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दसेरन वाटरशेड परियोजना संवार रही किसानों की तकदीर, पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी हुआ बेहतरीन काम

नाबार्ड वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में ब्यास, रावी और सतलुज नदियों के जल क्षेत्रों में जलागम विकास की दिशा में कार्य किया कर रहा है. इसका मुख्य उद्देश्य जल संरक्षण एवं मृदा संरक्षण के लिए वर्षा के जल के बहाव की गति को कम कर वर्षा जल को संग्रहित कर जल एवं मृदा का संरक्षण सुनिश्चित बनाना है.

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Published : Oct 17, 2020, 3:33 PM IST

Watershed helpful for farmers
दसेरन वाटरशैड परियोजना

सोलन: वर्तमान समय में जल संरक्षण समूचे विश्व के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता है. सूखे से निपटने, जलस्त्रोतों के विकास एवं जल संरक्षण की दिशा में केंद्र और प्रदेश स्तर पर काम किया जा रहा है. जल सभी के लिए अत्यंत आवश्यक है. खाद्यान्न के उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण के लिए जल प्रबंधन बहुत जरूरी है.

इस दिशा में अत्यंत भूमिका निभा रही है जलागम परियोजना. राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) विगत लंबे समय से पूरे देश में जलागम विकास की दिशा में कार्यरत है. नाबार्ड वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में ब्यास, रावी और सतलुज नदियों के जल क्षेत्रों में जलागम विकास की दिशा में कार्य किया कर रहा है. इसका मुख्य उद्देश्य जल संरक्षण एवं मृदा संरक्षण के लिए वर्षा के जल के बहाव की गति को कम कर वर्षा जल को संग्रहित कर जल एवं मृदा का संरक्षण सुनिश्चित बनाना है.

नाबार्ड के तहत प्रदेश के सोलन, सिरमौर, चंबा, शिमला, मंडी, बिलासपुर और कुल्लू जिलों में 27 वाटरशेड और स्प्रिंग्सशेड विकास परियोजनाओं को स्वीकृत किया गया है. इनमें से से 6 परियोजनाएं पूर्ण हो चूकी हैं और 21 वर्तमान में कार्यवान्वित की जा रही हैं. नाबार्ड ने सोलन जिला के कुनिहार विकास खंड की ग्राम पंचायत दसेरन में दसेरन वाटरशेड परियोजना जलागम विकास निधि के तहत वर्ष 2010 में कार्य आरंभ किया.

परियोजना का कार्यान्वयन अंबुजा सीमेंट फाउंडेशन के माध्यम से किया गया है. यह परियोजना कार्य पूर्ण होने के बाद से कुनिहार विकास खंड की 944 हेक्टेयर भूमि को लाभान्वित कर रही है. योजना से 739 परिवार लाभ प्राप्त कर रहे हैं.

  • जल, वन एवं पर्यावरण सरंक्षण हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य के लिए अत्यंत आवश्यक

जल, वन एवं पर्यावरण संरक्षण हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य के लिए अत्यंत आवश्यक है. पहाड़ में इनका संरक्षण मैदानी क्षेत्रों को भी लाभ प्रदान करता है. इस कार्य में जन सहभागिता अनिवार्य है. जलागम कार्यक्रम सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से वर्षा को रोको वहां, जहां वह गिरती है सिद्धांत पर आधारित है. कार्यक्रम के तहत विभिन्न गतिविधियों के कार्यान्वयन के लिए रिज टू वैली दृष्टिकोण को अपनाया जाता है.

जलागम क्षेत्र में रिज से वैली तक जल को रोकने के लिए विभिन्न उपायों से क्षेत्र एवं जल निकासी संबंधी कार्य किए जाते हैं. इन कार्यों के बेहतर कार्यान्वयन के लिए सामुदायिक विकास संगठन जैसे ग्राम जलग्रहण समिति और स्वयं सहायता समूह आदि का गठन भी किया जाता है. यह समिति और स्वयं सहायता समूह आपसी समन्वय से क्षेत्र में भौतिक सत्यापन कर कार्य के क्रियान्वयन को अंतिम रूप प्रदान करते हैं.

  • वाटरशेड परियोजना से जल भंडारण क्षमता में हुई लगभग 22 लाख लीटर की वृद्धि

परियोजना की सफलता जांचने के लिए नाबार्ड ने दसेरन जलागम परियोजना क्षेत्र में प्रश्नावली और रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग कर परियोजना के पूर्व और परियोजना के बाद का मूल्यांकन किया गया. मूल्यांकन में पाया गया कि क्षेत्र में जल भंडारण क्षमता में लगभग 22 लाख लीटर की वृद्धि हुई है.

