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चुनावी मुद्दा: परेशान हैं किसान: सालाना पांच अरब का नुकसान, नहीं हुआ बंदरों व जंगली जानवरों का समाधान

हिमाचल प्रदेश में बंदर व जंगली जानवर हर साल फल तथा फसलों को पांच सौ करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाते हैं. हिमाचल प्रदेश की 3226 पंचायतों में से एक तिहाई पंचायतें बंदरों के उत्पात से परेशान हैं. शिमला, सोलन, सिरमौर, कांगड़ा आदि के किसान अधिक परेशान हैं. कोई भी राजनीतिक दल धरतीपुत्रों की समस्या के प्रति गंभीरता नहीं दिखाता. चुनावी मौसम में खेती को नुकसान पहुंचाते बंदर व जंगली जानवर मुद्दा बेशक बनते हैं, लेकिन समाधान नहीं मिलता.

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Published : Mar 23, 2019, 12:41 PM IST

कॉन्सेप्ट फोटो

शिमला: हिमाचल में अस्सी फीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है. किसान-बागवान एक बड़ा वोट बैंक है, लेकिन कोई भी राजनीतिक दल धरतीपुत्रों की समस्या के प्रति गंभीरता नहीं दिखाता. चुनावी मौसम में खेती को नुकसान पहुंचाते बंदर व जंगली जानवर मुद्दा बेशक बनते हैं, लेकिन समाधान नहीं मिलता.

हिमाचल प्रदेश में बंदर व जंगली जानवर हर साल फल तथा फसलों को पांच सौ करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाते हैं. खेत-बागीचे उजाड़ते बंदरों व जंगली जानवरों का उत्पात थामने के लिए किसानों ने सडक़ से संसद तक प्रदर्शन किया, परंतु समस्या ज्यों की त्यों है. बाड़बंदी से भी समस्या का समाधान नहीं हुआ है. राज्य सरकार के अनुरोध पर केंद्र ने बंदरों को वर्मिन (फसल व इन्सान के लिए घातक) घोषित कर उन्हें मारने की इजाजत दी गई, फिर भी कोई हल नहीं निकला.

वर्मिन घोषित होने के बाद हिमाचल में केवल पांच ही बंदर मारे गए. किसान सभा बंदरों व जंगली जानवरों की साइंटिफिक किलिंग की मांग के अलावा अन्य उपाय सुझाती है, लेकिन उन पर अमल नहीं हो रहा. बंदरों को खेती वाले इलाकों से हटाकर वानर वाटिका में ले जाने के प्लान भी फेल हुए हैं. नसबंदी का उपाय भी कारगर नहीं हो रहा. हिमाचल में विधानसभा चुनाव में मुद्दा बनते आए बंदर व जंगली जानवर इस बार के लोकसभा चुनाव में भी मुद्दा बनेंगे.

हिमाचल में दस लाख के करीब किसान हैं और चार लाख बागवान परिवार हैं. इस बार 51 लाख से अधिक वोटर हैं और उनमें काफी संख्या किसान व बागवानों की है. हिमाचल प्रदेश की 3226 पंचायतों में से एक तिहाई पंचायतें बंदरों के उत्पात से परेशान हैं. शिमला, सोलन, सिरमौर, कांगड़ा आदि के किसान अधिक परेशान हैं. कई किसानों ने तो खेती करना ही छोड़ दिया है. बंदरों को वर्मिन तो घोषित किया गया है, लेकिन प्रदेश के दस जिलों में सर्वाधिक समस्या प्रभावित 38 पंचायतों व नगर निगम शिमला में पिछले एक साल में आधिकारिक तौर पर केवल पांच बंदर मारे गए हैं.

चार बंदर रेणुका और एक बंदर सोलन के धर्मपुर में मारा गया. राज्य सरकार के अनुरोध पर केंद्र सरकार ने चंबा जिला की चार, कांगड़ा की सात, ऊना की पांच, बिलासपुर की चार, शिमला की तीन, सिरमौर की पांच, कुल्लू की तीन, हमीरपुर की दो, सोलन की चार, मंडी की एक तहसील सहित नगर निगम शिमला क्षेत्र में बंदरों को वर्मिन घोषित किया था.इन क्षेत्रों में डलहौजी, भटियात, सिंहुता, चंबा, नूरपुर, इंदौरा, फतेहपुर, ज्वाली, कांगड़ा, पालमपुर, बड़ोह, भरवाईं, अंब, ऊना, रोली, बंगाणा, घुमारवीं, नयनादेवी, बिलासपुर, नम्होल, शिमला ग्रामीण, रामपुर, नेरवा, पच्छाद, राजगढ़, रेणुका, शिलाई, कमरऊ, मनाली, कुल्लू, सैंज, बड़सर, बिजहारी, नालागढ़, कसौली, सोलन, दाड़लाघाट व सुंदरनगर क्षेत्र शामिल थे.

