पानीपत: ईटीवी भारत हरियाणा की विशेष पेशकश 'युद्ध' में हम आज बात करने जा रहे हैं उस दौर की, जब हेमू मुगलों से टक्कर लेने के लिए निकल पड़ा है, वो बिना लड़ाई किए आगरा फतेह कर चुका और दिल्ली में तार्दी बेग से भयंकर युद्ध करने के लिए तुगलकाबाद पहुंच गया है.
हेम चंद्र जो कि रेवाड़ी से ताल्लुक रखने वाला एक व्यापारी था. वो इतिहास के पन्नों पर अपना नाम और ज्यादा मोटे और अक्षरों में लिखवाने के लिए निकल चुका था. वो बंगाल से होते हुए अपनी सेना लेकर आगरा पहुंचे वाला था.
कुछ ऐसी थी हेमू की सेना
हेमू की फौज में अब 50,000 घुड़सवार, 1000 हाथी, 51 बड़ी तोपें और 50 छोटी तोपें थीं. उसकी फौज में अफगान, बिहार और उत्तर प्रदेश के राजपूत सैनिक भी थे. हेमू के आने की खबर और उसके मंसूबों का पता चलते ही उस समय आगरा का गवर्नर सिकंदर खां भाग खड़ा हुआ. वो इतना भयभीत था कि युद्ध में हेमू का सामना ही नहीं करना चाहता था. उसने रातों-रात दिल्ली की तरफ रुख कर लिया. अब आगरा के किले पर हेमू कब्जा कर चुका था.
बहरहाल वो इस सेना के साथ रत्ति भर नुकसान के बिना ग्वालियर और आगरा जीतते हुए दिल्ली के नजदीक जा पहुंचा. दिल्ली में तब अकबर का बेहद खास और मुगलों का जाना माना योद्धा तर्दी बेग गवर्नर था. वो मुगलों में बड़ा लड़ाका माना जाता था.
जब तार्दी बेग और हेमू थे आमने-सामने
7 अक्टूबर 1556 को हेमू और मुगल सेना जिसे तर्दी बेग लीड कर रहा था वो दिल्ली के तुगलकाबाद इलाके में जा कर मिलीं. मुगलों ने अपनी रणनीति के हिसाब से मोर्चा ले लिया. युद्ध में सेना अपनी जिम्मेदारी के हिसाब से डब गई. उसमें लेफ्ट विंग थी, राइट विंग थी, बीच में खुद लीडर यानी तर्दी था और उसके ठीक आगे ढ़ाल की तरह विशेष प्रशिक्षित और सबसे खतरनाक माने जाने वाले घुड़सवारों का दस्ता होता था. जिसे हरावल कहा जाता था.
हेमू अपने सपने और रिकॉर्ड को तोड़ना नहीं चाहता था इसलिए उसने पहल ना करते हुए अपने संयम को बनाए रखा. इस लड़ाई में तर्दी बेग भी हेमू के पराक्रम को जानता था, फिर भी वो से हारना नहीं चाहता था इसलिए उसने समय का पूरा अनुमान लगाया. उसने सुबह करीब 8 बजे हेमू की सेना पर आक्रमण करने का आदेश दिया.
आखिर युद्ध में हेमू घोड़े पर क्यों नहीं बैठता था
मुगलों की ताकत उनके घुड़सवारों में थी. उसके घुड़सवार दुशमनों को चारों तरफ से घेर कर बड़े ही शातिर ढ़ंग से धीरे कमजोर करते थे, लेकिन हेमू की ताकत उसके हाथियों में थी. वो हाथियों का इस्तेमाल कर दुश्मन की सेना में भगदड़ मचा देता था. हेमू खुद हाथी पर बैठता था, कुछ इतिहास कारों का कहना है कि हेमू को शायद घुड़ सवारी आती भी नहीं थी. वो युद्ध में शामिल होकर खुद लीड करता था, लेकिन वो मैदान में उतरता नहीं था. वो हाथी के होद से ही निर्देश देता था.
