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देवभूमि की राजनीति में 'ठाकुरों' का दबदबा, अब तक पांच सीएम और वर्तमान में हर दूसरा विधायक राजपूत - हिमाचल

2017 के विधानसभा चुनावों में 48 सामान्य सीटों पर 33 विधायक राजपूत चुन कर आए. भाजपा के 18, कांग्रेस के 12, दो आजाद उम्मीदवार प्रकाश सिंह राणा और होशियार सिंह, सीपीआईएम के राकेश सिंघा विधानसभा पहुंचे. सदन में राजपूत विधायकों की संख्या करीब 50 फीसदी है.

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Published : Mar 26, 2019, 9:49 PM IST

शिमला: हिमाचल की राजनीति में राजपूतों का दबदबा रहा है. भारतीय राजनीति में टिकट आवंटन के समय समय पूरे जातीय समीकरण टेबल पर रखे जाते हैं. जातीय समीकरण के आधार पर टिकट दिया जाता है. जिस जाति का वोट बैंक अधिक होगा उस क्षेत्र से उसी जाति के उम्मीदवार को टिकट मिलने की संभावना ज्यादा रहती है.रिसायत काल खत्म होने के बाद रजवाड़ों ने सियासत करना नहीं छोड़ी. हिमाचल में राजा वीरभद्र सिंह, कुल्लू से महेश्वर सिंह का परिवार, चंबा से आशा कुमार, मध्यप्रदेश में सिंधिया और दिग्विजय सिंह का परिवार, राजस्थान में बसुंधरा राजे, छतीसगढ़ में टीएस सिंहदेव, पंजाब में कैप्टन अमरेंद्र सिंह सब राजपरिवारों से आते हैं. इनकी सत्ता के गलियारों में आज भी तूती बोलती है.

बात अगर हिमाचल प्रदेश की करें तो यहां के 12 जिलों में 68 विधानसभा क्षेत्र और 4 संसदीय क्षेत्र हैं. 17 सीटें एससी, 3 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. 48 सीटें ओपन कैटेगिरी में आती हैं. 2017 के विधानसभा चुनावों में 48 सामान्य सीटों पर 33 विधायक राजपूत चुन कर आए. भाजपा के 18, कांग्रेस के 12, दो आजाद उम्मीदवार प्रकाश सिंह राणा और होशियार सिंह, सीपीआईएम के राकेश सिंघा विधानसभा पहुंचे. सदन में राजपूत विधायकों की संख्या करीब 50 फीसदी है. प्रदेश कैबिनेट में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर सहित छह राजपूत मंत्री हैं.

2011 की जनगणना के अनुसार हिमाचल की आबादी 68 लाख 56 हजार 509 है. शेड्यूल कास्ट की आबादी 17 लाख 29 हजार 252( 25.22 प्रतिशत) एसटी 3 लाख 92 हजार 126 (5. 71 प्रतिशत) ओबीसी 9 लाख 27 हजार 452 (13.52 प्रतिशत) स्वर्ण 50.72 प्रतिशत और अल्पसंख्यक 4.83 प्रतिशत हैं. स्वर्ण जातियों में राजपूत 32.72 प्रतिशत, ब्राह्मण 18 प्रतिशत हैं.प्रदेश में अब तक छह सीएम हुए हैं. पांच सीएम वाईएस परमार, रामलाल ठाकुर, वीरभद्र सिंह, प्रेम कुमार धूमल, जयराम ठाकुर राजपूत समुदाय से आते हैं. वीरभद्र सिंह छह बार और प्रेम कुमार धूमल, रामलाल ठाकुर दो-दो बार मुख्यमंत्री रहे.राजपूत समुदाय का प्रभाव मंडी, शिमला, कुल्ली और कांगड़ा के कई क्षेत्रों में है. कांग्रेस-बीजेपी के प्रदेश अध्यक्षों की बात करें तो बीजेपी के अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप राठौर राजपूत समुदाय से हैं.

जनसंख्या को देखते हुए राजपूत और एससी समुदाय के बाद ब्रह्मण समुदाय भी हिमाचल की राजनीति में किंगमेकर की भूमिका हैं. ब्राह्रण समाज ने प्रदेश को कई कद्दवार नेता दिए. कांगड़ा से शांता कुमार दो प्रदेश के सीएम बने. पंडित सुखराम वीरभद्र के सियासी खेल के चलते सीएम बनते-बनते रह गए. इसके अलावा केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा भी ब्राह्मण समाज से हैं.देश की राजनीतिक पार्टियां जातिवाद से ऊपर उठ कर काम करने का दावा करती हैं. सच्चाई ये भी है कि भारतीय राजनीति में जातिवाद की जड़े गहरी हैं. जातिगत समीकरणों को ही आधार बनाकर सियासत की पिच पर राजनीतिक पार्टियां अपनी पारी खेलती रही हैं. जातिवाद के गणित को ध्यान में रखकर टिकट बांटे जाते हैं.

