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गोरखा किले के नाम से विख्यात है ये ऐतिहासिक धरोहर, जर्जर हालत में आज बहा रही बदहाली के आंसू! - स्वारघाट के मुंडखर और सतगढ़ किले

प्रदेश में बहुत सी ऐसी ऐतिहासिक धरोहरें हैं जिनका नाम इतिहास के पन्नों से मिटता जा रहा है. आज हम बात कर रहे हैं जिला बिलासपुर में स्थित मलौन किले की जहां कभी गोरखाओं का शासन हुआ करता था और इसी वजह से ये किला गोरखा किले के नाम से विख्यात है. इसका इतिहास 200 से 300 साल पुराना है.

special story on malaun fort bilaspur
गोरखा किले के नाम से विख्यात है ये ऐतिहासिक धरोहर
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Published : Dec 2, 2019, 3:19 PM IST

बिलासपुर: 1800 ईसवी में राजा ईश्वर चन्द नालागढ़ रियासत के राजा थे और मलोण किले पर भी इन्हीं का आधिपत्य हुआ करता था. गोरखों और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ जिसमें सर डी ओचर्लोनी ने गोरखों को हराया. इस दौरान अमर सिंह थापा के विश्वसनीय शूरवीर भक्ति थापा युद्ध में मारा गया और गोरखा सैनिक डर कर यहां से भाग गए. जानकारी के अनुसार अमर सिंह थापा ने अंग्रेजों के साथ सन्धि कर ली और अपने पुत्र रणजोर सिंह के साथ सुरक्षित नेपाल चला गया. इस विजय के साथ सतलुज घाटी और शिमला की पहाड़ी रियासतों पर अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया.

किले में काली माता मंदिर भी है और कालिदास ठाकुर मंदिर में पुजारी होते थे. किंवन्दति के अनुसार काली दास ने तीन बार अपना शीश काट कर चढ़ाया था, लेकिन माता की कृपा से वे हर बार जीवित हो जाते थे. लोगों के अनुसार यहां की प्राचीर पर बड़ी बड़ी तोपें तैनात थीं. लड़ाई में इस्तेमाल की गई तोपों को मलोण किले में रखा गया, लेकिन अब कुछ साल पहले ही गोरखा ट्रेनिंग सेंटर संग्रहालय सुबाथू ले जाया गया है. किले में राजा के समय से हनुमान, भैरव और अन्य देवताओं की मूर्तियों सहित एक बाघ की प्राचीन मूर्ति भी विद्यमान हैं.

गोरखा किले के नाम से विख्यात है ये ऐतिहासिक धरोहर

मलौन किला जर्जर हालत में पहुंच कर आज अपनी बदहाली के आंसू बहा रहा है. इस किले को पहाड़ी किला भी कहा जाता है. पहाड़ी किलों में स्वारघाट के मुंडखर और सतगढ़ किले भी शामिल हैं जोकि देख-रेख के अभाव में खंडहर बनते जा रहे हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार गोरखा रेजिमेंट की बटालियन हर चौथे वर्ष मलौन किले में बने प्राचीन मंदिर में माथा टेकने के लिए आती हैं. वहीं, स्वारघाट के सतगढ़ किले की बात करें तो इस किले में सात किले हैं जिसके चलते इसका नाम सतगढ़ रखा गया था. इस किले के अंदर बाबा बालक नाथ का मन्दिर है और स्थानीय इलाका निवासी रविवार के दिन यहां रोट-प्रसाद चढ़ाने के लिए आते हैं.

प्रदेश सरकार ग्रामीण क्षेत्रों को पर्यटन के साथ जोड़ने की बात तो करती है, लेकिन पर्यटकों को आकर्षित करने वाली ऐतिहासिक चीजों की ओर कोई ध्यान नहीं दे रही है. अगर इन किलों और आसपास की जगहों को टूरिस्ट प्लेस के रूप में विकसित किया जाए तो बेरोजगार युवाओं को रोजगार के अवसर मिलेंगे और सरकार को भी मुनाफा होगा.

ये भी पढ़ें- Birthday Special: छात्र राजनीति से निखरे JP नड्डा, अब हैं दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के मुखिया!

बिलासपुर: 1800 ईसवी में राजा ईश्वर चन्द नालागढ़ रियासत के राजा थे और मलोण किले पर भी इन्हीं का आधिपत्य हुआ करता था. गोरखों और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ जिसमें सर डी ओचर्लोनी ने गोरखों को हराया. इस दौरान अमर सिंह थापा के विश्वसनीय शूरवीर भक्ति थापा युद्ध में मारा गया और गोरखा सैनिक डर कर यहां से भाग गए. जानकारी के अनुसार अमर सिंह थापा ने अंग्रेजों के साथ सन्धि कर ली और अपने पुत्र रणजोर सिंह के साथ सुरक्षित नेपाल चला गया. इस विजय के साथ सतलुज घाटी और शिमला की पहाड़ी रियासतों पर अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया.

किले में काली माता मंदिर भी है और कालिदास ठाकुर मंदिर में पुजारी होते थे. किंवन्दति के अनुसार काली दास ने तीन बार अपना शीश काट कर चढ़ाया था, लेकिन माता की कृपा से वे हर बार जीवित हो जाते थे. लोगों के अनुसार यहां की प्राचीर पर बड़ी बड़ी तोपें तैनात थीं. लड़ाई में इस्तेमाल की गई तोपों को मलोण किले में रखा गया, लेकिन अब कुछ साल पहले ही गोरखा ट्रेनिंग सेंटर संग्रहालय सुबाथू ले जाया गया है. किले में राजा के समय से हनुमान, भैरव और अन्य देवताओं की मूर्तियों सहित एक बाघ की प्राचीन मूर्ति भी विद्यमान हैं.