आंकड़ों की तरफ नजर दौड़ाएं तो हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2004 में बंदरों की संख्या वर्ष 2013 में 226086 थी. वर्ष 2015 में ये संख्या 207614 रिकॉर्ड की गई. हालांकि किसान सभा इन आंकड़ों से इत्तेफाक नहीं रखती. हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2006 से बंदरों की नसबंदी हो रही है. वन्य प्राणी विभाग के अनुसार अब तक डेढ़ लाख से अधिक बंदरों की नसबंदी की गई. इस पर 30 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं.

शिमला: हिमाचल में अस्सी फीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है. किसान-बागवान एक बड़ा वोट बैंक है, लेकिन कोई भी राजनीतिक दल धरतीपुत्रों की समस्या के प्रति गंभीरता नहीं दिखाता. चुनावी मौसम में खेती को नुकसान पहुंचाते बंदर व जंगली जानवर मुद्दा बेशक बनते हैं, लेकिन समाधान नहीं मिलता.

हिमाचल प्रदेश में बंदर व जंगली जानवर हर साल फल तथा फसलों को पांच सौ करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाते हैं. खेत-बागीचे उजाड़ते बंदरों व जंगली जानवरों का उत्पात थामने के लिए किसानों ने सडक़ से संसद तक प्रदर्शन किया, परंतु समस्या ज्यों की त्यों है. बाड़बंदी से भी समस्या का समाधान नहीं हुआ है. राज्य सरकार के अनुरोध पर केंद्र ने बंदरों को वर्मिन (फसल व इन्सान के लिए घातक) घोषित कर उन्हें मारने की इजाजत दी गई, फिर भी कोई हल नहीं निकला.

वर्मिन घोषित होने के बाद हिमाचल में केवल पांच ही बंदर मारे गए. किसान सभा बंदरों व जंगली जानवरों की साइंटिफिक किलिंग की मांग के अलावा अन्य उपाय सुझाती है, लेकिन उन पर अमल नहीं हो रहा. बंदरों को खेती वाले इलाकों से हटाकर वानर वाटिका में ले जाने के प्लान भी फेल हुए हैं. नसबंदी का उपाय भी कारगर नहीं हो रहा. हिमाचल में विधानसभा चुनाव में मुद्दा बनते आए बंदर व जंगली जानवर इस बार के लोकसभा चुनाव में भी मुद्दा बनेंगे.

हिमाचल में दस लाख के करीब किसान हैं और चार लाख बागवान परिवार हैं. इस बार 51 लाख से अधिक वोटर हैं और उनमें काफी संख्या किसान व बागवानों की है. हिमाचल प्रदेश की 3226 पंचायतों में से एक तिहाई पंचायतें बंदरों के उत्पात से परेशान हैं. शिमला, सोलन, सिरमौर, कांगड़ा आदि के किसान अधिक परेशान हैं. कई किसानों ने तो खेती करना ही छोड़ दिया है. बंदरों को वर्मिन तो घोषित किया गया है, लेकिन प्रदेश के दस जिलों में सर्वाधिक समस्या प्रभावित 38 पंचायतों व नगर निगम शिमला में पिछले एक साल में आधिकारिक तौर पर केवल पांच बंदर मारे गए हैं.

चार बंदर रेणुका और एक बंदर सोलन के धर्मपुर में मारा गया. राज्य सरकार के अनुरोध पर केंद्र सरकार ने चंबा जिला की चार, कांगड़ा की सात, ऊना की पांच, बिलासपुर की चार, शिमला की तीन, सिरमौर की पांच, कुल्लू की तीन, हमीरपुर की दो, सोलन की चार, मंडी की एक तहसील सहित नगर निगम शिमला क्षेत्र में बंदरों को वर्मिन घोषित किया था.इन क्षेत्रों में डलहौजी, भटियात, सिंहुता, चंबा, नूरपुर, इंदौरा, फतेहपुर, ज्वाली, कांगड़ा, पालमपुर, बड़ोह, भरवाईं, अंब, ऊना, रोली, बंगाणा, घुमारवीं, नयनादेवी, बिलासपुर, नम्होल, शिमला ग्रामीण, रामपुर, नेरवा, पच्छाद, राजगढ़, रेणुका, शिलाई, कमरऊ, मनाली, कुल्लू, सैंज, बड़सर, बिजहारी, नालागढ़, कसौली, सोलन, दाड़लाघाट व सुंदरनगर क्षेत्र शामिल थे.

आंकड़ों की तरफ नजर दौड़ाएं तो हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2004 में बंदरों की संख्या वर्ष 2013 में 226086 थी. वर्ष 2015 में ये संख्या 207614 रिकॉर्ड की गई. हालांकि किसान सभा इन आंकड़ों से इत्तेफाक नहीं रखती. हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2006 से बंदरों की नसबंदी हो रही है. वन्य प्राणी विभाग के अनुसार अब तक डेढ़ लाख से अधिक बंदरों की नसबंदी की गई. इस पर 30 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं.

