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Dussehra 2021: शिमला के जाखू मंदिर में विजयदशमी को लेकर तैयारियां पूरी

शिमला के ऐतिहासिक जाखू मंदिर में विजय दशमी के पर्व को लेकर तैयारियां पूरी हो गई हैं. मान्यता है कि यहां प्रचीन काल से ही दशहरा मनाया जाता है और रावण के पुतले जलाए जाते हैं और इस बार भी परंपरा के तहत पुतले जलाए जाएंगे. बता दें कि कोरोना नियमों का सख्ती से पालन करते हुए मंदिर आने वाले श्रद्धालु मंदिर के कपाट से ही बजरंगबली के दर्शन कर सकते हैं और किसी को प्रसाद चढ़ाने की भी अनुमति नहीं है.

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फोटो.
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Published : Oct 14, 2021, 10:08 PM IST

शिमला: हिमाचल की राजधानी शिमला का जाखू मंदिर बहुत मशहूर है. ये मंदिर हनुमान का है. ये मंदिर इस वजह से भी ज्यादा खास है क्योंकि इसका कनेक्शन त्रेतायुग से जुड़ा हुआ है. जाखू मंदिर का त्रेतायुग से जुड़ा कनेक्शन तो हम आपको आगे बताएंगे, लेकिन इतना जरूर बता दें कि इस मंदिर को देखने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं. जाखू मंदिर जाखू पहाड़ी पर स्थित है. इसका नाम यक्ष ऋषि के नाम पर पड़ा. यक्ष से इसका नाम याक, याक से याकू और याकू से जाखू तक इसका नाम बदलता गया.

मान्यता है कि जब लक्ष्मण राम-रावण युद्ध के दौरान मूर्छित हो गए थे तब हनुमान ही उनके प्राणों की रक्षा के लिए संजीवनी बूटी लाए थे. इस संजीवनी बूटी को लाने के लिए वो हिमालय की ओर आकाश से जा रहे थे. तभी हनुमान की नजर यक्ष ऋषि पर पड़ी. यक्ष ऋषि से संजीवनी बूटी के बारी में जानकारी ली और विश्राम किया. इसके बाद उन्होंने यक्ष ऋषि को वचन दिया था कि वो लौटते वक्त उनसे जरूर मिलेंगे. रास्ते में हनुमान जी को कालनेमि नामक राशक्ष का सामना करना पड़ा.

इस राक्षस को मात देने के बाद समय के अभाव के चलते हनुमान अयोध्या की ओर छोटे मार्ग से चले गए. हनुमान जब यक्ष ऋषि से मिलने नहीं पहुंते तो वो व्याकुल हो गए. ऋषि को इतना व्याकुल देख हनुमान ने उन्हें दर्शन दिए. जिसके बाद यक्ष ऋषि ने यहीं पर हनुमान जी का मंदिर बनवाया.

वीडियो.

वहीं, शिमला के ऐतिहासिक जाखू मंदिर में विजय दशमी के पर्व को लेकर तैयारियां पूरी हो गई हैं. जाखू में आजादी से पहले समय से ही विजय दशमी पर रावण, मेघनाथ, कुम्भकर्ण के पुतले जलाए जाते हैं. इस संबंध में जाखू मंदिर के पुजारी बीपी शर्मा ने बताया कि वह 30 साल से यहां पूजा कर रहे हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां प्रचीन काल से ही दशहरा मनाया जाता है और रावण के पुतले जलाए जाते हैं और इस बार भी परंपरा के तहत पुतले जलाए जाएंगे.

बता दें कि कोरोना नियमों का सख्ती से पालन करते हुए मंदिर आने वाले श्रद्धालु मंदिर के कपाट से ही बजरंगबली के दर्शन कर सकते हैं और किसी को प्रसाद चढ़ाने की भी अनुमति नहीं है. बात यदि रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाथ के पुतलों की करें तो ये पुतले स्थानीय लोगों द्वारा ही बनाये जा रहे हैं इन पुतलों की ऊंचाई करीबन 30 फुट है.

ये भी पढ़ें- वीरभद्र सिंह के बाद कांग्रेसी नेताओं में लगी बड़ा नेता बनने की होड़: सीएम

शिमला: हिमाचल की राजधानी शिमला का जाखू मंदिर बहुत मशहूर है. ये मंदिर हनुमान का है. ये मंदिर इस वजह से भी ज्यादा खास है क्योंकि इसका कनेक्शन त्रेतायुग से जुड़ा हुआ है. जाखू मंदिर का त्रेतायुग से जुड़ा कनेक्शन तो हम आपको आगे बताएंगे, लेकिन इतना जरूर बता दें कि इस मंदिर को देखने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं. जाखू मंदिर जाखू पहाड़ी पर स्थित है. इसका नाम यक्ष ऋषि के नाम पर पड़ा. यक्ष से इसका नाम याक, याक से याकू और याकू से जाखू तक इसका नाम बदलता गया.

मान्यता है कि जब लक्ष्मण राम-रावण युद्ध के दौरान मूर्छित हो गए थे तब हनुमान ही उनके प्राणों की रक्षा के लिए संजीवनी बूटी लाए थे. इस संजीवनी बूटी को लाने के लिए वो हिमालय की ओर आकाश से जा रहे थे. तभी हनुमान की नजर यक्ष ऋषि पर पड़ी. यक्ष ऋषि से संजीवनी बूटी के बारी में जानकारी ली और विश्राम किया. इसके बाद उन्होंने यक्ष ऋषि को वचन दिया था कि वो लौटते वक्त उनसे जरूर मिलेंगे. रास्ते में हनुमान जी को कालनेमि नामक राशक्ष का सामना करना पड़ा.

इस राक्षस को मात देने के बाद समय के अभाव के चलते हनुमान अयोध्या की ओर छोटे मार्ग से चले गए. हनुमान जब यक्ष ऋषि से मिलने नहीं पहुंते तो वो व्याकुल हो गए. ऋषि को इतना व्याकुल देख हनुमान ने उन्हें दर्शन दिए. जिसके बाद यक्ष ऋषि ने यहीं पर हनुमान जी का मंदिर बनवाया.

वीडियो.

वहीं, शिमला के ऐतिहासिक जाखू मंदिर में विजय दशमी के पर्व को लेकर तैयारियां पूरी हो गई हैं. जाखू में आजादी से पहले समय से ही विजय दशमी पर रावण, मेघनाथ, कुम्भकर्ण के पुतले जलाए जाते हैं. इस संबंध में जाखू मंदिर के पुजारी बीपी शर्मा ने बताया कि वह 30 साल से यहां पूजा कर रहे हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां प्रचीन काल से ही दशहरा मनाया जाता है और रावण के पुतले जलाए जाते हैं और इस बार भी परंपरा के तहत पुतले जलाए जाएंगे.

बता दें कि कोरोना नियमों का सख्ती से पालन करते हुए मंदिर आने वाले श्रद्धालु मंदिर के कपाट से ही बजरंगबली के दर्शन कर सकते हैं और किसी को प्रसाद चढ़ाने की भी अनुमति नहीं है. बात यदि रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाथ के पुतलों की करें तो ये पुतले स्थानीय लोगों द्वारा ही बनाये जा रहे हैं इन पुतलों की ऊंचाई करीबन 30 फुट है.

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