भूमि उपयोग-भूमि कवर विश्लेषण में भी इसकी पुष्टि हुई. इससे ज्ञात हुआ कि वर्ष 2010 में (प्री-वाटरशेड) जल स्त्रोतों की कुल मात्रा 0.034 वर्ग किलोमीटर थी. वहीं, जलागम परियोजना के कार्यान्वयन के बाद वर्ष 2017 में 138.24 प्रतिशत बढ़कर 0.081 वर्ग किलोमीटर हो गई. गेबियन, ढीले पत्थर के चेक डैम, ट्रेंचिंग, वृक्षारोपण आदि के फल स्वरूप क्षेत्र में झरनों के जल बहाव में 5 प्रतिशत से 21 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है.

भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) विश्लेषण द्वारा यह पाया गया है कि दसेरन जलागम क्षेत्र में वर्ष 2010 में फसल क्षेत्र 2.311 वर्ग किलोमीटर था. वहीं, वर्ष 2017 में यह बढ़कर 4.331 वर्ग किलोमीटर हो गया. इससे कृषि क्षेत्र में लगभग 87.71 प्रतिशत की वृद्धि हुई.

जलागम (वाटरशेड) के तहत किए गए कार्यों के प्रभाव का आंकलन करने के लिए नाबार्ड कंसल्टेंसी सर्विसेज प्रा. लि. (एनएबीसीओएनएस) ने दसेरन वाटरशेड का प्रभाव मूल्यांकन अध्ययन किया. इस अध्ययन में प्राथमिक अनुसंधान के तहत अपशिष्ट-भूमि के पुनर्ग्रहण, सिंचित क्षेत्रों में बदलाव, भूजल प्रोफाइल में बदलाव, फसल के पैटर्न में बदलाव, कृषि क्षेत्र विस्तार, फसल उत्पादन, प्रमुख फसलों की उत्पादकता, फसल विविधता जैसे बुनियादी संकेतक शामिल किए गए.

  • किसानों को मिल रहा फायदा

किसानों का कहना है कि उन्होंने परियोजना कार्यान्वयन अवधि के दौरान अपने फसल पैटर्न को बदल दिया है. उन्होंने बेहतर गुणवत्ता वाले बीजों को अपनाया है और प्रदेश सरकार और कार्यान्वन संस्था से उन्हें समय-समय पर कृषि विस्तार सेवाएं उपलब्ध हो रही हैं. क्षेत्र में पानी की उपलब्धता बढ़ने के कारण किसानों ने अब नकदी फसलों और पशुपालन गतिविधियों को अपनाया है.

यह किसानों की आय में बढ़ोतरी का सबसे बड़ा कारण है. दसेरन जलागम परियोजना क्षेत्र में किसानों के साथ-साथ सामुदायिक स्तर पर मृदा व और जल संरक्षण एवं जैव विविधता के संरक्षण में उत्साहपूर्ण भागीदारी हो रही है.

सोलन: वर्तमान समय में जल संरक्षण समूचे विश्व के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता है. सूखे से निपटने, जलस्त्रोतों के विकास एवं जल संरक्षण की दिशा में केंद्र और प्रदेश स्तर पर काम किया जा रहा है. जल सभी के लिए अत्यंत आवश्यक है. खाद्यान्न के उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण के लिए जल प्रबंधन बहुत जरूरी है.

इस दिशा में अत्यंत भूमिका निभा रही है जलागम परियोजना. राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) विगत लंबे समय से पूरे देश में जलागम विकास की दिशा में कार्यरत है. नाबार्ड वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में ब्यास, रावी और सतलुज नदियों के जल क्षेत्रों में जलागम विकास की दिशा में कार्य किया कर रहा है. इसका मुख्य उद्देश्य जल संरक्षण एवं मृदा संरक्षण के लिए वर्षा के जल के बहाव की गति को कम कर वर्षा जल को संग्रहित कर जल एवं मृदा का संरक्षण सुनिश्चित बनाना है.

नाबार्ड के तहत प्रदेश के सोलन, सिरमौर, चंबा, शिमला, मंडी, बिलासपुर और कुल्लू जिलों में 27 वाटरशेड और स्प्रिंग्सशेड विकास परियोजनाओं को स्वीकृत किया गया है. इनमें से से 6 परियोजनाएं पूर्ण हो चूकी हैं और 21 वर्तमान में कार्यवान्वित की जा रही हैं. नाबार्ड ने सोलन जिला के कुनिहार विकास खंड की ग्राम पंचायत दसेरन में दसेरन वाटरशेड परियोजना जलागम विकास निधि के तहत वर्ष 2010 में कार्य आरंभ किया.

परियोजना का कार्यान्वयन अंबुजा सीमेंट फाउंडेशन के माध्यम से किया गया है. यह परियोजना कार्य पूर्ण होने के बाद से कुनिहार विकास खंड की 944 हेक्टेयर भूमि को लाभान्वित कर रही है. योजना से 739 परिवार लाभ प्राप्त कर रहे हैं.