युद्ध शुरू हुए कुछ घंटे ही हुए थे कि हेमू की राइट विंग पर मुगलों की लेफ्ट विंग ने बूरी तरह से आक्रमण कर कमजोर कर दिया. जब हेमू की सेना का पूरा ध्यान एक तरफ था तब तर्दी बेग ने दूसरी चाल चली उसने अपनी लेफ्ट विंग को आदेश दिया कि वो हेमू की राइट विंग को भी घेर ले.
लग रहा था हेमू हार जाएगा मगर...
जम कर कत्ल हुए हेमू की आधे से ज्यादा हाथियों को कब्जा कर लिया गया. उसका राइट विंग सेनापति भी मारा गया. मुगलों ने सोचा की वो जीत गए. उनमें इतना विश्वास जाग गया कि मुगलों ने हेमू के कैंपों को लूटना शूरू कर दिया, लेकिन हेमू इतना भी कमजोर नहीं था. वो दिमाग को शांत रखते हुए कई युद्धों की रणनीति से काफी अनुभव ले चुका था.
इस लूट पाट में उसने सेना को पीछे हटने और मुगलों की सेना दोनों विंग में दूरी बढ़ाने के आदेश दिए. हेमू के सेनापति ऐसा करने में कामयबा हो गए. मुगलों का ध्यान युद्ध में अपने साथियों से ज्यादा लूट-पाट करने पर भटक गया. लिहाजा हेमू के सिपाहियों ने मौके का फायदा उठाया और मुगलों के आधी सेना काट दी गई, हाथियों से कुचल दी गई.
जीतते-जीतते हार गया तार्दी बेग
अब देर हो चुकी थी. तार्दी बेग की राइट विंग काफी दूर थी. वो उसकी मद्द करने वहां तक नहीं पहूंच सकती थी. तार्दी बेग ने मैदान से भागना ही ठीक समझा. इस युद्ध में भी हेमू उर्फ हेमचंद्र मौर्य की जीत हुई. हेमू आगरा और ग्वालियर पहले ही जीत चुका था. अब उसकी सीमा सतलुज भी थी. इससे बड़े सेंटर अब हिंदोस्तां में बचे नहीं थे.
मुगल छिपने पर मजबूर थे. उनसे संभल भी छिन चुका था. बैरम खां और अकबर कलानौर में थें. हेमू के डर से भगौड़े गवर्नर जंगलों में या पंजाब के अलग-2 हिस्सों में अपनी जान बचाए फिर रहे थे. हेम चंद्र दिल्ली पर कब्जा कर चुका था. उसने विक्रमादित्य की उपाधि हासिल कर ली.
उस काल का अकेला हिंदू राजा बना हेमू
ये था हेम चंद्र मौर्य, जो इकलौता दिल्ली का हिंदू राजा बना, जिसने अकेले अपनी दम पर पूरे हिंदुस्तान में अपना लोहा मनवाया, हालांकि कुछ इतिहासकारों का ये मत है कि हेमचंद्र मौर्य आदिल की सरपरस्ती में ही दिल्ली की गद्दी पर बैठा था, लेकिन ये सच था कि उसने मुगलों की तख्त पलट दिया. वो हेम चंद्र विक्रमादित्य कहलाया.
वो दिल्ली तो जीत चुका था, लेकिन ये उसका युद्ध नहीं था. उसे असली लड़ाई तो अभी लड़नी थी, पानीपत की दूसरी लड़ाई... ईटीवी भारत का विशेष कार्यक्रम 'युद्ध' की इस एपिसोड में बस इतना ही... अगली कड़ी में हम आपको लेकर चलेंगे पानीपत के मैदान में जहां बाबर और इब्राहिम लोदी की लड़ाई के 30 साल बाद फिर दो सेनाएं आमन सामने थी और फैसला होना था भारत के आने वाले कल का.
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