सोलन: शहर से करीब 18 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत शमरोड़ के ऐतिहासिक गांव धारों की धार में बघाट रियासत के पहले राजा (first king of the princely state of Baghat) जामवान और रानी जामवंती ने धारों की धार किले का निर्माण करवाया था. 22 घाटों से मिलकर बना बघाट, इस रियासत के सभी राजाओं की गाथा सुनाता है. किले में राजा की सेना के लिए खासतौर पर महल का निर्माण भी किया गया था. महल की खास बात ये थी कि अगर कभी सेना के ऊपर आक्रमण होता तो महल के अंदर से गोली बाहर जा सकती थी, लेकिन बाहर से आने वाली गोली महल में नहीं आ सकती थी.
धारों की धार किला (dharon ki dhar fort) हमेशा पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है. देशी और विदेशी पर्यटक सुविधाएं न होने के बावजूद यहां पर आते रहते हैं, लेकिन यहां सड़क सुविधा न होने की वजह से आधे घंटे तक पैदल सफर करना पड़ता है. धारों की धार में जहां पर यह किला है, वहां पर मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. जीर्णाेद्धार न होने की वजह से यह किला ढहने की कगार पर पहुंच चुका है. किले के अंदर बनाए गए कमरों की छतें ढह चुकी हैं. किले के अंदर सदियों पुराना कुआं भी मलबा भर चुका है. किले के अंदर देखने के लिए कुछ भी नहीं बचा है. केवल बाहर की दीवारें थोड़ी बहुत सुरक्षित हैं. साल 1996-97 में तत्कालीन उपायुक्त श्रीकांत बाल्दी ने पर्यटन विकास (tourism development) के लिए इस किले का स्वरूप तैयार तो किया था, लेकिन केवल 10 लाख रुपए ही स्वीकृत हुए थे, जो किले के रास्ता बनाने में ही खर्च हो गए थे.
इसके बाद पूर्व मंत्री कर्नल धनीराम शांडिल (Former Minister Dhaniram Shandil) ने किले को विकसित करने के लिए आदेश जारी किए थे, लेकिन अभी तक यहां विकास के नाम पर कुछ नहीं हो पाया. धारों की धार किले के जीर्णोद्धार को लेकर कई बार इतिहासकार भी इसके लिए सरकार के समक्ष आवाज उठा चुके हैं. सोलन के रहने वाले इतिहासकार मदन हिमाचली का कहना है कि आज के समय में पर्यटन की दृष्टि से यह किला काफी पिछड़ा हुआ है, लेकिन इस किले को विकसित करने के लिए प्रशासन और सरकार द्वारा अभी तक कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है.
उन्होंने बताया कि ग्राम पंचायत शमरोड़ के ऐतिहासिक गांव (historical village) धारों की धार का किला 5 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. इस किले को प्रथम शताब्दी में बघाट के राजा (kings of Baghat in the first century) जामवान और रानी जामवंती ने बनाया था. सदियों पुरानी इस ऐतिहासिक विरासत के जीर्णोद्धार के लिए योजनाएं तो बनीं, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं हो पाया. यदि पर्यटन की दृष्टि से इस किले को विकसित किया जाता तो धारों की धार का यह किला देशभर में अपनी अलग पहचान बना सकता था. सरकार और प्रशासनिक इच्छाशक्ति के अभाव की वजह से यह धरोहर अब मिटने की कगार पर पहुंच चुकी है.
बता दें कि धारों की धार किले के जरिए शिमला, कसौली, अर्की, चायल, सिरमौर में लगने वाली रियासतों पर नजर रखी जाती थी. इसके साथ ही लूटपाट के लिए गोरखा ने भी इस किले का इस्तेमाल किया था.
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