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देश के बड़े हॉस्पिटल्स का मुकाबला कर रहा IGMC, अस्पताल में हार्ट ओपन सर्जरी का सक्सेस रेट भी ज्यादा

आईजीएमसी के कार्डियोथोरेसिक और वैस्कुलर सर्जरी (सीटीवीएस) विभाग की बात करें तो यहां 1 सितंबर 2020 से 29 सितंबर 2021 तक 105 ओपन हार्ट सर्जरी हुई है. यहां होने वाली ओपन सर्जरी का सक्सेस रेट करीब 98 फीसदी है. 12 दिसंबर 2005 को वीरभद्र सिंह के शासनकाल में आईजीएमसी अस्पताल में ओपन हार्ट सर्जरी के लिए इस विभाग की स्थापना की गई थी.

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फोटो.
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Published : Sep 29, 2021, 7:46 PM IST

शिमला: दिल की बीमारी इन दिनों आम हो गई है, लेकिन इस बीमारी का खर्च काफी महंगा है. लोग अपने इलाज के लिए देश के नामी गिरामी अस्पतालों का रुख करते हैं. वहीं, हिमाचल का इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज यानी आईजीएमसी प्राइवेट अस्पतालों के मुकाबले काफी कम खर्च में लोगों का इलाज कर रहा है. इतना ही नहीं यहां होने वाली ओपन सर्जरी का सक्सेस रेट करीब 98 फीसदी है.

आईजीएमसी के कार्डियोथोरेसिक और वैस्कुलर सर्जरी (सीटीवीएस) विभाग की बात करें तो यहां 1 सितंबर 2020 से 29 सितंबर 2021 तक 105 ओपन हार्ट सर्जरी हुई है. जबकि, कोरोना से पहले यह आंकड़ा 250 से 300 तक था. वहीं, जर्नल सर्जरी जिसमें नसों को खोलना व उसे ठीक करना है, ऐसे 240 ऑपरेशन हुए हैं. कोरोना से पहले अस्पताल में 350 से 400 लोगों की जर्नल सर्जरी हुई थी. इन ऑपरेशन की सफलता दर 97 से 98 फीसदी है.

वीडियो.

आईजीएमसी सीटीवीएस विभाग के एचओडी डॉ. सुधीर मेहता ने का कहना है कि ओपीडी में रोजाना 30 से 40 मरीज आ रहे हैं, जिनका जांच के बाद इलाज किया जा रहा है और जरूरत पड़ने पर ऑपरेशन भी किया जा रहा है. डॉक्टर मेहता बताते हैं कि अस्पताल में वैसे तो सभी ऑपरेशन किए जा रहे हैं, लेकिन कई बार छोटे बच्चे आ जाते हैं. जिनका ऑपरेशन करना यहां संभव नहीं हो पाता. इसलिए उन्हें फौरन पीजीआई चंडीगढ़ भेजना पड़ता है. आईजीएमसी में दो तीन मामले ऐसे आते हैं, जिनमें तुरंत ऑपरेशन करना पड़ता है और ऑपरेशन सफल भी रहा है.

डॉ. मेहता बताते हैं कि वर्तमान में बदलती लाइफ स्टाइल भी हार्ट की बीमारियों का कारण बनता जा रही है. पैदल ना चलने के कारण भी बहुत सी बीमारियां पैदा हो रही हैं जिसमें हार्ट की बीमारी मुख्य है. आईजीएमसी में प्रतिवर्ष 300 के लगभग मरीजों का सफल बायपास ओपन हार्ट सर्जरी सर्जरी हो रही है. इसका सफल रेट 98 फीसदी है.

उनका कहना था कि यदि मरीज समय पर अस्पताल पहुंच जाए तो उसे बचा लिया जाता है, लेकिन कई बार देर से अस्पताल पहुंचने के कारण मरीज को नहीं बचाया जा सकता है. दिल के मरीजों के लिए आईजीएमसी में हार्ट अटैक के समय लगने वाला इंजेक्शन नि:शुल्क दिया जाता है. इस इंजेक्शन की कीमत बाजार में 45 हजार रुपये हैं. अब तक 600 लोगों को आईजीएमसी में यह इंजेक्शन दिया जा चुका है

गौरतलब है कि 12 दिसंबर 2005 को वीरभद्र सिंह के शासनकाल में आईजीएमसी अस्पताल में ओपन हार्ट सर्जरी के लिए कार्डियोथोरेसिक एंड वैस्कुलर सर्जरी (सीटीवीएस) डिपार्टमेंट स्थापित किया गया. डिपार्टमेंट के प्रमुख डॉ. रजनीश पठानिया रहे. शुरू में एम्स से डॉ. एम वेणुगोपाल के नेतृत्व में आई टीम ने ऑपरेशन किए. कुछ ऑपरेशन फोर्टिस अस्पताल मोहाली के मशहूर सर्जन डॉ. टीएस महंत ने भी किए. बाद में विभाग की कमान डॉ. रजनीश पठानिया ने संभाली और इस मिशन को लगातार सफलता के मुकाम तक पहुंचाया.

हिमाचल प्रदेश में सीटीवीएस डिपार्टमेंट में सुपर स्पेशलिटी डिग्री मास्टर ऑफ चिरर्जिकल (एमसीएच) की डिग्री शुरू हुई है. इस डिग्री के बाद डॉक्टर विशेषज्ञ हार्ट सर्जन बनता है. इससे प्रदेश को अब हार्ट सर्जन के लिए बाहरी राज्यों का मुंह नहीं ताकना पड़ेगा. इस सुविधा के बाद आईजीएमसी अस्पताल नार्थ इंडिया का पहला ऐसा सरकारी अस्पताल बन गया है, जहां एक साथ हार्ट सर्जरी और एमसीएच की डिग्री का कोर्स चलाया जा रहा है. टांडा मेडिकल कॉलेज में भी हार्ट सर्जरी के शुरू करने डॉ. पठानिया का बड़ा योगदान रहा है.

