शिमला: हिमाचल में इस बार विधानसभा चुनाव बहुत रोचक होने वाले (Himachal Assembly Election 2022) हैं. एक दशक पहले हिमाचल की राजनीति में जिन चेहरों की तूती बोलती थी, वे अब निरंतर हाशिए पर जा रहे हैं. प्रदेश की राजनीति के कुछ बड़े चेहरे इस संसार से विदा हो गए हैं. ऐसे में हिमाचल की सियासत में नए दौर की कहानी लिखी जा रही है. पिछले चुनाव में कई दिग्गज नेता हार गए थे. वीरभद्र सिंह सरकार के ताकतवर मंत्री जीएस बाली, कौल सिंह ठाकुर, ठाकुर सिंह भरमौरी, सुधीर शर्मा सहित पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गंगूराम मुसाफिर चुनाव हार गए थे. वहीं, भाजपा में भी बड़े चेहरों की हार हुई थी.
धूमल के चुनाव हारते ही हाशिये पर समर्थक: 2017 विधानसभा चुनाव में तो भाजपा के तो CM फेस ही चुनाव हार गए थे. प्रेम कुमार धूमल (Prem Kumar Dhumal lost election) को सुजानपुर से राजेंद्र राणा ने शिकस्त दी थी. इसी तरह पूर्व मंत्री रविंद्र सिंह रवि, तत्कालीन पार्टी मुखिया सतपाल सिंह सत्ती, पूर्व मंत्री गुलाब सिंह ठाकुर, रणधीर शर्मा इलेक्शन में चित्त हो गए थे. इस तरह हिमाचल में धूमल युग का अवसान शुरू हो गया. कहां तो प्रेम कुमार धूमल सीएम फेस थे, लेकिन चुनाव हारने के बाद उनके समर्थक भी हाशिए में धकेले जाने शुरू (dhumal era is over in himachal) हो गए.
हिमाचल की राजनीति में जयराम युग आया: हिमाचल की राजनीति में जयराम ठाकुर का समय आया. अब भाजपा मिशन रिपीट का दावा कर रही है. वैसे 2012 में भी भाजपा मिशन रिपीट के लिए अनुकूल स्थितियों में थी, लेकिन कांगड़ा का किला ढह जाने से ये सपना पूरा नहीं हो पाया. अब जयराम ठाकुर मिशन रिपीट का दावा कर रहे हैं. ऐसे में हिमाचल की राजनीति में ये सवाल पैदा हो गया है कि क्या मिशन रिपीट में प्रेम कुमार धूमल की बड़ी भूमिका होगी (Dhumal role in himachal election) या फिर वे सिर्फ आशीष देने की भूमिका में ही (Prem kumar Dhumal in himachal election 2022) रहेंगे.
खीमी राम शर्मा के बाद रविंद्र सिंह रवि कतार में: ये भी बड़ा सवाल है कि क्या प्रेम कुमार धूमल के समर्थकों को हाईकमान का प्रेम और सहारा मिलेगा. इस समय पूर्व कैबिनेट मंत्री रविंद्र सिंह रवि (Ravindra Singh Ravi) और गुलाब सिंह ठाकुर टिकट के चाहवान हैं. गुलाब सिंह ठाकुर तो प्रेम कुमार धूमल के समधी भी हैं, लेकिन टिकट वितरण के लिए भाजपा हाईकमान के उम्र के पैमाने में गुलाब सिंह ठाकुर शायद फिट नहीं होंगे. इसी तरह धूमल के एक खास समर्थक खीमी राम शर्मा कांग्रेस में शामिल (Khimi ram sharma joins congress) हो चुके हैं. पूर्व शिक्षा मंत्री स्वर्गीय आईडी धीमान के बेटे अनिल धीमान भी प्रेम कुमार धूमल के समर्थक है. वे भी टिकट की दौड़ से बाहर लग रहे हैं. ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि प्रेम कुमार धूमल अपने समर्थकों को कितना सपोर्ट कर पाते हैं. इसके अलावा चुनाव प्रचार में प्रेम कुमार धूमल की भूमिका पर भी सभी की नजर रहेगी.
निर्दलीय विधायकों को शामिल किया: इससे पूर्व का घटनाक्रम देखें तो भाजपा ने जोगिंदर नगर और देहरा के निर्दलीय विधायकों को पार्टी में शामिल कर धूमल खेमे को झटका दिया. देहरा से रविंद्र रवि टिकट के चाहवान हैं और जोगिंदर नगर से गुलाब सिंह ठाकुर. अब इन दोनों विधानसभा क्षेत्रों में धूमल खेमे को दिक्कत हो गई है. वैसे भी पार्टी में अब पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के दौर की बात है. परिवारवाद और उम्र के मसलों सहित परफॉर्मेंस आदि को लेकर हाईकमान का रवैया एकदम साफ है. इन परिस्थितियों में हिमाचल प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल के कद और पद का पार्टी क्या प्रयोग, उपयोग या सदुपयोग करती है, ये देखने वाली बात होगी.
धूमल को अनदेखा नहीं किया जा सकता: वरिष्ठ मीडिया कर्मी धनंजय शर्मा का कहना है कि प्रेम कुमार धूमल 2 बार सीएम रहे हैं. पार्टी में उनका अपना स्थान है. अब तक भाजपा के जितने भी कार्यक्रम हुए हैं, उनमें धूमल को खासी अहमियत दी गई है. ये सही है कि टिकट को लेकर वे हाईकमान पर खास दबाव नहीं बना सकते, लेकिन उनकी राय की अनदेखी भी नहीं की जा सकती. भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप का कहना है कि पार्टी अपने वरिष्ठ नेताओं को समुचित मान-सम्मान देती है. प्रेम कुमार धूमल पार्टी के स्तंभ हैं और उनके मार्गदर्शन की जरूरत हमेशा रहेगी. विधानसभा चुनाव में पार्टी सभी सीनियर नेताओं के मार्गदर्शन से आगे बढ़ेगी. उन्होंने दावा किया कि इस बार भाजपा मिशन रिपीट में कामयाब होगी.
क्या खत्म हो गया है धूमल युग- साल 2017 के बाद से ही ये सवाल बार-बार सिर उठाता रहा (dhumal era in himachal) है. बीजेपी की नई सरकार बनी और नए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर अपना कार्यकाल भी पूरा करने वाले हैं. धूमल को राज्यसभा भेजने की अटकलें भी मुंह के बल गिरी हैं और उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में हार के बावजूद पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाने के बाद ये भी सवाल उठा कि 2017 में ये मौका धूमल को क्यों नहीं मिला ? भले ये फैसला पार्टी का हो लेकिन ये भी सच है कि बीते 4 साल में धूमल और उनके समर्थक लगातार हाशिये पर पहुंचे हैं. उम्र भी धूमल के साथ नहीं है और अगर आगामी विधानसभा चुनाव में प्रेम कुमार धूमल एक्टिव रोल में नजर ना आएं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है. लेकिन धूमल के बिना बीजेपी के लिए मिशन रिपीट करना बहुत बड़ी चुनौती भी होगा ?