नई दिल्ली/शिमला: आज नई दिल्ली में राज्य के कृषि मंत्रियों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया. इस सम्मेलन का शुभारंभ कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने दीप प्रज्वलित कर किया. इस सम्मेलन में 2022 तक किसानों की आय को जीरो बजट खेती के माध्यम से दोगुना करने को लेकर चर्चा की गई.
इस मौके पर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का कहना कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है और सरकार इस उद्देश्य को लेकर काम कर रही है. कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा कि उन्हें सभी राज्यों से इस उद्देश्य में सहयोग की अपेक्षा है.
उन्होंने कहा, ''हमें कृषक की आय दोगुनी करनी है तो सबसे पहले इसकी लागत को कम करना होगा, तकनीक को बढ़ावा देना होगा. विशेष रूप से हर छोटे-छोटे किसान तक तकनीक को पहुंचाना होगा और किसान को उसके उत्पादन का उचित मूल्य मिले इसके लिए केंद्र सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाकर डेढ़ गुना कर दिया है.
''में पानी को बचने की ओर भी ध्यान देना होगा. टपक सिंचाई को प्रोत्साहित करना होगा, साथ ही साथ जैविक खेती को भी बढ़ावा देने की आवश्यकता है.''
वहीं, कार्यक्रम के बाद जब हिमाचल प्रदेश कृषि मंत्री रामलाल मारकंडा से बात की गई तो उन्होंने बताया कि सम्मेलन में जैविक खेती को लेकर चर्चा की गई. उन्होंने बताया कि प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत प्राकृतिक खेती या फिर जीरे बजट खेती के मुख्य पक्षधर हैं.
प्रदेश कृषि मंत्री ने बताया कि प्राकृतिक खेती (जीरो बजट खेती) में लागत शुन्य है और उत्पादन दोगुना है. हिमाचल में इस दिशा में पिछले एक साल से कार्य किया जा रहा है और प्रदेश में 19 हजार से अधिक किसानों ने खेती की इस तकनीक को अपनाया है.
कृषि मंत्री मारकंडा ने बताया कि जो किसान पाकृतिक खेती कर रहे हैं उनका उत्पादन दोगुना हो रहा है. उन्होंने बताया कि प्रदेश में सरकार ने इस साल प्राकृतिक खेती को 50 हजार किसानों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है. जिसमें से 3400 किसानों को इस बारे प्रशिक्षण भी दिया गया है.
सरकार का मुख्य टारगेट प्रदेश के 9 लाख किसानों तक पहुंच बनाना है. इसके लिए प्रदेश में कलस्टर बनाए गए हैं. हर गांव तक खेती की इस तकनीक को पहुंचाया जाएगा और हिमाचल प्रदेश में 2022 तक पूरे प्रदेश को प्राकृतिक खेती प्रदेश घोषित करना चाहते हैं.
क्या है प्राकृतिक खेती या जीरो बजट खेती
जीरो बजट खेती या प्राकृतिक खेती का मतलब ऐसी खेती से है जिसे करने के लिए किसान को किसी भी तरह का खर्चा न करना पड़े या कर्ज न लेना पड़े. इस तरह की खेती में किसी भी तरह के कीटनाशक, रासायनिक खाद और आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. यह खेती पूरी तरह प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर होती है.
प्राकृतिक खेती में रासायनिक खाद की जगह देसी खाद और प्राकृतिक चीजों से बनी खाद का इस्तेमाल किया जाता है. प्राकृतिक कृषि परंपरागत खेती का रूप है जो हजारों सालों पहले से खेती के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है. जीरो बजट खेती से उत्पादन भी बढ़ता है और इसमें लागत न के बराबर आती है.
प्राकृतिक खेती करने के लाभ
जीरो बजट खेती पूरी तरह से प्राकृतिक तरीके से होती है. जो भी किसान खेती करने में इस तकनीक का इस्तेमाल करते हैं उन्हें किसी भी तरह के रासायनिक पदार्थों की जरूरत नहीं पड़ती है. ऐसे में खेती करने में कम लगात आती है और किसानों को फसलों पर अधिक मुनाफा होता है.
प्राकृतिक खेती से पर्यावरण को नुकसान से भी बचाया जा सकता है. वहीं, प्राकृतिक खेती से जमीन की उर्वरा भी बची रहती है. इसके अलावा खेत में पानी की प्रतिशतता की भी बचत होती है.
रासायनिक खेती करने से कई गंभीर बीमारियों जैसे कैंसर और डायबिटीज जैसे रोग पैदा हो गए हैं. आधुनिक खेती के कारण हमारे खान-पान में इतना रसायन और कीटनाशक शामिल हो गया है जो सीधे हमारे स्वास्थ्य पर असर डाल रहे हैं. प्राकृतिक खेती रसायन और कीटनाशकों से बचा जा सकेगा.
कैसे शुरू हुई भारत में जीरो बजट खेती
हालांकि हमारे देश में प्राकृतिक खेती हजारों सालों से अपनाई जा रही है और अभी भी ये कई जगहों पर प्रचलित है खासकर हिमाचल जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में लेकिन यहां भी परंपरागत खेती होने के बावजूद रसायनों का उपयोग किया जाता है.
वहीं, भारत में सबसे पहले जीरो बजट खेती की शुरुआत सबसे पहले दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य से हुई थी. जिसके बाद धीरे- धीरे ये खेती बाकी राज्यों के किसानों की बीच प्रसिद्ध हो गई. इस खेती की शुरुआत कर्नाटक राज्य में सुभाष पालेकर ने स्टेट फार्मर्स ऑफ ला वाया कम्पेसिना के साथ मिलकर की थी.
हाल ही में हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले के नौणी विश्वविद्यालय में छह दिवसीय सुभाष पालेकर प्राकृतिक कृषि प्रशिक्षण का आयोजन किया गया था. छह दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में नौ जिलों के 1000 से अधिक किसानों ने भाग लिया था.