ये भी पढ़ें: नागपुर विश्वविद्यालय के विद्यार्थी पढ़ेंगे पवन चौहान का यात्रा संस्मरण, इस राज्य के विद्यार्थी भी कर रहे अध्ययन

शिमला: दिल की बीमारी इन दिनों आम हो गई है, लेकिन इस बीमारी का खर्च काफी महंगा है. लोग अपने इलाज के लिए देश के नामी गिरामी अस्पतालों का रुख करते हैं. वहीं, हिमाचल का इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज यानी आईजीएमसी प्राइवेट अस्पतालों के मुकाबले काफी कम खर्च में लोगों का इलाज कर रहा है. इतना ही नहीं यहां होने वाली ओपन सर्जरी का सक्सेस रेट करीब 98 फीसदी है.

आईजीएमसी के कार्डियोथोरेसिक और वैस्कुलर सर्जरी (सीटीवीएस) विभाग की बात करें तो यहां 1 सितंबर 2020 से 29 सितंबर 2021 तक 105 ओपन हार्ट सर्जरी हुई है. जबकि, कोरोना से पहले यह आंकड़ा 250 से 300 तक था. वहीं, जर्नल सर्जरी जिसमें नसों को खोलना व उसे ठीक करना है, ऐसे 240 ऑपरेशन हुए हैं. कोरोना से पहले अस्पताल में 350 से 400 लोगों की जर्नल सर्जरी हुई थी. इन ऑपरेशन की सफलता दर 97 से 98 फीसदी है.

वीडियो.

आईजीएमसी सीटीवीएस विभाग के एचओडी डॉ. सुधीर मेहता ने का कहना है कि ओपीडी में रोजाना 30 से 40 मरीज आ रहे हैं, जिनका जांच के बाद इलाज किया जा रहा है और जरूरत पड़ने पर ऑपरेशन भी किया जा रहा है. डॉक्टर मेहता बताते हैं कि अस्पताल में वैसे तो सभी ऑपरेशन किए जा रहे हैं, लेकिन कई बार छोटे बच्चे आ जाते हैं. जिनका ऑपरेशन करना यहां संभव नहीं हो पाता. इसलिए उन्हें फौरन पीजीआई चंडीगढ़ भेजना पड़ता है. आईजीएमसी में दो तीन मामले ऐसे आते हैं, जिनमें तुरंत ऑपरेशन करना पड़ता है और ऑपरेशन सफल भी रहा है.

डॉ. मेहता बताते हैं कि वर्तमान में बदलती लाइफ स्टाइल भी हार्ट की बीमारियों का कारण बनता जा रही है. पैदल ना चलने के कारण भी बहुत सी बीमारियां पैदा हो रही हैं जिसमें हार्ट की बीमारी मुख्य है. आईजीएमसी में प्रतिवर्ष 300 के लगभग मरीजों का सफल बायपास ओपन हार्ट सर्जरी सर्जरी हो रही है. इसका सफल रेट 98 फीसदी है.

उनका कहना था कि यदि मरीज समय पर अस्पताल पहुंच जाए तो उसे बचा लिया जाता है, लेकिन कई बार देर से अस्पताल पहुंचने के कारण मरीज को नहीं बचाया जा सकता है. दिल के मरीजों के लिए आईजीएमसी में हार्ट अटैक के समय लगने वाला इंजेक्शन नि:शुल्क दिया जाता है. इस इंजेक्शन की कीमत बाजार में 45 हजार रुपये हैं. अब तक 600 लोगों को आईजीएमसी में यह इंजेक्शन दिया जा चुका है

गौरतलब है कि 12 दिसंबर 2005 को वीरभद्र सिंह के शासनकाल में आईजीएमसी अस्पताल में ओपन हार्ट सर्जरी के लिए कार्डियोथोरेसिक एंड वैस्कुलर सर्जरी (सीटीवीएस) डिपार्टमेंट स्थापित किया गया. डिपार्टमेंट के प्रमुख डॉ. रजनीश पठानिया रहे. शुरू में एम्स से डॉ. एम वेणुगोपाल के नेतृत्व में आई टीम ने ऑपरेशन किए. कुछ ऑपरेशन फोर्टिस अस्पताल मोहाली के मशहूर सर्जन डॉ. टीएस महंत ने भी किए. बाद में विभाग की कमान डॉ. रजनीश पठानिया ने संभाली और इस मिशन को लगातार सफलता के मुकाम तक पहुंचाया.

हिमाचल प्रदेश में सीटीवीएस डिपार्टमेंट में सुपर स्पेशलिटी डिग्री मास्टर ऑफ चिरर्जिकल (एमसीएच) की डिग्री शुरू हुई है. इस डिग्री के बाद डॉक्टर विशेषज्ञ हार्ट सर्जन बनता है. इससे प्रदेश को अब हार्ट सर्जन के लिए बाहरी राज्यों का मुंह नहीं ताकना पड़ेगा. इस सुविधा के बाद आईजीएमसी अस्पताल नार्थ इंडिया का पहला ऐसा सरकारी अस्पताल बन गया है, जहां एक साथ हार्ट सर्जरी और एमसीएच की डिग्री का कोर्स चलाया जा रहा है. टांडा मेडिकल कॉलेज में भी हार्ट सर्जरी के शुरू करने डॉ. पठानिया का बड़ा योगदान रहा है.

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