शिमला: प्रदेश की प्राचीन पांडुलिपियों के नष्ट होने से पहले ही भाषा,कला व संस्कृत अकादमी ने इन्हें हमेशा के लिए सहजने का काम शुरू कर दिया है. अकादमी इन पांडुलिपियों का डिजिटलाइजेशन करने के साथ ही इनका कैटलॉग भी तैयार कर रहा है, जिससे इन लिपियों को ऑनलाइन करके सभी के लिए उपलब्ध कराया जा सके.
अकादमी को कार्य पूरा करने के लिए सरकार की ओर बजट मुहैया कराया गया है. प्रदेश में प्राचीन काल की पौराणिक हस्तलिखित पांडुलिपियों का भंडार है, जिसे अकादमी के पुस्तकालय में सहेज कर रखा गया है. अकादमी के पास पांडुलिपियों के बहुमूल्य भंडार में ज्यादातर लिपियां धार्मिक साहित्य, ज्योतिष, आर्युवेद, इतिहास और धर्मग्रंथ की हैं, जिसमें जानकारियों का भंडार छुपा हैं.
ये सभी पांडुलिपियां हस्तलिखित हैं ओर कई नष्ट होने की कगार पर भी है. ऐसे में विभाग का ये प्रयास है कि इनका डिजिटलाइजेशन करके इन्हें भविष्य के लिए संरक्षित किया जा सके. अकादमी के पुस्तकालय में संरक्षित करके रखी गई पांडुलिपियों में कांगड़ा का 600 साल पुराना कराड़ा सूत्र, जो भोटी लिपि में लिखा गया है, पांगी में चस्क भटोरी पांडुलिपि भी, जिसका वजन 18 किलो है, उसको संरक्षित किया गया है. साथ ही अकादमी के पुस्तकालय में पावुची, पंडवानी, चंदवानी, भटाक्षरी चार प्रमुख लिपियों में लिखे ग्रंथ और पुस्तकें शामिल है.
अकादमी ने मुनि मेघ बिलास द्वारा रचित, हनुमान नाटक, गृह प्रवेश पूजन की विधि, वास्तु शास्त्र, अथ शिव शस्त्रम नामावली जिसमें भगवान शिव के 1008 नाम शामिल है. इसके साथ ही टांकरी लिपि में काग भाषा का 100 मीटर का स्क्रॉल, शौली मंदिर का इतिहास, कुर्सीनामा, सांचा संरक्षित किया गया है.
अकादमी के पुस्तकालय में कहलूर, बिलासपुर-नालागढ़, सिरमौर रियासत के इतिहास जो कि ऊर्दु में है, उसको संरक्षित किया गया है. इसके अलावा कटोच वंश का इतिहास, कनावर, जिसमें किन्नौर का इतिहास, राजघराने, नूरपूर पठानिया, पठानिया वंश का इतिहास, बृजभाषा में रसविलास, सिरमौर सांचा, रामपुर के ढलोग से मंत्र-तंत्र, राजगढ़ का 300 साला पुराना इतिहास, 12वीं शताब्दी में राजस्थान के पंडित रानी के दहेज में आए सामान भी संरक्षित करके रखे गया है. इसके अलावा अकादमी के पास लाहौल स्पीति की स्वर्णाक्षरों में लिखी एक पांडुलिपि भी है. ये ग्रंथ पाउची लिपि में लिखे गए हैं.
भाषा कला व संस्कृत अकादमी के सचिव डॉ. कर्म सिंह ने बताया कि प्रदेश में पांडुलिपि का भंडार है. यहां पर पुराण काल से लेकर ऋषि मुनि काल तक लेखन की परंपरा रही है, जिसको संरक्षण के लिए विभाग द्वारा उन्हें डिजिटल करने की योजना है. उन्होंने बताया कि अकादमी प्रदेश की सभी पांडुलिपियों को डिजटल करेगा और इसकी एक लाइब्रेरी तैयार करेगा.
बता दें कि सैकड़ों साल पहले जब पुस्तकें प्रकाशित करने के संसाधन कम थे, तो लोग हाथों से लिखा करते थे. ये ग्रंथ उस समय की प्रचलित लिपियों में लिखे जाते थे, जिन्हें खोज कर अब विभाग उनका सरक्षंण कर रहा है.