इस बार चर्चा जोर पकड़ रही थी कि गद्दी समुदाय के किसी भी व्यक्ति को आज तक लोकसभा नहीं भेजा गया. हिमाचल की कांगड़ा सीट पर गद्दी समुदाय की नराजगी को देखते हुए बीजेपी ने किशन कपूर को टिकट दिया. शिमला सीट से बीजेपी ने तीसरी बार कश्यप नाम के उम्मीदवार को टिकट दिया. शिमला-सोलन-सिरमौर में कश्यप बोट बैंक सर्वाधिक है.

शिमला: हिमाचल की राजनीति में राजपूतों का दबदबा रहा है. भारतीय राजनीति में टिकट आवंटन के समय समय पूरे जातीय समीकरण टेबल पर रखे जाते हैं. जातीय समीकरण के आधार पर टिकट दिया जाता है. जिस जाति का वोट बैंक अधिक होगा उस क्षेत्र से उसी जाति के उम्मीदवार को टिकट मिलने की संभावना ज्यादा रहती है.रिसायत काल खत्म होने के बाद रजवाड़ों ने सियासत करना नहीं छोड़ी. हिमाचल में राजा वीरभद्र सिंह, कुल्लू से महेश्वर सिंह का परिवार, चंबा से आशा कुमार, मध्यप्रदेश में सिंधिया और दिग्विजय सिंह का परिवार, राजस्थान में बसुंधरा राजे, छतीसगढ़ में टीएस सिंहदेव, पंजाब में कैप्टन अमरेंद्र सिंह सब राजपरिवारों से आते हैं. इनकी सत्ता के गलियारों में आज भी तूती बोलती है.

बात अगर हिमाचल प्रदेश की करें तो यहां के 12 जिलों में 68 विधानसभा क्षेत्र और 4 संसदीय क्षेत्र हैं. 17 सीटें एससी, 3 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. 48 सीटें ओपन कैटेगिरी में आती हैं. 2017 के विधानसभा चुनावों में 48 सामान्य सीटों पर 33 विधायक राजपूत चुन कर आए. भाजपा के 18, कांग्रेस के 12, दो आजाद उम्मीदवार प्रकाश सिंह राणा और होशियार सिंह, सीपीआईएम के राकेश सिंघा विधानसभा पहुंचे. सदन में राजपूत विधायकों की संख्या करीब 50 फीसदी है. प्रदेश कैबिनेट में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर सहित छह राजपूत मंत्री हैं.

2011 की जनगणना के अनुसार हिमाचल की आबादी 68 लाख 56 हजार 509 है. शेड्यूल कास्ट की आबादी 17 लाख 29 हजार 252( 25.22 प्रतिशत) एसटी 3 लाख 92 हजार 126 (5. 71 प्रतिशत) ओबीसी 9 लाख 27 हजार 452 (13.52 प्रतिशत) स्वर्ण 50.72 प्रतिशत और अल्पसंख्यक 4.83 प्रतिशत हैं. स्वर्ण जातियों में राजपूत 32.72 प्रतिशत, ब्राह्मण 18 प्रतिशत हैं.प्रदेश में अब तक छह सीएम हुए हैं. पांच सीएम वाईएस परमार, रामलाल ठाकुर, वीरभद्र सिंह, प्रेम कुमार धूमल, जयराम ठाकुर राजपूत समुदाय से आते हैं. वीरभद्र सिंह छह बार और प्रेम कुमार धूमल, रामलाल ठाकुर दो-दो बार मुख्यमंत्री रहे.राजपूत समुदाय का प्रभाव मंडी, शिमला, कुल्ली और कांगड़ा के कई क्षेत्रों में है. कांग्रेस-बीजेपी के प्रदेश अध्यक्षों की बात करें तो बीजेपी के अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप राठौर राजपूत समुदाय से हैं.

जनसंख्या को देखते हुए राजपूत और एससी समुदाय के बाद ब्रह्मण समुदाय भी हिमाचल की राजनीति में किंगमेकर की भूमिका हैं. ब्राह्रण समाज ने प्रदेश को कई कद्दवार नेता दिए. कांगड़ा से शांता कुमार दो प्रदेश के सीएम बने. पंडित सुखराम वीरभद्र के सियासी खेल के चलते सीएम बनते-बनते रह गए. इसके अलावा केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा भी ब्राह्मण समाज से हैं.देश की राजनीतिक पार्टियां जातिवाद से ऊपर उठ कर काम करने का दावा करती हैं. सच्चाई ये भी है कि भारतीय राजनीति में जातिवाद की जड़े गहरी हैं. जातिगत समीकरणों को ही आधार बनाकर सियासत की पिच पर राजनीतिक पार्टियां अपनी पारी खेलती रही हैं. जातिवाद के गणित को ध्यान में रखकर टिकट बांटे जाते हैं.

इस बार चर्चा जोर पकड़ रही थी कि गद्दी समुदाय के किसी भी व्यक्ति को आज तक लोकसभा नहीं भेजा गया. हिमाचल की कांगड़ा सीट पर गद्दी समुदाय की नराजगी को देखते हुए बीजेपी ने किशन कपूर को टिकट दिया. शिमला सीट से बीजेपी ने तीसरी बार कश्यप नाम के उम्मीदवार को टिकट दिया. शिमला-सोलन-सिरमौर में कश्यप बोट बैंक सर्वाधिक है.

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