  • जल, वन एवं पर्यावरण सरंक्षण हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य के लिए अत्यंत आवश्यक

जल, वन एवं पर्यावरण संरक्षण हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य के लिए अत्यंत आवश्यक है. पहाड़ में इनका संरक्षण मैदानी क्षेत्रों को भी लाभ प्रदान करता है. इस कार्य में जन सहभागिता अनिवार्य है. जलागम कार्यक्रम सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से वर्षा को रोको वहां, जहां वह गिरती है सिद्धांत पर आधारित है. कार्यक्रम के तहत विभिन्न गतिविधियों के कार्यान्वयन के लिए रिज टू वैली दृष्टिकोण को अपनाया जाता है.

जलागम क्षेत्र में रिज से वैली तक जल को रोकने के लिए विभिन्न उपायों से क्षेत्र एवं जल निकासी संबंधी कार्य किए जाते हैं. इन कार्यों के बेहतर कार्यान्वयन के लिए सामुदायिक विकास संगठन जैसे ग्राम जलग्रहण समिति और स्वयं सहायता समूह आदि का गठन भी किया जाता है. यह समिति और स्वयं सहायता समूह आपसी समन्वय से क्षेत्र में भौतिक सत्यापन कर कार्य के क्रियान्वयन को अंतिम रूप प्रदान करते हैं.

  • वाटरशेड परियोजना से जल भंडारण क्षमता में हुई लगभग 22 लाख लीटर की वृद्धि

परियोजना की सफलता जांचने के लिए नाबार्ड ने दसेरन जलागम परियोजना क्षेत्र में प्रश्नावली और रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग कर परियोजना के पूर्व और परियोजना के बाद का मूल्यांकन किया गया. मूल्यांकन में पाया गया कि क्षेत्र में जल भंडारण क्षमता में लगभग 22 लाख लीटर की वृद्धि हुई है.

भूमि उपयोग-भूमि कवर विश्लेषण में भी इसकी पुष्टि हुई. इससे ज्ञात हुआ कि वर्ष 2010 में (प्री-वाटरशेड) जल स्त्रोतों की कुल मात्रा 0.034 वर्ग किलोमीटर थी. वहीं, जलागम परियोजना के कार्यान्वयन के बाद वर्ष 2017 में 138.24 प्रतिशत बढ़कर 0.081 वर्ग किलोमीटर हो गई. गेबियन, ढीले पत्थर के चेक डैम, ट्रेंचिंग, वृक्षारोपण आदि के फल स्वरूप क्षेत्र में झरनों के जल बहाव में 5 प्रतिशत से 21 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है.

भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) विश्लेषण द्वारा यह पाया गया है कि दसेरन जलागम क्षेत्र में वर्ष 2010 में फसल क्षेत्र 2.311 वर्ग किलोमीटर था. वहीं, वर्ष 2017 में यह बढ़कर 4.331 वर्ग किलोमीटर हो गया. इससे कृषि क्षेत्र में लगभग 87.71 प्रतिशत की वृद्धि हुई.

जलागम (वाटरशेड) के तहत किए गए कार्यों के प्रभाव का आंकलन करने के लिए नाबार्ड कंसल्टेंसी सर्विसेज प्रा. लि. (एनएबीसीओएनएस) ने दसेरन वाटरशेड का प्रभाव मूल्यांकन अध्ययन किया. इस अध्ययन में प्राथमिक अनुसंधान के तहत अपशिष्ट-भूमि के पुनर्ग्रहण, सिंचित क्षेत्रों में बदलाव, भूजल प्रोफाइल में बदलाव, फसल के पैटर्न में बदलाव, कृषि क्षेत्र विस्तार, फसल उत्पादन, प्रमुख फसलों की उत्पादकता, फसल विविधता जैसे बुनियादी संकेतक शामिल किए गए.

  • किसानों को मिल रहा फायदा

किसानों का कहना है कि उन्होंने परियोजना कार्यान्वयन अवधि के दौरान अपने फसल पैटर्न को बदल दिया है. उन्होंने बेहतर गुणवत्ता वाले बीजों को अपनाया है और प्रदेश सरकार और कार्यान्वन संस्था से उन्हें समय-समय पर कृषि विस्तार सेवाएं उपलब्ध हो रही हैं. क्षेत्र में पानी की उपलब्धता बढ़ने के कारण किसानों ने अब नकदी फसलों और पशुपालन गतिविधियों को अपनाया है.

यह किसानों की आय में बढ़ोतरी का सबसे बड़ा कारण है. दसेरन जलागम परियोजना क्षेत्र में किसानों के साथ-साथ सामुदायिक स्तर पर मृदा व और जल संरक्षण एवं जैव विविधता के संरक्षण में उत्साहपूर्ण भागीदारी हो रही है.

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