराया आठ सौ से नौ सौ रुपये तक देने में संकोच नहीं करते.
परागण प्रक्रिया में सेब की पॉलिनेटर प्रजातियां भी अहम भूमिका निभाती हैं. जिनमें रेड गोल्डन, गोल्डन, ग्रेनी स्मिथ जैसी प्रजातियों के फूल सेब की अन्य किस्मों के फूलों के परागण में अपना योगदान देती हैं, लेकिन कई बार मौसम व तापमान में स्थिरता के न रहने की वजह से परागण करने वाली किस्मों के फूल सेब की अन्य मुख्य किस्मों के फूलों के साथ नहीं खिल पाते, जिससे परागण प्रक्रिया पर प्रतिकूल असर पड़ने की संभावनाएं बन जाती हैं.
बागवानों का कहना है कि बगीचों में इस समय काफी मात्रा में फ्लावरिंग हुई है, जिससे सेब की फसल दोगुनी होने की संभावना बढ़ गई है. ऐसे में अगर ओलावृष्टि नहीं होती तो मेहनत के अनुसार उसका फल भी मिलेगा. बता दें कि बागवानों केे परिवार सेब की फसल पर ही निर्भर करते हैं.
ये भी पढ़ें: कोविड-19 ट्रैकर: प्रदेश में 33 कोरोना पॉजिटिव, अब तक 1311 लोगों की हुई जांच