चुनावी मुद्दा
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परेशान है किसान: सालाना पांच अरब का नुकसान, फिर भी नहीं हुआ बंदरों व जंगली जानवरों की समस्या का समाधान
शिमला। हिमाचल में अस्सी फीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है। किसान-बागवान एक बड़ा वोट बैंक है, लेकिन कोई भी राजनीतिक दल धरतीपुत्रों की समस्या के प्रति गंभीरता नहीं दिखाता। चुनावी मौसम में खेती को नुकसान पहुंचाते बंदर व जंगली जानवर मुद्दा बेशक बनते हैं, लेकिन समाधान नहीं मिलता। हिमाचल प्रदेश में बंदर व जंगली जानवर हर साल फल तथा फसलों को पांच सौ करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाते हैं। खेत-बागीचे उजाड़ते बंदरों व जंगली जानवरों का उत्पात थामने के लिए किसानों ने सडक़ से संसद तक प्रदर्शन किया, परंतु समस्या ज्यों की त्यों है। बाड़बंदी से भी समस्या का समाधान नहीं हुआ है। राज्य सरकार के अनुरोध पर केंद्र ने बंदरों को वर्मिन (फसल व इन्सान के लिए घातक) घोषित कर उन्हें मारने की इजाजत दी गई, फिर भी कोई हल नहीं निकला। वर्मिन घोषित होने के बाद हिमाचल में केवल पांच ही बंदर मारे गए। किसान सभा बंदरों व जंगली जानवरों की साइंटिफिक कलिंग की मांग के अलावा अन्य उपाय सुझाती है, परंतु उन पर अमल नहीं हो रहा। बंदरों को खेती वाले इलाकों से हटाकर वानर वाटिका में ले जाने के प्लान भी फेल हुए हैं। नसबंदी का उपाय भी कारगर नहीं हो रहा। हिमाचल में विधानसभा चुनाव में मुद्दा बनते आए बंदर व जंगली जानवर इस बार के लोकसभा चुनाव में भी मुद्दा बनेंगे। हिमाचल में दस लाख के करीब किसान हैं और चार लाख बागवान परिवार हैं। इस बार 51 लाख से अधिक वोटर हैं और उनमें काफी संख्या किसान व बागवानों की है। 
हिमाचल प्रदेश की 3226 पंचायतों में से एक तिहाई पंचायतें बंदरों के उत्पात से परेशान हैं। शिमला, सोलन, सिरमौर, कांगड़ा आदि के किसान अधिक परेशान हैं। कई किसानों ने तो खेती करना ही छोड़ दिया है। बंदरों को वर्मिन तो घोषित किया गया है, लेकिन प्रदेश के दस जिलों में सर्वाधिक समस्या प्रभावित 38 पंचायतों व नगर निगम शिमला में पिछले एक साल में आधिकारिक तौर पर केवल पांच बंदर मारे गए हैं। चार बंदर रेणुका और एक बंदर सोलन के धर्मपुर में मारा गया। राज्य सरकार के अनुरोध पर केंद्र सरकार ने चंबा जिला की चार, कांगड़ा की सात, ऊना की पांच, बिलासपुर की चार, शिमला की तीन, सिरमौर की पांच, कुल्लू की तीन, हमीरपुर की दो, सोलन की चार, मंडी की एक तहसील सहित नगर निगम शिमला क्षेत्र में बंदरों को वर्मिन घोषित किया था। इन क्षेत्रों में डलहौजी, भटियात, सिंहुता, चंबा, नूरपुर, इंदौरा, फतेहपुर, ज्वाली, कांगड़ा, पालमपुर, बड़ोह, भरवाईं, अंब, ऊना, रोली, बंगाणा, घुमारवीं, नयनादेवी, बिलासपुर, नम्होल, शिमला ग्रामीण, रामपुर, नेरवा, पच्छाद, राजगढ़, रेणुका, शिलाई, कमरऊ, मनाली, कुल्लू, सैंज, बड़सर, बिजहारी, नालागढ़, कसौली, सोलन, दाड़लाघाट व सुंदरनगर क्षेत्र शामिल थे। आंकड़ों की तरफ नजर दौड़ाएं तो हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2004 में बंदरों की संख्या वर्ष 2013 में 226086 थी। वर्ष 2015 में ये संख्या 207614 रिकार्ड की गई। हालांकि किसान सभा इन आंकड़ों से इत्तेफाक नहीं रखती। हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2006 से बंदरों की नसबंदी हो रही है। वन्य प्राणी विभाग के अनुसार अब तक डेढ़ लाख से अधिक बंदरों की नसबंदी की गई। इस पर 30 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। 

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