शिमला: इस्लाम धर्म में रमजान के महीने को बेहद पाक (पवित्र) माना जाता है. मान्यता के अनुसार रमजान महीना अल्लाह की इबादत के लिए होता है. इस महीने में रोजे रखे जाते हैं, पांच वक्त की नमाज अदा की जाती है. वहीं, वैश्विक महामारी कोरोना के खिलाफ जंग में मुस्लिम धर्मगुरु भी कंधा से कंधा मिलाकर चल रहे हैं. उन्होंने मुसलमानों से रमजान के महीने में लॉकडाउन का पूरी शिद्दत के साथ पालन करने की अपील की है और हिदायत दी है कि पांचों वक्त की नमाज के साथ रात की विशेष नमाज तरावीह को भी घरों में ही अदा करें.
धर्मगुरुओं ने इस दौरान रोजा इफ्तार दावत जैसे सार्वजनिक मेल-मिलापों वाले कार्यक्रम और रात में घरों से बाहर निकलने पर एहतियात बरतने की अपील की है. उन्होंने अधिक से अधिक समय कुरान पढ़ने और अल्लाह की इबादत करें. रमजान का पवित्र महीना 25 अप्रैल से शुरू होगा. लॉकडाउन की वजह से राजधानी शिमला की मस्जिदें वीरान पड़ी हुई हैं. इस बार रमजान के महीने में मस्जिदों में तो रोजा इफ्तार होगा और न ही तरावीह की नमाज पढ़ी जाएंगी.
घरों में रहकर देश की सलामती के लिए करें दुआएं
बालूगंज मदरसा के प्रमुख मोहम्मद अफजाल ने कहा कि आज के समय मे देश और दुनिया कोरोना के संक्रमण से जूझ रहा है और हम भी उसका मुकाबला कर रहे हैं. मुसलमानों पर नमाज-रोजा फर्ज है और हर मुसलमान उसे बखूबी निभाता भी है. मुस्लिम समाज से अपील है कि ऐसे समय में रोजा घर पर रखें और नमाज भी घर पर ही रहकर पढ़ें. उन्होंने कहा कि अल्लाह को हालांकि मस्जिदों में इबादत पसंद है लेकिन कोरोना महामारी को देखते हुए लोग इकट्ठा न होकर घरों में ही इबादत करें. साथ ही, इस महामारी से देशवासियों और इसके खिलाफ जंग लड़ रहे डॉक्टर, नर्स, अस्पताल के स्टॉफ, पुलिस और सरकार की हिफाजत के लिए दुआएं करें.
महामारी से लड़ने में करें मदद
आइजीएमसी के चिकित्सा अधिकारी डॉ. साद रिजवी ने कहा कि इस बार रमजान का पवित्र महीना ऐसे समय मे आ रहा है जब पूरी दुनिया संकट के दौर से गुजर रही है. कोरोना के चलते आज लोग घरों में कैद हैं, ऐसे में रमजान के महीने में लोगों को पूरा ऐहतियात बरतने की जरूरत है. लोग घरों में रहकर इबादत करें और इस बीमारी से लड़ने में सरकार और प्रशासन की मदद करें.
रमजान में होने वाली प्रमुख रस्में
इस्लाम की रवायत के मुताबिक रमजान के महीनें में सहरी और इफ्तार ये दो अहम रस्में होती है. रमजान के दिनों में सुबह के समय में जब भोजन किया जाता है तो उसे सहरी कहते हैं. सहरी दिन में सूरज निकलने से पहले की जाती है. कहा जाता है कि हजरत मोहम्मद साहब ने सेहरी को सुन्नत बताया है. इसी तरह दिनभर रोजा रखने के बाद शाम के समय जब सूरज डूब जाता है तब रोजा खोला जाता है. इसे इफ्तार कहा जाता है.
रमजान महीनों के तीन हिस्से
रमजान माह के तीस दिनों को तीन हिस्सों में विभाजित किया गया है. पहला हिस्सा रहमत का होता है, दूसरा हिस्सा मगफिरत का और तीसरा हिस्सा दोजख से आजादी दिलाने का होता है. इस महीने रोजेदार को झूठ नहीं बोलना चाहिए.