शिमला: हिमाचल प्रदेश में सवर्ण समाज के जोरदार विरोध के बाद हिमाचल सरकार ने सामान्य वर्ग आयोग के गठन के आदेश दे दिए. वहीं, प्रदेश में 90 फीसदी किसानों (Total Farmers in Himachal Pradesh) और बागवानों को अपने हक की आवाज उठाने के लिए कृषि आयोग (Formation of Agriculture Commission in Himachal Pradesh) जैसा मंच नहीं मिल पाया है. पांच साल पहले हिमाचल हाईकोर्ट ने भी कृषि आयोग के गठन का आदेश (Why there is no Agriculture Commission in Himachal) दिया था, लेकिन सरकार ने महज कागजी कार्रवाई के अलावा धरातल पर कुछ नहीं किया है.
जनवरी 2019 में हिमाचल सरकार ने किसान यूनियन के नेताओं के साथ बैठक में कृषि आयोग गठित करने का भरोसा दिया था, लेकिन यह भरोसा अभी भी पूरा नहीं हुआ है. हिमाचल प्रदेश किसान सभा ने सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए सवाल किया है कि प्रदेश की 90 फीसदी आबादी खेती और बागवानी पर निर्भर है. ऐसे में किसान आयोग अथवा कृषि आयोग का गठन ना करना सरकार की उपेक्षापूर्ण नीति को दर्शाता है.
उल्लेखनीय है कि मार्च 2016 में हिमाचल हाईकोर्ट ने किसानों की समस्याओं पर एक मामले की सुनवाई के दौरान सरकार को कृषि आयोग गठित करने का आदेश दिया था. 2 मार्च 2016 को यह आदेश दिया गया था. उसके बाद तत्कालीन वीरभद्र सरकार ने किसान आयोग के गठन की प्रक्रिया शुरू करने की बात कही थी. तब राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार प्रक्रिया शुरू की थी.
आयोग की कमान कृषि विशेषज्ञ, कृषि वैज्ञानिक, नौकरशाह अथवा किसी अन्य को सौंपने के विकल्पों पर भी विचार हुआ था. परंतु अभी तक कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आए हैं. हिमाचल में किसानों की बहुत सी समस्याएं हैं. यहां छोटे और सीमांत किसान हैं. कृषि जोत कम है. इसके अलावा कुछ फसलों के एमएसपी का भी मुद्दा है. साथ ही बंदर और जंगली जानवरों द्वारा फसल को नुकसान पहुंचाए जाने की समस्या है.
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इन मुद्दों पर किसान आंदोलन (Farmer Protest in Himachal) भी करते रहे हैं. हिमाचल में किसान सभा स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग (Demand to implement the recommendations of Swaminathan Commission) करती आई है. इसी मसले पर पांच साल पहले हाईकोर्ट में सुनवाई हुई थी तब हाईकोर्ट ने छोटे व साधनहीन किसानों की दशा सुधारने के लिए राज्य सरकार को कई आदेश दिए थे. हाईकोर्ट ने सरकार को किसानों को पचास हजार रुपये तक के लोन माफ करने की योजना बनाने के आदेश जारी किए थे.
उस समय मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर की खंडपीठ ने की थी. अदालत ने राज्य सरकार को किसानों की दशा सुधारने के लिए स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के आदेश भी दिए थे. साथ ही राज्य स्तर पर किसान आयोग गठित करने के लिए भी हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव को आदेश दिए.
अदालती आदेश के अनुसार आयोग में किसान प्रतिनिधि भी शामिल होने चाहिए. उस समय हाईकोर्ट ने इस बात पर भी नाराजगी जताई थी कि किसानों की फसलों की सुरक्षा के लिए सरकार ने ठोस कदम नहीं उठाए गए. आवारा पशु फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं. यदि सरकार ने गंभीरता दिखाई होती और आवारा पशुओं की समस्या से निपटने के लिए कोई नीति बनाई होती तो किसान खेती छोड़ने पर मजबूर न होते. अदालत ने टिप्पणी की और दुख जताया कि सभी देशवासियों का पेट भरने वाले किसान नीतियों के अभाव में खुदकुशी कर रहे हैं.
वीरभद्र सरकार के समय किसान आयोग के गठन की हलचल जरूर हुई, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं हुआ. बाद में दिसंबर 2018 में जयराम ठाकुर के नेतृत्व में भाजपा सरकार सत्ता में आई. जनवरी 2019 में सरकार ने किसान यूनियन के साथ बैठक में भरोसा दिलाया कि हिमाचल में कृषि आयोग का गठन होगा. उस समय राज्य सरकार के कृषि मंत्री डॉ. रामलाल मारकंडा थे.
हैरत की बात है कि तब भी 29 साल में पहली बार सरकार की किसान यूनियन के साथ बैठक हुई थी. तब किसान यूनियन ने आयोग के गठन (farmers commission in Himachal) की मांग की. मंत्री ने भरोसा दिलाया था कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के साथ मिलकर इस मसले पर बात की जाएगी, लेकिन दो साल में कोई प्रगति नहीं हुई. हिमाचल प्रदेश राज्य किसान सभा के अध्यक्ष डॉ. केएस तंवर का कहना है कि प्रदेश में किसानों और बागवानों की विभिन्न समस्याओं के समाधान को आयोग का गठन जरूरी है.
वहीं, राज्य सरकार के कृषि मंत्री वीरेंद्र कंवर का कहना है कि हिमाचल सरकार ने किसानों के हित के लिए अनेक कदम उठाए हैं. धान खरीद केंद्रों की शुरुआत की गई है. किसानों को उनकी उपज का बेहतर दाम देना सुनिश्चित किया गया है. हिमाचल में पारंपरिक फसलों को बढ़ावा दिया जा रहा है. जहां तक कृषि आयोग के गठन (When will Agriculture Commission be constituted in Himachal) का सवाल है राज्य सरकार इसके विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करके किसानों के हित में फैसला लेगी.
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