गोरखा किले के नाम से विख्यात है ये ऐतिहासिक धरोहर

मलौन किला जर्जर हालत में पहुंच कर आज अपनी बदहाली के आंसू बहा रहा है. इस किले को पहाड़ी किला भी कहा जाता है. पहाड़ी किलों में स्वारघाट के मुंडखर और सतगढ़ किले भी शामिल हैं जोकि देख-रेख के अभाव में खंडहर बनते जा रहे हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार गोरखा रेजिमेंट की बटालियन हर चौथे वर्ष मलौन किले में बने प्राचीन मंदिर में माथा टेकने के लिए आती हैं. वहीं, स्वारघाट के सतगढ़ किले की बात करें तो इस किले में सात किले हैं जिसके चलते इसका नाम सतगढ़ रखा गया था. इस किले के अंदर बाबा बालक नाथ का मन्दिर है और स्थानीय इलाका निवासी रविवार के दिन यहां रोट-प्रसाद चढ़ाने के लिए आते हैं.

प्रदेश सरकार ग्रामीण क्षेत्रों को पर्यटन के साथ जोड़ने की बात तो करती है, लेकिन पर्यटकों को आकर्षित करने वाली ऐतिहासिक चीजों की ओर कोई ध्यान नहीं दे रही है. अगर इन किलों और आसपास की जगहों को टूरिस्ट प्लेस के रूप में विकसित किया जाए तो बेरोजगार युवाओं को रोजगार के अवसर मिलेंगे और सरकार को भी मुनाफा होगा.

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Intro:1800 ईसवीं में राजा ईश्वर चन्द नालागढ़ रियासत के राजा थे व मलोण किले पर भी इन्ही का आधिपत्य हुआ करता था।किले में कालिदास ठाकुर काली माता मंदिर में पुजारी होते थे।यंहा के स्थानीय लोगो के अनुसार व किंवन्दति के अनुसार काली दास ने तीन बार अपना शीश काट कर चढ़ाया था,परन्तु माता की कृपा से वे हर बार जीवित हो जाते थे।


नालागढ़ रियासत के राजा को जब इस प्रकरण का पता चला तो उन्होंने पुजारी काली दास से माँ काली के दर्शनों की फरियाद कर डाली।राजा के आदेशानुसार पुजारी काली दास ने जब माता को राजा से मिलाने की बात स्वीकार करते हुए जब नालागढ़ में माता का आह्वाहन किया तो माता सिंह पर सवार होकर आई तो उस दौरान ऐसी भयंकर गर्जना व हवा के डर से राजा ने पुजारी को माँ के दीदार से मना कर दिया व पुजारी को कुछ भी मांगने के लिए कहा।इस पर पुजारी ने मलोण सहित दो गावं मांगे।राजाओं के समय से इस परिवार का लगान(मामला) आज भी माफ है




जिला का एकमात्र मन्दिर है जंहा पर राजपूत पुजारी है व आज भी कालिदास के परिजन इस कार्य को बड़ी ही लग्न व शिद्दत से निभा रहे है।लोगो के अनुसार यंहा की प्राचीर पर बड़ी बड़ी तोपे तैनात थी।एक तोप जब रामशहर की ओर चलाई गई थी तो इतनी जोरदार गर्जना हुई थी कि इस क्षेत्र के आस पास गाभन पशुओं के गर्भ तक गिर गए थे।लड़ाई में इस्तेमाल किये गए तोपो को मलोण किले में रखा गया ,लेकिन अब कुछ वर्ष पहले ही गोरखा ट्रेनिंग सेंटर संग्रहालय सुबाथू ले जाया गया है।

Body:ByteConclusion:1800 ईसवीं में राजा ईश्वर चन्द नालागढ़ रियासत के राजा थे व मलोण किले पर भी इन्ही का आधिपत्य हुआ करता था।किले में कालिदास ठाकुर काली माता मंदिर में पुजारी होते थे।यंहा के स्थानीय लोगो के अनुसार व किंवन्दति के अनुसार काली दास ने तीन बार अपना शीश काट कर चढ़ाया था,परन्तु माता की कृपा से वे हर बार जीवित हो जाते थे।


नालागढ़ रियासत के राजा को जब इस प्रकरण का पता चला तो उन्होंने पुजारी काली दास से माँ काली के दर्शनों की फरियाद कर डाली।राजा के आदेशानुसार पुजारी काली दास ने जब माता को राजा से मिलाने की बात स्वीकार करते हुए जब नालागढ़ में माता का आह्वाहन किया तो माता सिंह पर सवार होकर आई तो उस दौरान ऐसी भयंकर गर्जना व हवा के डर से राजा ने पुजारी को माँ के दीदार से मना कर दिया व पुजारी को कुछ भी मांगने के लिए कहा।इस पर पुजारी ने मलोण सहित दो गावं मांगे।राजाओं के समय से इस परिवार का लगान(मामला) आज भी माफ है




जिला का एकमात्र मन्दिर है जंहा पर राजपूत पुजारी है व आज भी कालिदास के परिजन इस कार्य को बड़ी ही लग्न व शिद्दत से निभा रहे है।लोगो के अनुसार यंहा की प्राचीर पर बड़ी बड़ी तोपे तैनात थी।एक तोप जब रामशहर की ओर चलाई गई थी तो इतनी जोरदार गर्जना हुई थी कि इस क्षेत्र के आस पास गाभन पशुओं के गर्भ तक गिर गए थे।लड़ाई में इस्तेमाल किये गए तोपो को मलोण किले में रखा गया ,लेकिन अब कुछ वर्ष पहले ही गोरखा ट्रेनिंग सेंटर संग्रहालय सुबाथू ले जाया गया है।

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